Pitra Paksha 2025 : पितृपक्ष में नाखून-बाल काटना क्यों है वर्जित ? जानें धार्मिक-आध्यात्मिक व वैज्ञानिक कारण – हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह अवधि साल में एक बार आती है और इसे अपने पूर्वजों को याद करने, उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने और उन्हें तर्पण अर्पित करने का समय माना जाता है। पितृ पक्ष के दौरान कई धार्मिक नियमों और आचार-संहिताओं का पालन किया जाता है। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नियम है- बाल, दाढ़ी और नाखून न काटना।
यह परंपरा केवल अंधविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे गहरे धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं। यह आर्टिकल आपको बताएगा कि यह नियम क्यों बना, इसका महत्व क्या है और आधुनिक संदर्भ में इसका क्या अर्थ है।
पितृपक्ष के महत्व का भावार्थ – पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। इस अवधि में लोग अपने पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित करते हैं।
उद्देश्य – पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए दान-पुण्य और आहुतियां देना।
भावना – कृतज्ञता, शोक और श्रद्धा व्यक्त करना।
आध्यात्मिक दृष्टि से – यह समय आत्म-शुद्धि और सात्विकता का है।
शोक और श्रद्धा का प्रतीक – पितृपक्ष को हिंदू शास्त्रों में श्राद्ध कर्म के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जब किसी परिवार में मृत्यु होती है, तो परिजनों को कुछ समय तक बाल और नाखून काटने से मना किया जाता है, ताकि शोक का संकेत मिल सके। पितृ पक्ष को सामूहिक शोक का समय माना जाता है, जब हम सभी अपने पितरों को याद कर उन्हें सम्मान देते हैं। नाखून और बाल न काटना इसे शोक संवेदना का संकेत माना गया है कि व्यक्ति पितरों के प्रति विनम्र और श्रद्धावान है।
आध्यात्मिक और सात्विक दृष्टिकोण – धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष का पालन करने वाले व्यक्ति को सात्विक जीवनशैली अपनानी चाहिए। इस दौरान नए कपड़े पहनने, सजने-संवरने से परहेज करना चाहिए। शारीरिक सजावट के बजाय मन को शांत, संयमी और ध्यानमग्न रखना चाहिए। यह अवधि इंद्रिय संयम और आत्म-नियंत्रण की है।
पितरों का अनादर और उसकी मान्यता – पुराणों में कहा गया है कि पितृ पक्ष के दौरान बाल और नाखून काटना पितरों के प्रति अनादर माना जाता है। ऐसा करने से पितरों की आत्मा दुखी हो सकती है,माना जाता है कि इससे श्राद्ध कर्म का फल घट सकता है। कई परंपराओं में यह भी कहा जाता है कि इस तरह की लापरवाही से परिवार में कलह, आर्थिक कठिनाई और बाधाएं आ सकती हैं।
स्वास्थ्य और स्वच्छता के कारण – पुराने समय में धार्मिक नियमों का एक बड़ा कारण स्वास्थ्य सुरक्षा भी था। पितृ पक्ष का समय सामान्यतः मानसून के अंत और शरद ऋतु के आरंभ में आता है।इस समय वातावरण में नमी अधिक होती है और संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। पुराने जमाने में सैलून और नाई की दुकानें स्वच्छ नहीं होती थीं, इसलिए बाल और नाखून काटने से संक्रमण फैलने की आशंका रहती थी। लंबे समय तक बिना काटे बाल और नाखून भी शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं और मौसमी बदलाव में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखते हैं।

क्या करें और क्या न करें – Do’s & Don’ts – पितृ पक्ष शुरू होने से पहले पूर्णिमा के दिन बाल, नाखून और दाढ़ी ठीक से काट लें। प्रतिदिन श्राद्ध, तर्पण या कम से कम जल अर्पण करें,सात्विक भोजन करें और तामसिक चीज़ों (लहसुन, प्याज, मांस, शराब) से परहेज करें।
पितरों के नाम से दान और भोजन कराएं।
पितृ पक्ष के दौरान बाल, दाढ़ी, नाखून न काटें।
नए कपड़े, वाहन या आभूषण न खरीदें।
शुभ कार्य (शादी, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण) न करें।
अनावश्यक क्रोध, वाद-विवाद और अपवित्रता से बचें।
समकालीन संदर्भ में महत्व – आज के समय में कई लोग इन परंपराओं को केवल अंधविश्वास समझते हैं। लेकिन अगर गहराई से देखें तो इसका उद्देश्य अनुशासन, कृतज्ञता और आत्म-चिंतन को प्रोत्साहित करना है। यह हमें याद दिलाता है कि हम केवल अपने लिए नहीं जीते बल्कि उन पितरों के भी ऋणी हैं जिन्होंने हमें जन्म और संस्कृति दी।यह समय परिवार के साथ बैठकर परंपराओं को आगे बढ़ाने और अगली पीढ़ी को संस्कार देने का अवसर है।
विशेष – पितृपक्ष के दौरान बाल और नाखून न काटने की परंपरा शोक, श्रद्धा, सात्विकता और स्वास्थ्य सुरक्षा चारों का सुंदर संगम है। यह नियम हमें सिखाता है कि जीवन में कुछ समय अपने पूर्वजों के लिए,आत्मनिरीक्षण के लिए और संयमित जीवन जीने के लिए अलग रखना चाहिए। आधुनिक जीवन में भले ही समय और परिस्थितियां बदल गई हों, लेकिन इस परंपरा का भावार्थ आज भी उतना ही प्रासंगिक है। इसलिए पितृपक्ष में इस नियम का पालन केवल धार्मिक मान्यता के लिए ही नहीं बल्कि आत्मिक शांति और पारिवारिक सामंजस्य के लिए भी किया जाना चाहिए।