Yashwant Verma के खिलाफ महाभियोग की तैयारी: संसद के मॉनसून सत्र में प्रस्ताव

केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के खिलाफ संसद के आगामी मॉनसून सत्र (Monsoon Session) में महाभियोग प्रस्ताव (Justice Yashwant Varma Impeachment Motion) लाने की तैयारी शुरू कर दी है। यह कदम दिल्ली में उनके सरकारी आवास पर मार्च 2025 में आग लगने की घटना के बाद जली हुई नोटों की बोरियों (Justice Yashwant Varma Burnt Cash Case ) बरामद होने के बाद उठाया गया है। इस मामले ने न्यायपालिका और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।

14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास, 30 तुगलक क्रीसेंट (30 Tughlak Crescent), में आग लगने की घटना के बाद स्टोर रूम से जली हुई नोटों की गड्डियां मिली थीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने अपनी 64 पेज की रिपोर्ट में कहा कि स्टोर रूम पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण था। समिति ने इसे गंभीर कदाचारमानते हुए उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की।

जांच समिति की रिपोर्ट 4 मई 2025 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) को सौंपी गई, जिन्होंने इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा। जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों से इनकार किया है और दावा किया कि न तो उन्हें और न ही उनके परिवार को कैश के बारे में कोई जानकारी थी। उन्होंने कहा कि स्टोर रूम, जो मुख्य घर से अलग है, किसी के भी लिए सुलभ था।

केंद्र सरकार ने लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो महाभियोग प्रस्ताव के लिए जरूरी है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने बताया कि प्रमुख विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए सैद्धांतिक सहमति दे दी है। कांग्रेस के सांसद अभिषेक सिंघवी और मणिकम टैगोर ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने की सलाह दी थी, ताकि “संवैधानिक अपमान” से बचा जा सके।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने इस मामले को “न्यायपालिका की नींव को हिला देने वाला” बताते हुए तत्काल FIR दर्ज करने की मांग की थी। हालांकि, 1990 के दशक के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के कारण बिना न्यायपालिका की अनुमति के जज के खिलाफ FIR दर्ज नहीं की जा सकती।

कांग्रेस ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने का फैसला किया है, लेकिन उसने सरकार पर “चयनात्मक कार्रवाई” का आरोप लगाया है, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही एक अन्य जज शेखर यादव के खिलाफ “हेट स्पीच” के लिए महाभियोग प्रस्ताव पर सरकार चुप है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में FIR की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास है।

मॉनसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त 2025 तक चलेगा, जिसमें यह प्रस्ताव पेश हो सकता है। यह भारत में किसी सिटिंग जज के खिलाफ महाभियोग की दुर्लभ प्रक्रिया (Rare Impeachment Process) होगी, जो न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही (Judicial Accountability) पर सवाल उठा रही है।

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