Lalit Mishra Kaun Hain: अयोध्या राम मंदिर में ध्वजारोहण पूरा हुआ। पीएम मोदी के बटन दबाते ही झंडा धीरे-धीरे ऊपर चढ़ता हुआ मंदिर के शीर्ष पर विराजमान हो गया। जैसे-जैसे झंडा ऊपर चढ़ता गया पीएम मोदी टकटकी लगाए उसे देखते रहे। लेकिन राम मंदिर की इस भव्यता का एक अनोखा पहलू हैअयोध्या का प्राचीन राजध्वज, जिसे त्रेता युग की याद दिलाने वाला प्रतीक माना जाता है। इस ध्वज को डिजाइन करने वाले रीवा के ललित मिश्रा के बारे में आज हम विस्तार से जानेंगे।
कौन हैं रीवा के ललित मिश्रा
Lalit Mishra Rewa: ललित मिश्रा (Ram Mandir Dharm Dhwaj Designer) मूल रूप से मध्य प्रदेश के रीवा जिले के हरदुआ गांव के निवासी हैं। वे वर्तमान में ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) में रहते हैं और एक प्रमुख इंडोलॉजिस्ट (भारतीय इतिहास और संस्कृति के विद्वान) हैं। वे अयोध्या के शोध संस्थान में उत्तर प्रदेश सरकार के कन्वीनर के रूप में कार्यरत हैं। ललित मिश्रा (covidar tree searcher) ने राम मंदिर के निर्माण के दौरान त्रेता युग की अयोध्या को पुनर्जीवित करने के प्रयास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका मुख्य कार्य था प्राचीन ग्रंथों के आधार पर अयोध्या राज्य के प्रतीकों को उसी रूप में तैयार करना।
रामायण के अयोध्या कांड के गहन अध्ययन के दौरान ललित मिश्रा (Ram Mandir Dharm Dhwaj Designer Name) का ध्यान अयोध्या के राजध्वज पर गया। बाल्मीकि रामायण, कालिदास के रघुवंशम और भवभूति के उत्तररामचरित जैसे ग्रंथों में तत्कालीन अयोध्या राज्य के राजध्वज का उल्लेख है, लेकिन इसमें चित्रित ‘वृक्ष कोविदार’ (Kovidar) के प्रतीक पर किसी का ध्यान नहीं गया था। ललित ने इस पर विस्तृत शोध किया और मेवार की चित्रित रामायण की एक पेंटिंग से शुरुआत करते हुए, ध्वज का डिजाइन ढूंढ निकाला।
महाभारत युद्ध के बाद खो गया था राजध्वज
शोध के अनुसार, जब भगवान श्रीराम वनवास से लौट रहे थे, तो भरत जी अपनी सेना के साथ चित्रकूट की ओर जा रहे थे। उस प्रसंग में लक्ष्मण ने राजध्वज का जिक्र किया है। यह ध्वज महाभारत युद्ध के बाद खो गया था, जब अयोध्या के राजा बृहद्बल की मृत्यु हो गई और राज्य की परंपरा टूट गई। लगभग 299 रामायण संस्करणों में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता।
30 दिसंबर 2023 को न्यास कमेटी की बैठक में ललित द्वारा डिजाइन किए गए इस राजध्वज को मान्यता मिली। और अब, नवंबर 2025 में, यह ध्वज पूर्ण रूप से अयोध्या का हिस्सा बन चुका है। 25 नवंबर 2025 को विवाह पंचमी के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर इस प्राचीन राजध्वज को फहराया। कई भक्तों ने इसे “दूसरी प्राण-प्रतिष्ठा” का प्रतीक माना, क्योंकि यह मंदिर निर्माण की अंतिम कड़ी थी। यह समारोह अयोध्या में अब तक का सबसे बड़ा आयोजन था, जिसमें 100 टन फूलों से सजावट की गई।
धर्मध्वज के चिन्ह की खासियत
ललित मिश्रा के अनुसार, अयोध्या के धर्मध्वज में तीन मुख्य प्रतीक हैं ‘ओम’, सूर्य (सूर्यवंश का प्रतीक), और ‘कोविदार वृक्ष’। यह वृक्ष बेहद मनमोहक है और कचनार व मंदार के मिश्रण से तैयार किया गया है। रामायण में इसका प्रमाण मिलता है, और यह प्रयागराज से काशी के बीच 100 मील के दायरे में पाया जाता है। कोविदार वृक्ष का बॉटनिकल नाम ‘बौहिनिया’ (Bauhinia) है, जिसमें अनेक औषधीय गुण हैं, जिनका वर्णन आयुर्वेदिक ग्रंथों में विस्तार से है। विद्वानों ने सुझाव दिया है कि इस वृक्ष की जेनेटिक स्टडी की जाए, ताकि प्राचीन भारत की वैज्ञानिक प्रगति सिद्ध हो सके।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका के राजा रावण से युद्ध के दौरान इसी ध्वज का उपयोग किया था। ललित मिश्रा का मानना है कि यह खोज भारत को संप्रभुता के प्रतीक के विकास में प्राचीन ग्रीक सभ्यता से भी आगे साबित कर सकती है। वे कहते हैं, “मैंने मेवार रामायण की पेंटिंग में इसे पहली बार देखा, और अब यह अयोध्या की शान बढ़ा रहा है।”
राम मंदिर और अयोध्या का यह पुनरुद्धार न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। ललित मिश्रा जैसे विद्वानों के प्रयास से त्रेता युग की झलक आज भी जीवंत है।
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