Lal Padmadhar Singh | लाल पद्मधर सिंह जिन्होंने गोली खाई पर तिरंगा झुकने नहीं दिया

Lal Padmadhar Singh: पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आज भी छात्रसंघ के चुनाव में चुने हुए पदाधिकारी, सबसे पहले ‘लाल पद्मधर सिंह’ के नाम की शपथ लेते हैं। विश्वविद्यालय में जब किसी भी मांग को लेकर छात्र आंदोलन करते हैं, तो वह उनकी मूर्ति के समक्ष ही इकठ्ठा होते हैं और उनके नाम का नारा लगाते हैं, उसके बाद ही आंदोलन प्रारंभ होता है।

कौन थे लाल पद्मधर सिंह | Who Was Lal Padmadhar Singh

लाल पद्मधर सिंह विंध्य क्षेत्र से संबंध रखने वाले, एक महानतम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे और 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन के समय, तिरंगे की आन बचाते-बचाते अंग्रेजों की गोलियों का शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हो गए थे। विंध्य के एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में, जिन्होंने सीने पर गोली खाई, पर अंतिम सांस तक तिरंगे को झुकने नहीं दिया।

जन्म और परिवार | Where was Lal Padmadhar Singh born | When was Lal Padmadhar Singh born

लाल पद्मधर सिंह का जन्म वर्ष 1913-1914 में तत्कालीन रीवा रियासत के सतना कृपालपुर में बघेलों से संबंधित इलाकेदार परिवार में हुआ था। कुछ स्त्रोतों के अनुसार उनका जन्म 14 अगस्त 1914 को हुआ था। वह लाल प्रद्युम्न सिंह के चार बेटों में से सबसे छोटे थे। लेकिन दुर्भाग्यवश जब वह छः माह के थे, तभी उनके पिता का दुखद निधन हो गया था। 1857 की क्रांति के समय विंध्य के प्रमुख क्रांतिकारी ठाकुर रणमत सिंह के प्रमुख सहयोगियों में से एक, लाल धीर सिंह रिश्ते में उनके बाबा लगते थे।

लाल पद्मधर सिंह की शिक्षा | Where did Lal Padmadhar Singh get his education from

उनकी प्रारम्भिक पढ़ाई कृपालपुर के निकट ही माधवगढ़ के स्कूल में हुई, यह स्कूल अब लाल लाल पद्मधर सिंह के नाम से ही जाना जाता है। उसके आगे मिडिल स्कूल की पढाई के लिए वह रीवा के मार्तण्ड स्कूल आ गए, बताया जाता है लाल पद्मधर सिंह बचपन से ही, स्वाभिमानी लेकिन विद्रोही स्वभाव के थे, लेकिन उनमें विनम्रता और संवेदनशीलता भी बहुत थी।

स्कूल प्रिंसिपल को मारी गोली

उनके इन्हीं गुणों से संबंधित एक किस्सा, हमें कुंवर रविरंजन सिंह की किताब ‘अब और तब रीवा’ से मिलता है, जिसके अनुसार- “जब वह रीवा के दरबार हाई स्कूल में पढ़ा करते थे, तभी स्कूल में एक घटना घटी, स्कूल लैब से प्रिज्म और कुछ उपकरण गायब हो गए थे। तब स्कूल के प्रिंसिपल श्री कृष्ण टोपे थे, उन्होंने इन उपकरणों की चोरी का आरोप लाल पद्मधर सिंह पर लगाया, उन्होंने अनभिज्ञता प्रकट की इसके बाद भी, प्राचार्य ने कमरे की तलाशी करवाई, स्वाभिमान के धनी लाल पद्मधर सिंह को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने कमरे में रखी अपनी बंदूक उठाई और प्राचार्य टोपे पर ही फायर कर दिया, गनीमत थी प्राचार्य के घाव ज्यादा गहरे नहीं थे, वह केवल घायल हुए।

तीन वर्ष की हुई थी सजा

लेकिन इसके बाद पद्मधर सिंह के विरुद्ध मुकदमा चला और उन्हें तीन वर्ष की सजा हुई, लेकिन अच्छे आचरण की वजह से वह केवल डेढ़ वर्ष में रिहा हो गए। जेल से छूटने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई करने चले गए।

महात्मा गांधी ने की भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत

इसी बीच 9 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी ने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की और ‘करो या मरो’ का नारा दिया। गाँधी के एक आवाज पर देशवासी अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़े हुए। गांधी जी ने छात्रों से भी इस आंदोलन में साथ आने का आह्वान किया, गांधी की एक पुकार में देशभर के स्कूल और कालेजों में पढ़ने वाले छात्र और विद्यार्थी आजादी की समर में कूद पड़े।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने बनाई जुलूस की योजना

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 31 छात्रों ने, छात्रनेता पद्मधर सिंह के नेतृत्व में 11अगस्त की रात को यह योजना बनाई की वह अगले दिन, यानि की 12अगस्त को इलाहाबाद की कचहरी अर्थात कलेक्ट्रेट तक यात्रा निकालकर तिरंगा फहराएंगे। अगले दिन विश्वविद्यालय परिसर में छात्र-छात्राएं इकठ्ठा होने लगे। छात्र दो दलों में बटें, एक दल कचहरी की तरफ बढ़ा और दूसरा दल कर्नलगंज प्रेस की ओर निकला।

अंग्रेजों की लगी छात्रों के जुलूस की भनक

अंग्रेजों को भी छात्रों के इस आंदोलन का पता चल गया, जिसके बाद कचहरी को पुलिस छावनी में बदल दिया गया। इलाहाबाद का कलेक्टर तब डिक्शन नाम का एक ब्रिटिश ऑफिसर था और पुलिस कप्तान थे एस. एन. आगा उन्हें ही क्रांतिकारियों को रोकने का जिम्मा दिया गया था।

नयनतारा सहगल कर रहीं थीं जुलूस का नेतृत्व

कलेक्ट्रेट की तरफ जा रहे छात्रों के दल को हाथों में तिरंगा थामे लीड कर रहीं थीं नयनतारा सहगल। नयनतारा सहगल पंडित जवाहरलाल नेहरू की भांजी थीं। उनके साथ लाल पद्मधर सिंह चल रहे थे, जो योजनानुसार अगले दिन की तिरंगा यात्रा को लीड करने वाले थे। छात्रों का जुलूस ‘भारत माता की जय’ ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों के साथ आगे बढ़ रहा था।

अंग्रेजों ने किया छात्रों पर लाठीचार्ज

छात्रों को लक्ष्मी टॉकीज के पास ही रोक दिया गया और वापस लौट जाने के लिए कहा गया। लेकिन चेतावनी के बाद भी जब जुलूस नहीं रुका तो डिक्सन ने लाठी चार्ज का आदेश दिया, छात्रों पर लाठियां बरसाई जाने लगीं लेकिन मतवाले युवा क्रांतिकारियों पर इसका असर नहीं हुआ और वह निरंतर आगे बढ़ते रहे।

अंग्रेजों के इशारे पर शरारती तत्वों ने पुलिस पर किया पथराव

लेकिन इसी बीच अंग्रेजों के आदेश पर आंदोलनकारियों के बीच कुछ शरारती तत्व भी शामिल हो गए थे, उनका काम माहौल को बिगाड़ना था, जिससे पुलिस को छात्रों पर एक्शन लेने का बहाना मिल जाए। और हुआ भी वही, जो अंग्रेज चाहते थे, रैली में शामिल इन शरारती तत्वों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। अंग्रेजी पुलिस को बहाना ही तो चाहिए था, लिहाजा क्रांतिकारियों को हटाने के लिए डिक्सन ने फायरिंग का आदेश दे दिया, गोली से बचने के लिए नयनतारा सहगल समेत सभी छात्र ज़मीन पर लेट गए।

लाल पद्मधर सिंह जिन्होंने गोली खाई पर तिरंगा झुकने नहीं दिया

नयनतारा सहगल को कवर दे रहे पद्मधर सिंह ने जब देखा कि तिरंगा नीचे गिर रहा है तो उन्होंने उसे थाम लिया और गोलीबारी बंद होने के बाद यह कहते हुए “मारो देखते हैं कि कितनी गोलियां फिरंगियों की बंदूकों में हैं” और इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगे।

पुलिस कप्तान की गोली का हुए शिकार

पुलिस के लगातार चेतावनी के बाद भी जब पद्मधर सिंह नहीं रुके तभी पुलिस कप्तान द्वारा चलाई गई लगातार तीन गोलियां उनके सीने में आकर लगी, उनके साथी उन्हें पार्क के पीपल के वृक्ष के नीचे ले गए, जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन अंतिम तक उन्होंने तिरंगा नहीं छोड़ा था। विंध्य का यह लाल, तिरंगे की आन-बान और शान रखते हुए भारतभूमि पर कुर्बान हो गया। बाद में छात्रों के अथक प्रयास के बाद, गंगा नदी के तट पर उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया।

इलाहाबाद पर टूटा था अंग्रेजों का कहर

लेकिन लाल पद्मधर सिंह की शहादत के बाद इलाहाबाद शहर में और वहाँ के लोगों पर क्रुद्ध अंग्रेजी सरकार का ऐसा कहर टूटा क़ि, उससे त्रस्त होकर वहाँ के एक डिप्टी कलेक्टर आमिर अली ने सरकारी नौकरी से अपना त्यागपत्र दे दिया था। इस बात की जानकारी हमें देश के वरिष्ठ पत्रकार और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पदाधिकारी रहे अरविंद सिंह के माध्यम से मिली।

पद्मधर सिंह की शहादत से विंध्य में भड़की क्रांति

विंध्य के इस लाल के शहादत की खबर यहाँ रीवा में दो दिन बाद 14 अगस्त को आई, इस खबर ने विंध्य के युवाओं को उद्वेलित कर दिया, यहाँ के युवा लाल पद्मधर सिंह को अपना आदर्श मानकर, क्रांति के समरांगण में अमर शहीद बनने के लिए कूद पड़े और विंध्य में भारत छोड़ो आंदोलन की ज्वाला धधक उठी।

देश को माना अपनी माँ

कहते हैं इलाहाबाद में पढ़ने के बाद दौरान उनके घर वाले, उनकी शादी के लिए उन पर दबाव डालते थे, लेकिन वह हर बार मना कर देते थे, अपनी माँ के मृत्यु के बाद उन्होंने भारत माँ को अपनी माँ मान लिया था और जब तक यह माँ गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी है, वह विवाह कैसे कर सकते हैं। अपनी मन की इस दुविधा को वह अपने मित्र लक्ष्मीकांत मिश्र को सात अगस्त 1942 को लिखे गए एक पत्र से व्यक्त करते हैं, कि माँ के जीवित वह दुविधा में थे, लेकिन अब वह पूरी तरह खुद को देश के लिए समर्पित कर देंगे।

विंध्य की युवाओं की प्रेरणा थे लाल पद्मधर सिंह

लाल पद्मधर सिंह के शहादत के इतने वर्षों बाद भी, उनकी तपिश आज भी महसूस की जा सकती है, इसी का परिणाम है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र आज भी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। लेकिन फिर भी भारतवर्ष के वृहद इतिहास में, लाल पद्मधर सिंह भुला दिए गए, लेकिन विंध्य की माटी ने उन्हें नहीं भुलाया। रीवा के ठाकुर रणमत सिंह कॉलेज मेन बिल्डिंग में उनकी एक प्रतिमा लगी है। रीवा नगर निगम के सामने ही उनके नाम से एक पार्क भी है जो कई आंदोलनों का साक्षी रहा है। ऐसा ही एक पार्क कृपालपुर सतना में हैं. रीवा रोड सतना में स्थित गवर्नमेंट पीजी कॉलेज का नाम भी लाल पद्मधर सिंह के नाम पर रखा गया है।

आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने परिवार को दी चाँदी की शील्ड

अमर शहीद की इस शहादत को नमन करते हुए, आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने अमर शहीद की इस शहादत को नमन करते हुए, तत्कालीन अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में, उनके परिजनों को सम्मान स्वरूप चांदी की एक शील्ड दी गई थी, जो आज भी उनके वंशज, लाल पियूष सिंह के पास सुरक्षित है।

युगों-युगों तक याद रहेंगे लाल पद्मधर सिंह

11 मार्च 1958 को प्रयाग में लाल पद्मधर को आत्मबलिदान को याद करते हुए, कविवर सुमित्रा नंदन पंत ने कहा था- “स्वतंत्रता की नींव आत्म-त्याग पर आधारित है। लाल पद्मधर सिंह का नाम हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव अंकित रहेगा, वे स्वतंत्रता के लिए अपनी अनथक समर्पण की भावना के प्रतीक हैं।”

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