रीवा शहर के गुढ़ चौराहे के निकट कमसरियत में एक बावड़ी स्थित है, जिसे रानी अजब कुँवरि की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। इस बावड़ी का निर्माण रीवा के महाराज भाव सिंह पत्नी महारानी अजबकुँवरि ने करवाया था, जो महाराणा प्रताप की परपोती लगतीं थीं।
बावड़ी की स्थापत्य शैली
इस बावड़ी का निर्माण 1664 से 1670 के मध्य कभी हुआ था, यह बावड़ी राजपूत और मुगल स्थापत्य का उत्तम उदाहरण है। इसमें मालवा शैली का भी प्रभाव है। दरसल बावड़ियों का निर्माण राजस्थान और गुजरात इत्यादि में ही ज्यादा होते थे, रीवा और इसके आस-पास के क्षेत्रों में ऐसी बावड़ियाँ नहीं बनती थीं, चूंकि रानी अजब कुंवरि उदयपुर से थीं, जिसके कारण यह बावड़ी निर्मित हुई। इतिहासकार मानते हैं, रानी अजबकुँवरि की बावड़ी का निर्माण उनदिनों राजा-रानी के जलक्रीड़ा के हिसाब से हुआ था, जिसके प्रमाण है इसकी संरचना, प्रथम तल में एक वर्गाकार छोटा कक्ष है जिसमें चारों ओर खिड़कियां हैं। एक की नोक तुर्क शैली की है और इसका निर्माण जलक्रीड़ा देखने के लिए करवाया गया होगा। इसमें रियासत के महराजा और महारानी बैठते रहें होंगे, इसका निर्माण ऐसे करवाया गया था कि यह वातानुकूलित है, गर्मी के दिनों में भी यहां पर ठंडक बनी रहती है। बावड़ी के झरोखे में प्रवेश के लिए शाहजहाँनी शैली से बनाए गए द्वार हैं। माना यह जाता है इसके निर्माण में देश के कई हिस्सों से कारीगरों को बुलाया गया था, जिसके कारण इसमें कई शैलियों का इसका प्रभाव है।
महाराणा प्रताप की परपोती थीं अजब कुंवरि
महाराज भाव सिंह रीवा के शासक थे, जिनका शासनकाल 1660 ईस्वी से 1690 ईस्वी तक माना जाता है, महाराज भाव के लगभग 19 विवाह हुए थे, महाराज भाव सिंह की रानियों के नाम पर ही रीवा में नृपरनियाँ मोहल्ला आबाद है। महाराज की इन रानियों में से रणावत महारानी अजब कुंवरि का सर्वोच्च स्थान था, रानी अजबकुँवरि मेवाड़ के महाराणा राज सिंह की कन्या थी, राणा राज सिंह मेवाड़ के परम प्रतापी राणा प्रताप के परपोते थे। रानी अजबकुँवरि और रीवा महाराज भाव सिंह का विवाह विक्रम संवत 1721 अर्थात 1664 ईस्वी में हुआ था। रानी अजब कुंवरि अपनी पुरखिन मीराबाई की तरह ही परम कृष्ण भक्त थीं और संभवतः कविताएं भी लिखा करती थीं। महारानी अजब कुंवरि का प्रभाव रियासत में बहुत था, महारानी अजब कुंवरि ने बावड़ी के अतिरिक्त भी रीवा में कई और भी निर्माण कार्य करवाए थे, जिनमें प्रमुख था एक तालाब, जिसे रानी तालाब भी कहा जाता है। हालांकि 19 विवाहों के बाद भी महाराज भाव सिंह का कोई उत्तराधिकारी नहीं था, जिसके कारण उन्होंने अपने भतीजे को गोद लिया था।
यह बावड़ी वैसे तो पुरातत्व द्वारा संरक्षित है, पर शासन और प्रशासन के उदासी का शिकार है, अराजक तत्वों और नशेड़ियों को का जमावड़ा लगा रहता है, हालांकि प्रशासन दावे सुधार के दावे जरूर करता है।