लाहौर में भगवान राम के पुत्र की समाधि पर पहुंचे राजीव शुक्ला

हाल ही में पिछले दिनों आईसीसी चैंपियन ट्रॉफी के कारण बीसीसीआई उपाध्यक्ष और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला पाकिस्तान में थे, जहाँ उन्होंने लाहौर शहर में स्थित एक समाधिस्थल दर्शन के लिए गए, मान्यता है यह भगवान राम के पुत्र लव की समाधि है। उन्होंने इस समाधि में पुष्पांजलि भी अर्पित की। उनके साथ पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी भी थे। इस बात की जानकारी खुद राजीव शुक्ला ने सोशल मीडिया के माध्यम से दिया।

राजीव शुक्ला ने अपने एक्स एकाउंट में लिखा – “लाहौर के म्यूनिसपल रिकार्ड में यह दर्ज है कि यह नगर भगवान राम के पुत्र, लव के नाम पर बसाया गया था और कसूर शहर उनके दूसरे पुत्र कुश के नाम पर, पाकिस्तान सरकार भी यह मानती है”, इसके आगे वह लिखते हैं- “लाहौर के प्राचीन किले में, प्रभु राम के पुत्र लव की समाधि है, लाहौर का नाम भी उन्हीं के नाम पर है। यहाँ प्रार्थना का अवसर मिला है, मेरे साथ पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी भी रहे, जो समाधि का जीर्णोद्धार करवा रहे हैं, मोहिसिन ने मुख्यमंत्री रहते यह कार्य शुरू करवाया था।” इसके साथ ही राजीव शुक्ला ने बहुत सारी तस्वीरें भी पोस्ट की हैं। हालांकि तस्वीरों को देखकर लगता है समाधिस्थल की स्थिति खराब है।

मान्यता है लाहौर शहर भगवान राम के पुत्र लव के नाम से बसा है

लाहौर शहर भारत और पाकिस्तान के साझी विरासत का प्रतिनिधि है, इस शहर को किसने बसाया यह ठीक-ठाक तो नहीं बताया जा सकता है। इसी तरह इसके नामकरण की भी गुत्थी है, लेकिन बहुत सारे विद्वान यह मानते हैं, इसका नामकरण अयोध्या के राजकुमार लव के नाम पर लवपुरी, लावापुरी और फिर लाहौर हो गया। प्रारंभिक मुस्लिम यात्रियों और फारसी विद्वानों ने इसे लुहावर, लुहार और राहवार भी कहा है। अल-बरूनी इसे लोहावर ही कहता है, जबकि आमिर खुसरो इसे लहनूर कहता है। कुछ विद्वानों के अनुसार लाहौर शब्द की व्युत्पत्ती राववार शब्द से हुई है, राववार इरावतीवार शब्द का सरलतम रूप है, यहाँ पर इरावती का अर्थ संभवतः रावी नदी है, जिसे ग्रंथों में इरावती कहा गया है।

इस नगर पर अलग-अलग समय में विभिन्न राजवंशों ने शासन किया, लेकिन 11 वीं शताब्दी में गजनी के महमूद ने इस शहर को हिंदूशाही वंश के राजाओं को पराजित कर जीत लिया, आगे चलकर उसके वंशजों ने इस नगर को अपनी राजधानी बना ली, जिसके बाद लंबे समय तक यह मुस्लिम शासन के अधीन रहा, 19 वीं शताब्दी में राजा रणजीत सिंह ने जब एकीकृत पंजाब की नींव रखी तो यह नगर उनकी राजधानी बना, आगे चलकर यह अंग्रेजों के अधिकार में चला गया और बंटवारे के बाद यह पाकिस्तान को प्राप्त हो गया, भारत के अमृतसर से इसकी दूरी महज 35 किलोमीटर ही है।

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