Radha Ashtami Vrat Katha | राधा अष्टमी व्रत कथा

Radha Ashtami Vrat Katha

Radha Ashtami Vrat Katha In Hindi | राधा अष्टमी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत राधारानी, भगवान श्रीकृष्ण की परम प्रिया सखी, के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। राधा अष्टमी की व्रत कथा निम्नलिखित है:

Radha Ashtami Vrat Katha | राधा अष्टमी व्रत कथा

प्राचीन काल में वृंदावन में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहता था। वे दोनों भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के परम भक्त थे। उनकी कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण वे बहुत दुखी रहते थे।

उन्होंने कई तीर्थों की यात्रा की और संतान प्राप्ति के लिए कई व्रत और पूजा-अर्चना की, लेकिन उनकी मनोकामना पूरी नहीं हुई।एक दिन एक साधु उनके घर आए। ब्राह्मण दंपति ने साधु की सेवा की और अपनी व्यथा सुनाई।

साधु ने उनकी भक्ति देखकर प्रसन्न होकर कहा, “हे ब्राह्मण, तुम राधा अष्टमी का व्रत करो। राधारानी की कृपा से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।”साधु के कहने पर ब्राह्मण दंपति ने राधा अष्टमी का व्रत विधि-विधान से शुरू किया।

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उन्होंने भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए। फिर राधारानी और श्रीकृष्ण की मूर्ति की स्थापना कर, विधिवत पूजा की। पूजा में फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित किए। इसके बाद उन्होंने राधा अष्टमी की कथा सुनी और दिनभर उपवास रखा।

कथा के अनुसार, राधारानी का जन्म गोकुल में हुआ था। वे राजा वृषभानु और माता कीर्ति की पुत्री थीं। राधारानी का स्वरूप इतना दिव्य था कि उनके जन्म के समय आकाश में देवता पुष्पवर्षा करने लगे। राधा और श्रीकृष्ण की प्रेमलीला इतनी पवित्र और अलौकिक थी कि उनकी भक्ति करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

ब्राह्मण दंपति ने पूरी श्रद्धा के साथ यह व्रत किया। राधारानी की कृपा से कुछ समय बाद उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने सारा जीवन राधारानी और श्रीकृष्ण की भक्ति में बिताया।

Radha Ashtami Vrat Mahatva | व्रत का महत्व

राधा अष्टमी का व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए विशेष रूप से किया जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण मंदिरों में विशेष पूजा और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।

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