Site icon SHABD SANCHI

ढोंग बहुत दिन तक नहीं टिकता

न्याज़िया

मंथन। आपको नहीं लगता कोई कितना भी दिखावा करले, अपने असल चरित्र को छुपाने का प्रयास करले लेकिन वो छुपता नहीं एक न एक दिन इंसान का सच्चा चरित्र सामने आ ही जाता है , यानि कोई अच्छा है तो बुरा नहीं बन सकता और बुरा है तो अच्छा नहीं बन सकता भले ही कुछ पल के लिए ऐसा कर भी ले लेकिन लंबे वक़्त तक के लिए तो ऐसा नहीं ही कर सकता ।

चरित्र को ऐसा निखारें

तो क्यों न अपने व्यवहार को अपने चरित्र को ऐसे निखारें कि किसी दिखावे या ढोंग की ज़रूरत ही न पड़े ,हम कम से कम ख़ुद से इतने मुतमईन हों संतुष्ट हो कि हमें दुनिया के लिए खुद को बदलना न पड़े ,हम जैसे हैं वैसे ही ख़ुद को दुनियां के सामने पेश कर सकें क्योंकि ये ढोंग उस धूल की तरह है जो सच्चाई की बारिश से पलक झपकते ही धुल जाता है और फिर वो असली किरदार दुनिया के सामने आ जाता है जिसे हम छुपाना चाहते थे और ये शर्मिंदगी के सेवा हमें कुछ नहीं देता ।

ढोंग करते हुए जीना मुश्किल है

जहां एक तरफ सच्चाई सुख देती है सुकून देती है वहीं दूसरी तरफ झूठ ,नाटक या दिखावा, बेक़रारी, तकलीफ और दुख देता है ,इसलिए अगर हम अपने चरित्र को ऊंचा उठाने की कोशिश भी करते हैं तो हमें आत्म संतुष्टि और सुख मिलते हैं जिससे न केवल हम चरित्रवान होते हैं बल्कि हम दुनिया के लिए और दुनिया हमारे लिए सहल और सहज हो जाती है ।

सच को आत्मसात करने से दूरदर्शिता बढ़ती है

जब हमारे लिए दुनिया की उलझने आसान होनी लगती है या हमें दुनिया समझ में आने लगती है तो हमें हमारे रास्ते , उद्देश्य या मंज़िल भी साफ दिखाई देने लगती है वहां झूठ की कोई धुंध नहीं होती हमें कोई अपना दुश्मन नहीं लगता क्योंकि हमें किसी को कुछ झूठ में जताने की ज़रूरत नहीं पड़ती ,हम जैसे हैं वैसे ही दुनिया को फेस करते हैं और हरदिल अज़ीज़ होते हुए सच्चे रस्ते पर आगे बढ़ते हैं ,कामयाब भी होते हैं क्योंकि जहां बैर नहीं वहीं उन्नति होती है। ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

Exit mobile version