Panchatantra story : मूर्ख कछुआ-बंदर की पंचतंत्र की कहानी,सिखाती है-बड़बोले-पन के दुष्परिणाम-पंचतंत्र की कहानियां केवल बच्चों के मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि वे जीवन के गूढ़ सत्य और व्यवहारिक बुद्धि सिखाने वाली अमूल्य धरोहर हैं। इन कहानियों में जानवरों के माध्यम से मनुष्य की कमजोरियों-जैसे अहंकार, मूर्खता, लोभ और वाणी पर नियंत्रण न होना को प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया है। मूर्ख कछुआ और बंदर ऐसी ही एक प्रसिद्ध कथा है, जो बताती है कि अनावश्यक बोलना और अपनी सीमाओं को भूल जाना कितना घातक हो सकता है। मूर्ख कछुआ और बंदर पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानी है, जो अहंकार, बिना मांगी सलाह और अनावश्यक बोलने के खतरे को दर्शाती है। पूरी कहानी, उद्देश्य और नैतिक शिक्षा पढ़ें।
मूर्ख कछुआ और बंदर की पूरी कहानी
एक तालाब में एक कछुआ रहता था। वह स्वभाव से बहुत बातूनी और अहंकारी था। उसे अपनी बुद्धि पर अत्यधिक घमंड था जबकि उसी तालाब में दो हंस भी रहते थे जो बहुत समझदार और शांत स्वभाव के थे। कुछ दिनों बाद समय के साथ तालाब सूखने लगा। हंसों ने तय किया कि वे किसी दूसरे जलाशय की ओर चले जाएंगे। कछुआ भी उनके साथ जाना चाहता था, लेकिन समस्या यह थी कि वह उड़ नहीं सकता था। हंसों ने उपाय निकाला। उन्होंने एक मजबूत डंडा लाया और कछुए से कहा-
“तुम इस डंडे को अपने दांतों से कसकर पकड़ लो। हम दोनों इसके दोनों सिरे पकड़कर उड़ जाएंगे। लेकिन एक बात याद रखना-रास्ते में मुंह मत खोलना, चाहे कोई कुछ भी कहे। कछुए ने हां कर दी और डंडा दांतों से पकड़ लिया। हंस उसे लेकर आकाश में उड़ने लगे। नीचे ज़मीन पर बैठे कुछ बंदरों ने यह अद्भुत दृश्य देखा। वे मज़ाक उड़ाने लगे-अरे देखो,यह तो उड़ने वाला कछुआ है,लगता है खुद को बहुत बुद्धिमान समझता है। बंदरों की बातें सुनकर कछुए का अहंकार जाग उठा। वह चुप न रह सका। उसने जवाब देने के लिए जैसे ही मुंह खोला, डंडा छूट गया और कछुआ सीधे नीचे गिर पड़ा,गिरने से उसकी मृत्यु हो गई और हंस दुखी मन से आगे बढ़ गए।

कहानी का उद्देश्य-(Purpose of the Story)
इस कहानी का उद्देश्य पाठकों को यह समझाना है कि हर परिस्थिति में बोलना आवश्यक नहीं होता छे बात सही हो गलत। क्योंकि अहंकार बुद्धि को नष्ट कर देता है जाकी ऐसी तरह सही सलाह को अनदेखा करना विनाश का कारण बन सकता है।
कछुआ और बन्दर की कहानी से शिक्षा – Moral of the Story
इस कहानी से मिलने वाली शिक्षा में पहली बात अनावश्यक बोलना नुकसानदेह होता है। साथ ही अहंकार में किसी भी व्यक्ति को व्यक्ति अपनी सीमाएं नहीं भूलनी चाहिए। वहीं बिना मांगी सलाह देना और तानों पर प्रतिक्रिया देना भी बहुत बार घातक हो सकता है। बुद्धिमान वही है जो मौन और संयम का महत्व समझे।
आज के जीवन में प्रासंगिकता
आज के सोशल मीडिया और तेज़ प्रतिक्रियाओं के युग में यह कहानी और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। कई बार लोग तानों, आलोचनाओं या टिप्पणियों में आकर अपनी स्थिति, संबंध और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा देते हैं । यह कथा सिखाती है कि संयम, धैर्य और सही समय पर मौन रखना भी एक बड़ी बुद्धिमानी है।
निष्कर्ष (Conclusion)-मूर्ख कछुआ और बंदर-पंचतंत्र की एक सरल लेकिन अत्यंत गहरी शिक्षा देने वाली कहानी है। यह हमें बताती है कि अहंकार और वाणी पर नियंत्रण न होना जीवन की सबसे बड़ी भूल बन सकता है। यदि कछुआ थोड़ी देर चुप रह जाता, तो उसका जीवन बच सकता था। इसलिए जीवन में सफलता और सुरक्षा के लिए बुद्धि के साथ-साथ विवेक और मौन का अभ्यास भी उतना ही आवश्यक है।
