Pitra Paksha 2025 – पिता जीवित है तो पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें परिजन – हिंदू धर्म में पितृ पक्ष एक अत्यंत पवित्र समय माना गया है। यह वह काल होता है जब हम अपने पितरों (पूर्वजों) का स्मरण करते हैं और उन्हें श्रद्धा, आस्था तथा तर्पण अर्पित करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। परंतु अक्सर यह सवाल उठता है, कि “यदि हमारे पिता जीवित हैं तो क्या हमें पितृ पक्ष के नियमों का पालन करना चाहिए ?, क्या हमें श्राद्ध करना चाहिए या नहीं ?” तो धर्मशास्त्रों के अनुसार, जिनके पिता जीवित हैं, वे अपने पितरों का श्राद्ध कर्म सीधे तौर पर नहीं कर सकते, क्योंकि यह अधिकार पिता का होता है,इसकी सीधे तौर पर ये कहा जा सकता है की जिनके पिता अभी जीवित हैं उन्हें श्राद्ध या पितृपक्ष के नियम नहीं करने चाहिए । लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे पितृ पक्ष में बिल्कुल भी कुछ न करें। उनके लिए भी पूर्वजों को स्मरण करने और तर्पण करने की विशेष परम्पराएं बताई गई हैं जिन्हें इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि पिता के जीवित रहने पर पितृ पक्ष में कौन-से नियम करने चाहिए और कौन-से नहीं, साथ ही यह भी समझेंगे कि इसका आध्यात्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है।
पितृ पक्ष का महत्व – पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है,इसे महालय पक्ष भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दौरान पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान, अन्न-जल और श्राद्ध ग्रहण करते हैं। पितरों को प्रसन्न करने से परिवार में समृद्धि, संतान सुख और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। इसे ऋण त्रयोदशी का भी रूप कहा गया है, क्योंकि हम तीन ऋण – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण , चुकाते हैं।
पिता जीवित होने पर श्राद्ध क्यों नहीं किया जाता ?
धर्मशास्त्रों के अनुसार, पिता के जीवित रहते हुए पुत्र को उनके पितरों का श्राद्ध करने का अधिकार नहीं है,इसका कारण यह है कि पिता स्वयं वंश के प्रमुख प्रतिनिधि माने जाते हैं और वे ही अपने पितरों का श्राद्ध करने के अधिकारी होते हैं। यदि पुत्र पिता के जीवित रहते हुए श्राद्ध करे तो यह धर्मविरुद्ध और अपमानजनक माना जाता है। यह मान्यता भी है कि पिता जीवित हैं तो वे स्वयं वंशजों की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
किनके लिए तर्पण करना चाहिए ?
यदि आपके पिता जीवित हैं, तो भी आप अपने दादा-परदादा और अन्य पूर्वजों के लिए तर्पण कर सकते हैं।
दादा-परदादा और अन्य पूर्वज – पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा) और उनके ऊपर की पीढ़ियों के लिए तर्पण कर सकते हैं,इसके लिए जल, तिल, दूध, कुश और पुष्प का प्रयोग किया जाता है। तर्पण करते समय “ॐ पितृभ्यः नमः” का जप किया जा सकता है।
जीवित माता-पिता का ध्यान – यदि माता-पिता जीवित हैं तो उन्हें प्रतिदिन सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए,यह उनके लिए एक सरल किंतु अत्यंत फलदायी कर्म है। सूर्य अर्घ्य से घर में सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
पितृ पक्ष में क्या करें ? – सूर्यदेव को जल अर्पित करें – प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तिल और फूल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें और पितरों का स्मरण करते हुए यह कार्य अत्यंत शुभ फलदायी होता है।
दादा-परदादा का तर्पण करें – जल में दूध और तिल मिलाकर दादा-परदादा को तर्पण दें,शास्त्रों में कहा गया है कि तर्पण से पितृलोक में पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है।
दान-पुण्य करें – अन्न, वस्त्र, दक्षिणा और गौसेवा करें , ब्राह्मणों और साधु-संतों का आदर करें।
घर की शुद्धता बनाए रखें – पितृ पक्ष में घर साफ-सुथरा रखें, घर के मंदिर में रोज दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
पितृपक्ष में क्या न करें ? – जीवित पिता के श्राद्ध न करें – पिता जीवित हैं तो उनका श्राद्ध पुत्र नहीं कर सकता , यह कार्य केवल पिता का अधिकार है।

निंदा और अपमान न करें – पितृ पक्ष में साधु-संत, ब्राह्मण, गौ माता और माता-पिता का अपमान न करें , यह पितरों को अप्रसन्न करता है।
मांसाहार और नशे से दूर रहें – इस पवित्र काल में मांस, शराब और तामसिक आहार वर्जित है ,सात्विक भोजन करना चाहिए।
झूठ और क्रोध से बचें – इस अवधि में असत्य बोलना, व्यर्थ क्रोध करना और दूसरों को कष्ट पहुँचाना पितृ दोष का कारण बन सकता है।
पौराणिक संदर्भ
महाभारत – पितृ पक्ष का महत्व वर्णित है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध और तर्पण की विधियां बताई थीं।
गरुड़ पुराण और पद्म पुराण – पितरों के लिए किए गए कर्मों का विस्तृत वर्णन मिलता है,मान्यता है कि पितरों को प्रसन्न करने से यमराज भी कृपालु हो जाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – पितृ पक्ष के दौरान सुबह-सुबह सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर को विटामिन D प्राप्त होता है ,जल में तिल और कुश डालने से उसका ऊर्जा स्तर बढ़ता है और दान-पुण्य करने से सामाजिक संतुलन बना रहता है और जरूरतमंदों को मदद मिलती है।
आधुनिक जीवन में पितृ पक्ष का महत्व – आज के दौर में जब संयुक्त परिवार की परंपरा टूट रही है, तब पितृ पक्ष हमें वंश परंपरा और मूल्यों से जोड़ता है। यह समय है जब हम अपने पूर्वजों को याद करके पारिवारिक बंधन मजबूत कर सकते हैं। श्राद्ध और तर्पण की विधियों के साथ-साथ हमें पितरों की सीख और संस्कारों को भी जीवन में अपनाना चाहिए,तभी श्राद्ध की , तर्पण करना भी सार्थक होगा ।
विशेष – पितृ पक्ष केवल कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कार परंपरा का उत्सव है। यदि आपके पिता जीवित हैं तो आप उनके पितरों का श्राद्ध नहीं कर सकते, क्योंकि यह अधिकार उनका है। लेकिन आप अपने दादा-परदादा और अन्य पूर्वजों के लिए तर्पण कर सकते हैं,साथ ही, सूर्य को जल अर्पित करना, घर की शुद्धता बनाए रखना, दान-पुण्य करना और साधु-संतों का सम्मान करना,यह सब पितरों की कृपा पाने के सरल उपाय हैं। याद रखें,पितरों का सम्मान केवल कर्मकांड से नहीं, बल्कि उनके मूल्यों को अपनाने से होता है। इसलिए पितृ पक्ष का वास्तविक संदेश है कि “पूर्वजों का स्मरण करो, उनके आदर्शों पर चलो और वंश परंपरा को आगे बढ़ाओ।