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Raja Mehendi Ali Khan घर छूट गया, लेकिन भारत नहीं छोड़ा

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Raja Mehendi Ali Khan Birth Anniversary : अगर आप पुराने गानों के शौक़ीन हैं तो कुछ गीत तो आपने सुने ही होंगे, जैसे -‘ अरी ओ शोख कलियो मुस्कुरा देना… ‘- फिल्म “जब याद किसी की आती है”, से ,’ मेरी याद में तुम ना आंसू बहाना…’, फिल्म “मदहोश”से
‘ आप यूं हीं अगर हम से मिलते रहे… ‘- फिल्म” एक मुसाफिर एक हसीना से” ,’ वतन की राह में… ‘- फिल्म “शहीद”,
‘ तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा…’ – और ‘ झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में ‘- फिल्म” मेरा साया” से और हाँ
‘ लग जा गले के फिर ये रात हो ना हो …’-” वो कौन थी?” फिल्म से ।
यक़ीनन आपने सुने होंगे और नहीं भी सुने हों तो आज सुन लीजिएगा ,क्योंकि तभी आप महसूस कर पाएंगे एक अज़ीम फनकार के हुनर को, उसके फन की परवाज़ को , एहसासों और जज़्बातों के उतार चढ़ाव को, जो सीधे हमारी दुखती रग को थाम लेते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं गीतकार राजा मेंहदी अली ख़ान की, जो पाकिस्तान के थे लेकिन बंटवारे के बाद उन्होंने भारत को चुना और यहीं के होके रह गए ।

रगों में दौड़ती थी शायरी :-

23 सितम्बर, 1928 को ब्रिटिश भारत में पंजाब के गुजरांवाला ज़िले के करमाबाद गांव में जन्में राजा मेहदी अली ख़ान जब महज़ चार साल के थे तब उनके वालिद गुज़र गए, उनकी मां हुबिया खानम ,मौलाना ज़फर अली खान की बहन और एक ज़हीन शायरा भी थीं, उनकी शायरी की तारीफ़ अल्लामा इक़बाल भी करते थे ,उन्होंने ही मेंहदी को पढ़ा लिखा के इस क़ाबिल बनाया कि वो लाहौर से निकलने वाली उर्दू पत्रिकाओं ‘ फूल ‘और ‘तहज़ीब-ए-निस्वाँ ‘ के संपादकीय स्टाफ के रूप में काम करने लगे फिर शायरी तो मेंहदी अली खान के ख़ून में थी तो ,1942 में वो ऑल इंडिया रेडियो , दिल्ली में बतौर लेखक शामिल हो गए, यहाँ उनकी मुलाकात जाने-माने लेखक सआदत हसन मंटो से हुई और हिंदी फिल्म उद्योग में सक्रिय रहे , मंटो ने फिल्म अभिनेता अशोक कुमार से मेंहदी अली के लिए फिल्म इंडस्ट्री में ही कोई अच्छी नौकरी ढूँढने को कहा बस फिर क्या था, उन्हें जल्द ही 1946 की ‘आठ दिन’ नाम की एक फिल्म मिल गई जिसमें उन्होंने न केवल संवाद लिखे बल्कि अभिनय भी किया।

दिल की देश भक्ति क़लम में भी उतरी

इसके बाद फिल्मिस्तान स्टूडियो के साझेदारों में से एक शशधर मुखर्जी ने मेंहदी अली को अपनी 1947 की फिल्म ‘दो भाई ‘ के लिए गीत लिखने का मौका दिया। फिल्म के गाने जैसे “मेरा सुंदर सपना बीत गया” और “याद करोगे” तो रिलीज़ होते ही लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गए।
ये सन 1947 की ही बात है जब मेंहदी और उनकी पत्नी ताहिरा ने पाकिस्तान जाने के बजाय भारत में रहने का फैसला किया, देश में दंगों की लहर के बावजूद उन्होंने यह फैसला किया। 1948 में उनकी देशभक्ति उनके गीतों “वतन की राह में” और “तोड़ी-तोड़ी बच्चे” में सबके सामने आई, जब फिल्म ‘शहीद ‘ में इन गीतों को लिया गया ।

मदन मोहन के साथ जुगलबंदी :-

उन्होंने उस वक्त के सभी महान संगीतकारों के लिए गीत लिखे पर मदन मोहन के संगीत निर्देशन में आए गीतों को खूब पसंद किया गया ,दोनों के बीच बहुत अच्छा तालमेल था जो हमें ‘अनपढ़ ‘, ‘ मेरा साया ‘, ‘ वो कौन थी?’, ‘ नीला आकाश’ , ‘दुल्हन एक रात की’ , ‘अनीता ‘ और ‘नवाब सिराजुद्दौला’ जैसी फ़िल्मों में नज़र आता है ‘वो कौन थी? ‘ से उनका गाना ‘ लग जा गले ‘ फ़िल्म इतिहास के शीर्ष दस सर्वकालिक पसंदीदा गानों में से एक है । और संगीतकारों की बात करें तो राजा मेंहदी अली खान ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ, (1967) की संगीतमय फिल्म ‘अनीता’ में , सामने मेरे सावरियां’ और ‘तुम बिन जीवन कैसे बीता’ जैसे दिलकश गीत लिखे,तो वहीं उनके लिखे (1967) की फिल्म ‘ जाल’ के गीतों को भी खूब लोकप्रियता मिली ।

उनके लिखे दिलनशीं बोल

इसी तरह हँसते मुस्कुराते हुए ,हमारे लिए एक से बढ़कर एक बेमिसाल गीतों का ताना बाना बुनते हुए , 29 जुलाई 1966 को महज़ 38 साल की उम्र में वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए और हमें सौंप गए अपने नग़्मों की बेश क़ीमती दौलत , जिसके सदाबहार , सुरीले बोल जैसे -‘सिकंदर ने पोरस से की थी लड़ाई’,’गर्दिश में हो तारे ‘,
‘नैना बरसे रिमझिम रिमझिम ‘,’है इसी में प्यार की आरज़ू’
और’ जो हमने दास्तां अपनी सुनाई’,हमारी ज़िंदगी में नगीनों से शामिल हो गए जिनके ज़रिए,
वो हमेशा हमारे दिलों के क़रीब और जावेदाँ रहेंगे,
ये दिलनशीं कारवां हमें ज़िंदगी की कड़ी धूप में यूं ही छाया देता रहेगा ।

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