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राजेंद्र शुक्ल: विन्ध्य की आकांक्षाओं के शिल्पकार~ योगेश त्रिपाठी

rajendra shukla rewa

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लेख: योगेश त्रिपाठी | कोई भी समाज हो, जब वह अपने बीच के किसी व्यक्ति को ऊंचाई पर देखता है तो हर्षित होता है, और हर्षित होना भी चाहिए । उस व्यक्ति को सम्मानित करके समाज स्वयं को सम्मानित दिखना-दिखाना चाहता है, परंतु यह भी निश्चित है कि उस समाज को संतोष तभी मिलता है जब वह व्यक्ति सभी समाजों में समान रूप से मान्य और लोकप्रिय होता है । रीवा विधानसभा के सदस्य और मध्यप्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री राजेंद्र शुक्ल ऐसे ही नेता हैं जिनकी उपस्थिति से सभी समाज और वर्ग ही नहीं, पूरा क्षेत्र, पूरा प्रदेश संतोष का अनुभव करता है, आश्वस्ति का अनुभव करता है ।

अतीत में रीवा की राजनीति में समाजवादियों का बहुत प्रभाव रहा है, शायद इसीलिए आंदोलनात्मक और आक्रामक राजनीति यहां का मूल चरित्र रहा है । ऐसी पृष्ठभूमि से निकला हुआ कोई राजनेता अल्पभाषी, मृदुभाषी, सकारात्मक सोच वाला, रचनात्मक, त्वरित निर्णयकारी हो, विस्मयजनक है । यह एक तथ्य है कि राजेंद्र शुक्ल ने अपने नेतृत्व में रीवा के स्वरूप को बदला है ।

कई वर्षों से बाहर रहा हुआ व्यक्ति जब आता है और रीवा को देखता है तो हैरान रह जाता है । चौड़ी और चिकनी सड़कें, फ्लाई ओवर्स, ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़े-बड़े ब्रांडेड शोरूम्स, महानगरीय चकाचौंध । महानगरीय चकाचौंध में भले ही इनका सीधा योगदान न हो, परंतु अप्रत्यक्ष रूप से इनके द्वारा जो माहौल बनाया गया, जो सुविधायें उपलब्ध कराई गईं वह इतनी अनुकूल रहीं कि सबकुछ अपने-आप होता गया ।

परंतु राजेंद्र शुक्ल का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने अपने नेतृत्व से रीवांचल की राजनीति को बदल डाला । नेताजी के नाम पर दादागीरी करने वाले छुटभैये नेता नदारद । नेताजी के नाम पर अधिकारियों-कर्मचारियों को हड़काने की संस्कृति समाप्त । ट्रांसफर-पोस्टिंग की राजनीति के स्थान पर सार्वजनिक कार्यों की रचनात्मक राजनीति । शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पार्क, बाजार, चौराहे, नदी-तट न जाने कितने भवन, एयरपोर्ट, आदि-आदि बनवाये और इन्हीं सार्वजनिक कामों के आधार पर लगातार चुनाव जीते ।

रीवांचल के नेतृत्व में नगर को लेकर पहली बार सौंदर्य बोध सामने आया । कोई चीज बनाओ, तो सुंदर बनाओ । उनके मन में रीवांचल के विकास का रोडमैप दिखाई देता है । सामने लाई गई किसी भी समस्या का सकारात्मक निदान खोजने के लिये उनके पास समय रहता है । घोघर में बनाये गये ईकोपार्क को बनाने में न जाने कितनी समस्यायें आईं, कुछ निजी भूमियों का अधिग्रहण किया गया, कई विभागों से क्लियरेंस लेने में दिक्कतें आईं परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बनवा कर ही दम लिया ।

एक हजार की क्षमता का आडिटोरियम बनवाकर उन्होंने रीवा की सांस्कृतिक-सामाजिक गतिविधियों के लिए अनुपम स्थान दे दिया । स्पोर्ट्स कांप्लेक्स बनवाया । विशाल क्षमता का सोलर प्लांट लगवाया । पॉलीटेक्निक, नया कलेक्ट्रेट भवन, नया न्यायालय भवन । घोघर मुहल्ले में नदी-तट पर पचमठा आश्रम को एक दर्शनीय स्थल मंत परिवर्तित कर दिया । मुकुंदपुर में टाइगर सफारी बनवाकर, रीवा के पुराने वैभव को फिर से वापस ला दिया । वरना, विश्व को सफेद बाघ देने वाला रीवांचल, कई दशकों से सफेद बाघों से शून्य था ।

रानी तालाब जो झुग्गी-झोपड़ियों की भरमार से विलुप्त होता जा रहा था, उसका जीर्णोद्धार कराया । रानी तालाब का सौंदर्यीकरण तो एक ‘साइड प्रोडक्ट’ है, वास्तव में इस कार्य से उद्धार उन गरीबों का हुआ जो वहां झुग्गी-झोपड़ियों में रहते थे । उनको बहुमंजिला इमारतें बनवाकर फ्लैट्स दे दिए गये।

इंजीनियरिंग के छात्र होते हुए भी राजेंद्र शुक्ल सामाजिक क्षेत्र में इतने कुशल, कि मजाल क्या कि कभी जिह्वा बहक जाये । नपे-तुले शब्दों में बोलना, और अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न कर देना, उनकी वाक-कुशलता का प्रमाण है। आज तक उनके किसी बयान या भाषण में ऐसी कोई अवांछित बात नहीं आई, जिससे बवाल खड़ा हुआ हो। विरोधियों ने उनके बारे में प्रचार किया कि आम आदमी का उनसे मिलना ही बहुत मुश्किल है । लगातार चुनाव जीतना, स्वयं इस कुप्रचार को खारिज करता है।

ब्राह्मण होते हुए भी उनके ऊपर जातिवादी नेता का ठप्पा नहीं लगा। एक समय आया था जब उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया था । इसके बावजूद वह, रीवा में चल रहे निर्माणकार्यों का सतत निरीक्षण करते रहे । ऐसा लगा ही नहीं कि वह अब मंत्री नहीं हैं । अधिकारी-कर्मचारियों से व्यवहार ऐसा कि वे स्वतःस्फूर्त काम करते हैं । उनकी राजनीतिक कुशलता का आलम यह है कि कोई भी विपक्षी नेता उनके कद को अनगिनत कोशिशों के बाद भी छू नहीं पाया। उनका व्यक्तित्व और ‘नट-शेल’ में प्रस्तुतीकरण का उनका अंदाज ऐसा है कि जो भी प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रियों तक ले जाते हैं, उसे स्वीकृत करा कर ही लौटते हैं। अपने क्षेत्र से लगाव ऐसा कि कोई भी केंद्रीय या राज्य की योजना हो, सबसे पहले अपने रीवा में लागू करने का उत्साह रखते हैं।

कभी एक कहावत निकली थी कि विंध्यभूमि ऐसी है कि जिसको ऊपर उठता देखती है, खींच कर नीचे ला देती है, इतना ही नहीं, दो पोरसा नीचे गाड़ देती है । राजेंद्र शुक्ल ने इस कहावत को झूठा साबित किया है । विंध्यभूमि विनम्र है, विंध्यभूमि अनुशासित और संयमित है । वह अपनी कोख से उपजे हर पौधे को पालती-पोसती है, झाड़-झंखाड़ तो हर भूमि में होते हैं, जिस पौधे को उगना है, जिसमें जिजीविषा है, जिसमें अपनी भूमि को कुछ देने का जजबा है, सामर्थ्य है, वह झाड़-झंखाड़ को चीरते हुए उगकर ही रहता है, सबको शीतल छांव देने वाला वृक्ष बनकर ही रहता है।

चुनौतियां समाप्त नहीं हुई हैं । रीवा को मेडिकल और एजुकेशनल हब बनना है, केवल, संख्यात्मक नहीं, गुणात्मक भी । रीवा को हरा-भरा बनाना है, खेल के मैदान बनाने हैं, एक छोटा रंगमंच बनवाना है, आसपास औद्योगिक इकाईयां बसानी हैं, पुस्तकालय, वाचनालय बनवाने हैं, बघेली बोली के उन्नयन के लिए कार्य करने हैं, सब हो जायेगा विश्वास है । बस, रीवा से दिल्ली वाया भोपाल, ग्रह-नक्षत्र अनुकूल बने रहें और रीवावासियों के मन में ऊंची आकांक्षायें बनी रहें ।

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