जब पेशवा रघुनाथ राव ने हड़पना चाहा रानी अहिल्याबाई का राज्य

Rani Ahilyabai Holkar Story In Hindi: रानी अहिल्याबाई होल्कर, जिन्हें राजमाता और लोकमाता भी कहा जाता है। उनका कुशलतापूर्ण और न्यायपूर्ण शासन मालवा में आज भी याद किया जाता है। रानी होने के बाद भी वह साध्वी जैसे रहीं। देशभर में कई मंदिर, मठों और धार्मिक स्थलों का उन्होंने निर्माण करवाया। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब पेशवा ने उनका राज्य हड़पना चाहा, ऐसी स्थिति में रानी ने बहुत ही धैर्यपूर्वक और सूझबूझ से काम लिया।

कौन थीं अहिल्याबाई होल्कर

वह इंदौर के होल्कर सरदार मल्हारराव होल्कर की पुत्रवधू थीं। 1754 में पति खांडेराव की मृत्यु के बाद वह सती होना चाहती थीं, लेकिन उनके श्वसुर मल्हारराव ने पुत्रशोक का हवाला देते हुए उन्हें रोक लिया। बाद में 1766 में उनके श्वसुर मल्हारराव होल्कर की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद वह अपने पुत्र मालेराव को गद्दी में बिठाकर संरक्षिका के तौर पर राज्य चलाने लगीं, पर विधि का विधान लगभग 6 माह बाद ही उनके पुत्र का भी निधन हो गया। जिसके बाद मालवा राज्य की बागडोर तुकोजी होल्कर की मदद से वह स्वयं संभालने लगीं।

उनके श्वसुर मल्हारराव उनपर अपने पुत्र से भी ज्यादा भरोसा करते थे। उन्होंने ही अहिल्याबाई को राज-काज और प्रशासन की शिक्षा दी थी। अहिल्याबाई अपने श्वसुर के समय से ही राज्य प्रबंध में उनकी मदद किया करती थीं।

पुत्र मालेराव के मृत्यु से दुखी थीं रानी अहिल्याबाई

बात उस समय की है, जब अहिल्याबाई होल्कर के पति, श्वसुर और बेटे का भी देहांत हो गया था। रानी अहिल्याबाई इस परिस्थिति से अत्यंत दुखी थीं। लेकिन उसके बाद भी उन्होंने राज्य का प्रशासन बहुत कुशलता पूर्ण और न्यायपूर्वक संभाल रहीं थीं। लेकिन रानी अहिल्याबाई के शासन संभालने के कारण राज्य के कई दुष्ट और लोभी प्रकृति के कर्मचारी और सरदार दुखी भी थे और लगातार विद्रोही तेवर अपना रहे थे।

कई मराठा सरदार ने किया विद्रोह

विद्रोही लोगों का नेतृत्व कर रहा था, गंगो बा चंद्रचूर्ण तात्या, जो मल्हारराव होल्कर के समय से ही राज्य का विश्वासपात्र था। उसे लग रहा था पुत्र के मृत्यु से दुखी और किसी पुरुष उत्तराधिकारी केव आभाव में रानी अहिल्याबाई राज्य की बागडोर उसके हाथों में ही देंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बल्कि रानी स्वयं अपने दुखों को भुलाते हुए प्रजा के दुखों की चिंता कर रहीं थीं।

गंगोबा तांत्या का षड्यन्त्र

लालचवश गंगोबा ने होल्कर राज्य हड़पना चाहता था, लेकिन उसमें खुद इतनी ताकत नहीं थी। इसीलिए उसने पेशवा के चाचा रघुनाथ राव को उकसाया, जो उस समय मराठा राज्य का संरक्षक था। दरसल पानीपत के युद्ध के बाद ही पेशवा बालाजी बाजीराव का हृदयघात से मृत्यु हो गई थी। उसके जगह पेशवा बना उसका अल्पायु लड़का माधवराव, लेकिन अनुभव ना होने के वजह से रघुनाथ राव पेशवा का संरक्षक बनाया गया।

पेशवा रघुनाथराव का मालवा अभियान

मध्यभारत के मालवा में स्थित होल्कर राज्य रानी अहिल्याबाई के संरक्षण में फल-फूल रहा था। उनके कुशल प्रशासन से राज्य की आय भी ठीक थी। पेशवाओं की आर्थिक स्थिति उस समय काफी डांवाडोल थी, ऊपर से रघुनाथ राव ने सोचा इंदौर में कोई पुरुष उत्तराधिकारी तो कोई बचा नहीं इसीलिए राज्य को जब्त कर लेना चाहिए।

इसी उद्देश्य से वह बड़ी फौज लेकर इंदौर की तरफ बढ़ा, उसका मार्गदर्शन करने के लिए भला गंगो बा साथ ही था। पुणे से चलकर रघुनाथ राव ने नर्मदा के किनारे अपना पड़ाव डाला।

रानी ने लिया धैर्यपूर्वक सूझ-बूझ से कार्य

पेशवा के आक्रमण की जानकारी जब रानी अहिल्याबाई को लगी, उस समय इंदौर की सेना तुकोजी के नेतृत्व में किसी अभियान पर थी। लेकिन रानी विचलित नहीं हुईं और उन्होंने बड़े ही धैर्यपूर्वक स्थिति को संभाला। तुकोजी होल्कर को पत्र भेजकर इस स्थिति के बारे में अवगत करवाया गया। और ग्वालियर के मराठा सरदार महादजी सिंधिया से भी मदद मांगी गई। लेकिन इन लोगों को जल्द आ पाना संभव नहीं था, जबकि रघुनाथ राव होल्कर राज्य में प्रवेश कर चुका था।

पेशवा रघुनाथ राव को लिखा मनोवैज्ञानिक पत्र

इस स्थिति में रानी ने बड़ी सूझ-बूझ और चतुराई से काम लिया। उन्होंने मनोवैज्ञानिक ढंग से एक पत्र पेशवा रघुनाथ राव को भेजा। पत्र में उन्होंने लिखा था- सुना है आप इंदौर पर आक्रमण करने और उसे हड़पने आ रहे हैं, लेकिन यह मेरे जीवित संभव नहीं है, मेरे राज्य की सेना भले ही अभी बाहर है लेकिन मैं महिलाओं की फौज बनाकर आपसे युद्ध करूंगी और आपको रोकूँगी भी। मैं हारूँ या जीतूँ मुझे पेशवा से युद्ध करने का यश ही मिलेगा। लेकिन इस युद्ध से आपको कोई यश नहीं मिलेगा। अगर आप मुझसे हार गए, तो एक स्त्री द्वारा पराजित होने का लांछन आप लगेगा और अगर मुझे पराजित कर दिया, तो पुत्रशोक में डूबी एक अनाथ और विधवा स्त्री को प्रताड़ित करने का कलंक आपको लगेगा। आप आइए मैं और मेरी वीरंगनाएँ रणक्षेत्र में आपका स्वागत करने के लिए तत्पर हैं।

रघुनाथ राव लौट गया वापस

रानी के पत्र को पाकर रघुनाथराव विचलित हो गया, ऊपर से उसका भतीजा माधवराव भी उससे बार-बार लौट आने का आग्रह कर रहा था। रघुनाथ राव ने रानी को पत्र लिखकर अपनी सफाई दी। उसने लिखा मैं यहाँ युद्ध करने के लिए नहीं बल्कि आपके पुत्र के मृत्यु पर शोक प्रकट करने आया हूँ। जवाब में रानी ने लिखा अगर आप शोक प्रकट करने आए हैं, तो इतनी सेनाओं के साथ आने का क्या तात्पर्य। आप सादगीपूर्ण ढंग से भी आ सकते हैं। यह पत्र पाकर पेशवा पालकी में सवार होकर राजधानी पहुँचा और शोक व्यक्त किया। इसके साथ ही पेशवाओं ने राज्य पर रानी का अधिकार भी स्वीकार कर लिया।

हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं, पेशवा रघुनाथराव मराठा सरदारों की नाराजगी के डर से पीछे हटा था। क्योंकि पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद, इस समय तक मराठा साम्राज्य की स्थिति बहुत ज्यादा डांवाडोल थी।

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