पितृपक्ष विशेष 2025 : पितरों में क्या करें – क्या न करें ? – हिंदू धर्म में वर्षभर केत्योहार , व्रत और पर्व केवल धार्मिक भावनाओं का ही प्रतीक नहीं होते, बल्कि जीवन को अनुशासन और सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ने का भी माध्यम होते हैं। इन्हीं पर्वों में से एक है पितृ पक्ष। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। यह अवधि प्रायः भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक (सितंबर–अक्टूबर) आती है और लगभग 15 दिनों तक चलती है। पितृ पक्ष का महत्व इस बात से है कि इस दौरान हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और दान करते हैं। यह केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि हमारे जीवन और समाज के बीच गहरे संबंधों को जोड़ने का एक माध्यम है। किंवदंती है कि इस समय पितरों की आत्माएं धरती पर अपने वंशजों के घर आती हैं और उनकी श्रद्धा व भक्ति से प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं लेकिन इस अवधि में कुछ विशेष नियम और वर्जनाएं भी बताई गई हैं, जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। यदि हम इन्हें न मानें तो पूर्वज अप्रसन्न हो सकते हैं और जीवन में बढ़ाएं आ सकती हैं। आइए विस्तार से जानें कि पितृ पक्ष में क्या करें और क्या न करें।
पितृ पक्ष में क्या करें-क्या न करें ?
शुभ कार्य न करें – विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश, भूमिपूजन, नया निर्माण या किसी भी प्रकार के मंगल कार्य इस अवधि में टाल दिए जाते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष में किए गए ऐसे कार्य अशुभ परिणाम देते हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता।
मांसाहार और शराब से बचें – इस समय मांस, शराब, अंडा और मछली का सेवन निषिद्ध है। इसके साथ ही लहसुन, प्याज, बैंगन और सरसों का साग जैसे तामसिक भोजन भी वर्जित हैं। ये पदार्थ शरीर और मन को अशुद्ध करते हैं, जिससे श्राद्ध कर्म का प्रभाव कम हो जाता है।
नई चीजें न खरीदें – नए कपड़े, आभूषण, सोना, चांदी, वाहन, जमीन या घर की खरीद इस अवधि में टाली जाती है। पितृ पक्ष को आकर्षण और विलासिता से दूर रहकर केवल पूर्वजों की सेवा-श्रद्धा को समर्पित माना गया है।
अशुभ कार्य न करें – झूठ बोलना, क्रोध करना, दूसरों का अपमान करना, हिंसा करना—ये सब पितरों का अनादर माने जाते हैं। श्राद्ध का मजाक उड़ाना या इसकी महत्ता को कम आंकना भी अशुभ फल देता है।
श्राद्ध में देरी न करें – श्राद्ध कर्म हमेशा दिन के समय, विशेष रूप से मध्यान्ह के आसपास किए जाते हैं,सूर्यास्त के बाद या देर रात में श्राद्ध करने से उसका फल अधूरा माना जाता है।
नाखून और बाल न काटें – परंपरा है कि पितृ पक्ष में शरीर का श्रृंगार या सजावट नहीं करनी चाहिए , बाल और नाखून काटना अपवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
सात्विक भोजन करें – इस समय सात्विकता और पवित्रता पर जोर दिया जाता है, पितरों को अर्पित भोजन में सामान्यतः खीर, पूड़ी, दाल, चावल, हरी सब्जियाँ और फल शामिल होते हैं,परिवार के सदस्य भी सात्विक भोजन ग्रहण करें और तामसिक चीज़ों से बचें।
तर्पण करें – तर्पण का अर्थ है पानी, तिल और कुशा से पूर्वजों को अर्पण करना,यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि मानसिक शांति और आत्मीय संतोष का साधन भी है,तर्पण करते समय पूर्वजों का नाम, गोत्र और उनका स्मरण किया जाता है।
जीवों का सम्मान करें – पितृ पक्ष में यह मान्यता है कि पितरों की आत्माएँ कौए, कुत्ते, गाय और चींटियों के रूप में धरती पर आती हैं। इसलिए इन जीवों को भोजन कराना, उनका सत्कार करना और उन्हें प्रसन्न करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
ब्रह्मचर्य का पालन करें – जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करता है उसे संयमित जीवन जीना चाहिए,वाणी, आचरण और विचार की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है।
घर की सफाई रखें – पितृ पक्ष से पहले और दौरान घर को स्वच्छ रखना अनिवार्य है,टूटी-फूटी या बंद पड़ी वस्तुएँ, जैसे घड़ियाँ, बर्तन या फर्नीचर, हटा देना चाहिए। स्वच्छ और शांत वातावरण पितरों को प्रसन्न करता है।
धार्मिक मान्यताएं और शास्त्रीय आधार
महाभारत कथा – भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध कर्म का महत्व बताते हुए कहा कि पितृ पक्ष में तर्पण करने से पितर तृप्त होकर वंशजों को लंबी आयु, संतान और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
गरुड़ पुराण – इसमें लिखा है कि जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध करता है, उसे देवताओं की पूजा के समान पुण्य प्राप्त होता है।
रामायण प्रसंग – माता सीता ने फल्गु नदी के किनारे स्वयं राजा दशरथ का पिंडदान किया था। यह प्रमाण है कि श्रद्धा ही श्राद्ध की आत्मा है।
पितृ पक्ष का आध्यात्मिक महत्व – पितृ पक्ष हमें याद दिलाता है कि हमारी जड़ें हमारे पूर्वजों में हैं,यह केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि कृतज्ञता और स्मरण का पर्व है,पूर्वजों के आशीर्वाद से ही जीवन में संतुलन, सफलता और सुख-समृद्धि आती है।
विशेष – पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन की गहरी सीख है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए। इस दौरान किए गए नियम और परम्पराएं केवल परलोक या आध्यात्मिकता के लिए नहीं, बल्कि हमारे व्यवहार, अनुशासन और सामाजिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं,अगर हम श्रद्धा, सात्विकता और संयम से पितृ पक्ष के नियमों का पालन करें, तो न केवल हमारे पूर्वज प्रसन्न होंगे बल्कि हमारे जीवन से अशांति और बाधाएं भी दूर होंगी। पितृ पक्ष का सच्चा संदेश यही है कि पूर्वजों का सम्मान करो, जीवन में सुख और समृद्धि अपने आप आएगी।