चित्रकार राजा रवि वर्मा- जिन्होंने पहली बार हिंदू देवी-देवताओं के चित्र बनाए

About Raja Ravi Verma In Hindi: राजा रवि वर्मा भारत के एक सुप्रसिद्ध चित्रकार थे। उन्होंने रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों समेत कई हिंदू धर्म ग्रंथों को आधार बनाकर यूरोपीय शैली का प्रयोग करते हुए तैलीय चित्र बनाए थे। उन्होंने ही सबसे पहले हिंदू देवी देवताओं के चित्र बनाए थे।

जन्म और परिवार

राजा रवि वर्मा का जन्म 29 1848 को त्रावणकोर राज्य के किलिमानूर में एक सामंतवादी परिवार में हुआ था। जब वह 5 वर्ष के थे, तभी से चित्रकला के लिए उनकी रुचि जगने लगी थी और वह चाक और कोयले के टुकड़े से घर की दीवारों में दैनिक जीवन के चित्र चित्रित करने लगे थे।

चित्रकला की प्रारंभिक शिक्षा

उनके चाचा राज राजा वर्मा भी एक चित्रकार थे। चित्रकला के प्रति उनके लगाव को देखते हुए, उन्हें चित्रकला का पहला प्रशिक्षण राज राजा वर्मा ने ही दिया था। वर्मा जब 13-14 वर्ष के थे तभी त्रावणकोर के शासक अयिनम थिरुनल के वजह से उनको दरबार में रहने वाले चित्रकारों की कला देखने और सीखने का मौका मिला।

गुप्तरूप से सीखी तैलीय चित्रकला

राजा रवि वर्मा तैलीय चित्रकला को सीखना चाहते थे। उस समय त्रावणकोर दरबार में रामास्वामी नायडू नाम के एक वरिष्ठ और अनुभवी चित्रकार थे, लेकिन उन्होंने राजा रवि वर्मा को सिखाने से मना कर दिया। इसी तरह दरबार में रहने वाले एक ब्रिटिश मूल के कलाकार थियोडोर जेन्सन रहते थे, लेकिन उन्होंने भी राजा रवि वर्मा तैलीय चित्रकला सिखाने से इंकार कर दिया। लेकिन नायडू के सहायकों में से अरुमुगम पिल्लई ने गुप्त रूप से उन्हें तैलीय चित्रकला का तकनीकी ज्ञान दे दिया। हालांकि उन्हें सिखाया भले ही नहीं लेकिन राजा रवि वर्मा की कला पर इन दोनों चित्रकारों का प्रभाव जरूर था।

महाकाव्य और पुराणों को आधार बनाकर की चित्रकला

उन्होंने बतौर चित्रकार अपने कैरियर की शुरुआत रामायण, महाभारत, कालिदास के नाटकों समेत अन्य महाकाव्यों को आधार बना कर अपने चित्र बनाने प्रारंभ किए। 1976 में उनकी एक चित्र प्रदर्शनी ‘शकुंतला राइटिंग ए लव लेटर तो दुष्यंत’ को बहुत पसंद किया गया था। यह कालिदास के नाटक अभिज्ञान शकुंतलम और महाभारत की कहानियों पर आधारित था। इसके बाद उनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई- मैसूर, बड़ौदा इत्यादि रियासतों से उन्हें चित्र बनाने के बुलावे आने लगे।

प्रेस की शुरुआत

त्रावनकोण के दीवान टी. माधवराव की सलाह पर उन्होंने मुंबई के घाटकोपर में एक लिथिग्राफिक प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत की, जिसके वजह से वह अपने तैलीय चित्रों की और भी कापियाँ की प्रिंटिंग बना कर आम लोगों तक पहुँचा सकें।

बाद में उन्होंने अपनी प्रेस को लोनावाला ले गए। यहाँ पर रामायण, महाभारत की कथाओं पर आधारित उनकी चित्रों की प्रतियों को खूब पसंद किया गया। लेकिन बाद में 1901 में उन्होंने अपनी प्रेस एक जर्मन व्यक्ति को बेंच दी।

कुछ प्रसिद्ध चित्र

उनके द्वारा देवी लक्ष्मी और सरस्वती के चित्रों को खूब पसंद किया गया। रामायण, महाभारत और कई संस्कृत काव्यों पर आधारित उनके चित्रों को खूब पसंद किया गया। दुष्यंत और शकुंतला, नल-दमयन्ती आदि कथाओं का चित्रण करके उन्होंने इतिहास में हिंदू देवी-देवताओं के चित्र बनाए।

राजा रवि वर्मा को मिले सम्मान

1893 में हुए वर्ल्ड कोलम्बियन एक्सपोजिशन में उन्हें 3 गोल्ड मेडल मिले थे। राजा रवि वर्मा को 1904 में ब्रिटिश सरकार ने ‘कैसर-ए-हिंद’ से सम्मानित किया। ये उस समय बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। 2007 में राजा रवि वर्मा की एक पेंटिंग 1.24 मिलियन डॉलर, मतलब 8 करोड़, 24 लाख, 74 हजार 198 रुपये में बिकी थी। 2014 आई केतन मेहता की फिल्म रंगरसिया भी राजा रवि वर्मा पर आधारित थी।

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