‘पिया का घर’ फिल्म, जो बड़े महानगरों में रहने वाले संयुक्त परिवार के नवविवाहितों की परेशानी को बताती है

‘Piya Ka Ghar’ Film Story In Hindi | न्याज़िया बेगम: आज हम आपके लिए लाए हैं ऐसी फिल्म, जिसमें पति पत्नी ही परेशान हैं निजता के लिए, भरे पूरे घर में जहां प्राइवेसी नाम की चीज़ नहीं। इस फिल्म के ज़रिए ये मुद्दा युवाओं को बहुत आकर्षित करता है, क्योंकि ये हैं माया नगरी की पृष्ठभूमि उसकी वो माया जिसमें हर युवा खिंचा चला आता है। इस फिल्म की बात करें तो इसमें मुम्बई की एक चाल, सिर्फ चाल ही नहीं, मालती के पिया का घर भी है, बेशक आप हमारा इशारा समझ गए होंगे ये है।

मराठी फिल्म का रीमेक थी यह फिल्म

1972 में राजश्री प्रोडक्शंस के बैनर तले, रुपहले पर्दे पर जगमगाई रोमांटिक कॉमेडी फिल्म “पिया का घर”, जिसका निर्देशन किया है बासु चटर्जी ने, जिसमें अनिल धवन और जया बच्चन ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। ये फ़िल्म राजा ठाकुर की मराठी फ़िल्म “मुंबईचा जवाई” की रीमेक है। ये 1970 के दशक के दौरान माध्यम वर्ग के मुंबई में रहने और उनके जीवन की कठिनाइयों को एक हास्य पारिवारिक नाटक के रूप में दर्शाती है।

फ़िल्म और संगीत विशेषज्ञ राजेश सुब्रमण्यम के अनुसार- इस फिल्म में मुख्य भूमिका के लिए अमोल पालेकर सबकी पहली पसंद थे, लेकिन किसी ग़लतफहमी के कारण चटर्जी ने अनिल धवन को कास्ट किया।

‘पिया का घर’ फिल्म की कहानी


कहानी कुछ यूं है कि, एक मैच मेकर के ज़रिए राम और मालती का रिश्ता उनके परिवार वालों की मर्ज़ी से तय होता है। दोनों पहली मुलाक़ात में ही एक दूसरे को दिल दे बैठते हैं। हालांकि दोनों के परिवेश में बहोत फर्क है, मालती गांव के बहुत बड़े घर और परिवार में रहती है। जबकि राम मुंबई में एक चाँल में अपने बड़े से परिवार यानी माता-पिता, दो भाई, एक भाभी, तीन चाचा और दो चाची के साथ रहता है। जो एक कमरे के अपार्टमेंट में पार्टीशन कर करके साथ रहते हैं। मालती के घर वाले राम का ये ठिकाना देखे बिना ही शादी के लिए तैयार हो जाते हैं। दोनों की शादी हो जाती है, ये सोचकर कि लड़का अच्छा है, चूंकि अपार्टमेंट में बहुत कम जगह बची है, इसलिए नवविवाहित जोड़े को रसोई में सोने के लिए मजबूर होना पड़ता है। राम बहुत कोशिश करता है मालती के साथ अकेले में सुकून के दो पल बिताने की, पर ये मुमकिन नहीं हो पाता, बल्कि इस चक्कर में दोनों का मज़ाक भी बनता है और फिल्म हमें खूब हंसाती भी है।

बात तब बिगड़ जाती है जब एक दिन मालती के ताऊ जी उसकी चाल में आते हैं और मालती की आंखों में आंसू देख लेते हैं। फिर उनका रहन-सहन देखकर बर्दाश्त नहीं कर पाते और कहते हैं, कि उनकी बेटी बड़े ही नाज़ों से पली है और वो इस तरह से यहां नहीं रह पाएगी। इसलिए वो उसे अपने साथ कल ही गांव ले जा रहे हैं। इस पर राम की मां अपने पति यानी राम के पिताजी से कहती है, कि वो कई दिनों से कह रही थी कि तीर्थ करने चलो तो उनका कमरा खाली हो जाए और राम और मालती उसमें कुछ दिन तो चैन से रह सकें। मगर उन्होंने नहीं सुनी फिर भी उन्हें समझ नहीं आता, और वो कहते हैं कि आखिर बड़ी बहू भी तो रह रही है, उसे तो कोई परेशानी नहीं हुई, फिर छोटी बहु को क्या दिक्कत है। पर वो समझते हैं कि बड़ी बहू यहीं की पाली बड़ी है मॉडर्न है, अपने पति के साथ ही बाहर काम भी करती है। तो उन्हें एक दूसरे की कमी उतनी नहीं खलती और फिर उनकी कौन अभी शादी हुई है, इन बातों के बाद ये निष्कर्ष निकालता है, कि कल जब ताऊ जी मालती को लेने आएंगे तो वो उन्हें ये कह कर कुछ दिनों के लिए टाल देंगे, कि जब वो तीर्थ दर्शन करके आयेंगे तब वो मालती को ले जाएंगे। जब तक वो घर संभालेगी। दूसरी तरफ मालती की जेठानी भी ये प्लान बनाती है, कि वो क़रीब दो महीनों के लिए अपने मायके चली जाएगी और उसका पति अपने दोस्त के घर। ताकि कुछ दिनों के लिए उनका कमरा खाली हो जाए, उधर राम भी ताऊ जी को भगाने की तरकीब लगाता है और जब दूसरे दिन ताऊ जी आते हैं, मालती को लेने तो सब अपनी अपनी तरफ से ताऊ जी को अपने घर छोड़ के जाने की बात कहने लगते हैं। ताकि राम और मालती को साथ में वक्त बिताने का मौका मिल सके, ताऊ जी नहीं मानते, वो कहते है दो महीने बाद क्या होगा? फिर तुम लोग इस बिल में घुस जाओगे जहां मेरी बेटी खुश नहीं रह सकती। इससे बड़े कमरे तो हमारे यहां जानवरों के लिए बने हैं, राम तुम मेरे साथ चलो नौकरी भी दे दूंगा और घर भी।

पर मालती ये सब सुनकर कहती है- ताऊ जी अब यही मेरे अपने हैं जो मेरे लिए अपनी खुशियां सुख सुविधाएं छोड़ने को तैयार हैं, इन्हें छोड़कर मैं कहीं नहीं जाऊंगी, यही मेरे पिया का घर है। बस फिर क्या था ताऊ जी समझ जाते हैं कि ज़िंदगी प्यार से गुज़ारने के लिए बड़े दिल की ज़रूरत होती है। वहां जगह होनी चाहिए, घर में आज नहीं है तो कल हो ही जाएगी। एक दूसरे के लिए प्रेम और समर्पण ही जीवन है। उनके जाते ही बड़ी भाभी, राम और मालती को घर में बंद करके सबको बहाने से ड्रामा देखने चली जाती है। राम के माता पिता घर में ताला देखते हैं, तो वो भी घूमने चले जाते हैं और राम और मालती को वो पल मिल गए जिनकी उन्हें तलाश थी। मालती आज अपने पिया के घर की रानी बन ही गई थी।

गीतों की बात करें तो

इस फिल्म में गीत “ये जीवन है” किशोर कुमार की आवाज़ में है, जिसे 2022 की फिल्म “उंचाई” में कहानी के कथानक कोव्यक्त करने के लिए भी इस्तेमाल किया गया था। किशोर कुमार की आवाज़ में ही है गीत “बम्बई शहर की”, लता मंगेशकर ने गाया है गीत “पिया का घर” और मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के युगल स्वर में है, बेहद खूबसूरत नग़्मा “ये जुल्फ कैसी है”। जीवन के रंग-रूप को गीतों में पिरोया है गीतकार आनंद बक्शी ने, इन दिलकश नग़्मों को मौसिक़ी की धुनों में संजोया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। तो “पिया का घर” फिल्म देखकर आप भी लीजिए जीवन के रंगों की अनुपम अनुभूति।

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