पं. शिवकुमार शर्मा जिन्होंने संतूर को घर-घर पहुंचाया

About Pt. Shivkumar Sharma In Hindi | न्याज़िया बेगम: 80 के दशक से कुछ ऐसी फिल्में आईं जिनका संगीत बरबस ही हमें अपनी ओर खींच लेता है। ज़रा गुनगुना के देखिए – “देखा एक ख़्वाब तो ये …” “तेरे मेरे होंठों पर मीठे मीठे गीत मितवा ….” ” मोरनी बागा मा बोले …” “हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं …” “तू मेरे सामने मैं तेरे सामने ..”
इन गीतों को संजोने वाली फिल्में थीं :- सिलसिला, चांदनी, लम्हे, फासले और डर जिनका जादू आज भी बरक़रार है। शायद इसलिए कि इनकी धुनों में शास्त्रीयता की मिठास है और इसे साधने के पीछे दो महान संगीतकारों का हांथ है, जी हां ये उस्ताद थे बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चौरसिया और संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा जो बतौर कलाकार पहले भी एक दूसरे के साथ जुगलबंदी कर चुके थे।

शिव-हरि की जोड़ी

पंडित शिव कुमार शर्मा ने 1967 में हरि प्रसाद चौरसिया और गिटारवादक बृज भूषण काबरा के साथ मिलकर एक कॉन्सेप्ट एल्बम ‘कॉल ऑफ़ द वैली’ तैयार किया था, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक बन गई।
पंडित शिव कुमार जी ने वी. शांताराम की 1955 की फिल्म “झनक झनक पायल बाजे ” के एक दृश्य के लिए पृष्ठभूमि संगीत तैयार किया था, जहाँ गोपी कृष्ण ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया था। इसके अलावा, भी हरि प्रसाद जी के साथ मिलकर आपने कई हिंदी फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया। लेकिन कमाल तो तब हुआ जब आप दोनों ने बतौर जोड़ी संगीत दिया जिसकी शुरुआत हुई 1981 की फिल्म सिलसिला से और ये संगीत कहलाया शिव-हरि का।

पृष्ठभूमि:-

ब्रिटिश भारत के जम्मू और कश्मीर रियासत के जम्मू में 13 जनवरी 1938 को, एक डोगरा परिवार में पैदा हुए शिव कुमार जी के पिता उमा दत्त शर्मा भी गायक और तबला वादक थे। इसलिए जब शिव कुमार जी सिर्फ़ पाँच साल के थे तब से उनके पिता ने उन्हें गाना और तबला बजाना सिखाना शुरू कर दिया था। और जब संतूर सिखाने की बारी आई तो एक हथौड़े वाले डलसीमर से शुरुआत की जो एक लोक वाद्य था और इसकी उत्पत्ति प्राचीन फारस में हुई थी। पर इसे कश्मीर में भी बजाया जाता था लेकिन इस तरह नहीं जैसा आपने बजाया। इसके ज़रिए उन्होंने ऐसी अद्भुत शैली को अपनाया जो पारंपरिक कश्मीरी लोक संगीत के साथ सूफी नोटों को एकीकृत करती थीं। बस फिर क्या था शिव कुमार जी को पिता जी ने यही बजाने को कहा, हालांकि इसे शास्त्रीय संगीत में उतारना आसान नहीं था क्योंकि ये उस समय भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए नया
था।

कैरियर की शुरुआत

ख़ैर शिव कुमार जी ने तेरह बरस की उम्र में संतूर सीखना शुरू किया और 1955 में मुंबई में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन भी किया, इस लाइव परफॉर्मेंस में आपने राग यमन को प्रस्तुत किया और मुंबई के अपने दर्शकों को ‘एनकोर!’ चिल्लाने पर मजबूर कर दिया जिसके बाद से ही शिव कुमार जी को संतूर को एक लोकप्रिय भारतीय शास्त्रीय संगीत वाद्ययंत्र के रूप में पेश करने का श्रेय दिया जाता है। पिता की उंगली थामे यह तक आने के बाद उन्होंने 1960 में अपना पहला एकल एल्बम रिकॉर्ड किया। फिर उन्हें तबला वादक ज़ाकिर हुसैन और बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया का साथ मिला और आपकी जुगलबंदी ने हमें कई बेमिसाल एल्बम दिए।

फिल्म संगीत से कैसे जुड़ा नाता :-

शिव कुमार जी ने संगीत निर्देशक एसडी बर्मन के आग्रह पर 1965 की फिल्म “गाइड ” में लता मंगेशकर द्वारा गाए गए लोकप्रिय गीत “मो से छल किये जाए” में तबला भी बजाया। उन्होंने कहा- “शास्त्रीय संगीत मनोरंजन के लिए नहीं है। ये आपको एक ध्यान यात्रा पर ले जाता है, यह तो महसूस करने की चीज़ है। 1968 को ” लॉस एंजिल्स में किया गया संगीत कार्यक्रम, विदेश में उनका पहला प्रदर्शन था, इसके बाद उन्होंने 1970 में इंग्लैंड का दौरा किया। फिर 1996 में वो वक़्त भी आया जब पंडित जी और उनके बेटे राहुल ने नॉर्वे में एक मंच पर पहली बार ‘बराबर’ के तौर पर संतूर बजाया और सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गए। उनके दूसरे बेटे रोहित, सितार वादक हैं।

सम्मान:-

पंडित शिव कुमार शर्मा को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें 1985 में अमेरिका के बाल्टीमोर शहर की मानद नागरिकता मिली। 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1991 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री और 2001 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
यूं तो अपनी मंज़िल ए मकसूद पर पहुंचकर वो 84 साल की उम्र में 10 मई 2022 को इस दुनिया ए फ़ानी से कूच कर गए थे लेकिन संगीत प्रेमियों के दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे साज़ों में धड़कते रहेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *