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Pope Francis is no more: 88 वर्ष की उम्र में हुआ निधन, सादगी और सेवा की मिसाल बने

कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वे लंबे समय से कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे, जिनमें निमोनिया, एनीमिया और फेफड़ों की बीमारी प्रमुख थीं। उन्हें 14 फरवरी को जमील अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से पूरी दुनिया में शोक की लहर फैल गई है।

सादगी भरा जीवन, महान व्यक्तित्व

पोप फ्रांसिस को उनके सादे जीवन और विनम्र स्वभाव के लिए जाना जाता था। पोप बनने के बाद भी उन्होंने वेटिकन सिटी के भव्य पैलेस में रहने से इनकार कर दिया और सेंट मार्था गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया। वे लग्जरी जीवनशैली से हमेशा दूर रहे और आम लोगों की तरह रहना और यात्रा करना उनकी पहचान बन गया था। वे सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते थे, साधारण वस्त्र पहनते थे और अपने हर व्यवहार में एक सामान्य व्यक्ति की तरह दिखते थे। दुनियाभर में उनकी इस विनम्रता की सराहना की जाती रही।

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

पोप फ्रांसिस का असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में हुआ था। उनके माता-पिता इटली से अर्जेंटीना अप्रवासी के रूप में आए थे और यहीं बस गए थे। वे एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से थे, जिसने उन्हें मानवीय संवेदनाओं और सहानुभूति का पाठ पढ़ाया।

पादरी बनने से पहले का जीवन

पोप बनने से पहले उनका जीवन बेहद दिलचस्प रहा। उन्होंने एक नाइट क्लब में बाउंसर के रूप में काम किया। इसके अलावा वे एक केमिकल लैब में भी काम कर चुके थे। पढ़ाई के बाद उन्होंने अर्जेंटीना के एक विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी और साहित्य जैसे विषय पढ़ाए। यह अनुभव उनके भीतर गहराई से सोचने और इंसानी व्यवहार को समझने की क्षमता लाया, जो बाद में उनके नेतृत्व में स्पष्ट रूप से दिखा।

धार्मिक जीवन की शुरुआत और पोप की उपाधि

21 वर्ष की उम्र में पोप फ्रांसिस ने जेसुइट समुदाय का हिस्सा बनकर धार्मिक जीवन की शुरुआत की। उन्होंने ब्यूनस आयर्स में पादरी के रूप में कार्य किया और 2001 में पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा उन्हें कार्डिनल नियुक्त किया गया। इसके बाद 2013 में वे 266वें पोप बने और कैथोलिक चर्च का नेतृत्व संभाला।

विश्व समुदाय के लिए एक प्रेरणा

पोप फ्रांसिस न सिर्फ धार्मिक मामलों में, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर भी खुलकर अपनी राय रखते थे। जलवायु परिवर्तन, गरीबों के अधिकार, प्रवासियों की मदद और युद्ध विरोधी सोच में उनकी भूमिका अहम रही। वे एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जिन्होंने आधुनिक दौर में चर्च को आम जनता से जोड़ने की कोशिश की।

पोप फ्रांसिस का निधन सिर्फ एक धर्मगुरु के जाने की खबर नहीं है, बल्कि यह सादगी, सेवा और करुणा की एक महान मिसाल के अंत की खबर है। उन्होंने दिखाया कि बड़े पद पर रहकर भी एक साधारण और मानवीय जीवन जिया जा सकता है। उनकी विरासत आने वाले समय में भी लाखों लोगों को प्रेरित करती रहेगी।

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