पाकिस्तान में 8 फरवरी को आम चुनाव होने जा रहे हैं.इस चुनाव में दो मुख्य पार्टियां Pakistan Muslim League और Pakistan’s People Party आमने सामने होंगी।पाकिस्तान मुस्लिम लीग की तरफ से प्रधानमंत्री का टिकट दिया गया है पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को और पाकिस्तान पीपल पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं बिलावल भुट्टो जरदारी।वहीँ पाकिस्तान की आवाम के पसंदीदा लीडर और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.दो दिन पहले ही उन्हें 14 साल की सजा सुनाई गयी है.दरअसल,अप्रैल 2022 में नो कॉन्फिडेंस मोशन के बाद से इमरान खान की सरकार गिर गयी थी और उनके ऊपर 180 चार्जेस लगाए गए हैं.इसी के साथ इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इन्साफ का चुनाव चिन्ह बल्ला भी छीन लिया गया.पार्टी के लोग निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जहाँ इन उम्मीदवारों को नामांकन तक दर्ज नहीं करने दिया जा रहा है.
भारत की तरह ही है पाकिस्तान की चुनावी प्रणाली
सबसे पहले पाकिस्तान की चुनावी व्यवस्था की बात करते हैं.पाकिस्तान और भारत के चुनावों में ज्यादा अंतर नहीं है.भारतीय संसद की ही तरह पाकिस्तान में भी संसद के दो सदन हैं.निचला सदन और ऊपरी सदन.निचले सदन को नेशनल असेंबली और उर्दू में कौमी असेंबली कहते हैं.इसके लिए आम लोग चुनाव करते हैं.ये बिलकुल वैसा है जैसे भारत में लोक सभा के चुनाव होते हैं. नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें हैं जिसमे 272 सदस्य प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं.इसमें 10 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए और 60 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.वहीँ ऊपरी सदन को सेनेट और उर्दू में आखान ए बाला कहा जाता है.और इसकी कार्य प्रणाली भारतीय राज्य सभा की ही तरह है.भारत में चुनाव EVM के जरिये होते हैं लेकिन पाकिस्तान में चुनाव बैलट पेपर के इस्तेमाल से होते हैं. इसी के साथ पाकिस्तान में चुनावों के नतीजे 14 दिन के ही भीतर आने जरुरी हैं.पाकिस्तान में नेशनल असेंबली और प्रांतीय चुनाव एक साथ होते हैं.दरअसल पाकिस्तान में 4 प्रान्त हैं खैबर पख्तूनवा,सिंध,पंजाब और बलोचिस्तान।सबसे ज्यादा सीटें पंजाब प्रान्त के खेमे में हैं कुल 141 खैबर पख्तूनवा में 39,सिंध में 61 और बलूचिस्तान में 16.
पाकिस्तान की राजनीति में सेना का आधिपत्य सालों पुराना
पाकिस्तान की राजनीति में सेना के डोमिनेन्स की बात दुनिया से छुपी नहीं है.पाकिस्तान में आज तक कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी है क्योंकि यहाँ कई बार तख्तापलट हो चुका है.मानाजाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता पर बैठाने में सेना का बड़ा हाथ था वहीँ उन्हें सत्ता से हटाने में भी.लगातार सेना की तारीफ करने वाले इमरान खान सरकार गिरने के बाद से कई बार सेना की आलोचना करते रहे हैं.इमरान खान कोई पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जिन्होंने सेना की बात नहीं मानी तो उहे सत्ता से हाथ धोना पड़ा. इसका पूरा इतिहास है.साल 1953 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन को सत्ता से हटा दिया गया और 1958 में राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्ज़ा ने पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया।पाकिस्तानी आर्मी मार्शल लॉ का भरपूर उपयोग करती है.इसके जरिये देश में सैनिक शासन लगा दिया जाता है.यही नहीं इसके बाद इस्कंदर मिर्ज़ा ने अयूब खान को सेना का कमांडर इन चीफ बना दिया और 1956 में लागू हुए संविधान को भी रद्द करने के साथ राजनीतिक पार्टियों को बैन कर दिया गया.साल 1973 की बात करते हैं, इस वक्त देश के प्रधानमंत्री थे जुल्फिकार अली भुट्टो।कहा जाता है कि अली भुट्टो पाकिस्तान की राजनीती में बदलाव लाना चाहते थे.उन्होंने मार्शल लॉ हटाने की बात भी कही थी लेकिन उनको फांसी की सजा दे दी गयी ,आप समझ सकते हैं कि किस स्तर का कंट्रोल सेना पाकिस्तान सरकार में रखती है.साल 1988 में बेनजीर भुट्टो ने जब पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के गवर्नेंस में ओवरइंटेरफेरेंस का विरोध किया, उन्हें भी सत्ता से हटा दिया गया.उसके बाद नवाज़ शरीफ नए प्रधानमंत्री बने उनपर केस दर्ज हुआ और 10 साल की सजा भी हुई .हेल्थ का हवाला देते हुए वो लम्बे समय से self exile में बेल के तहत लंदन में थे फ़िलहाल वो वापस आ गए हैं और चुनाव लड़ रहे हैं.नवाज़ शरीफ़ का अगर कोई प्रतिद्वंदी था तो वो थी पाकिस्तान तहरीक ए इन्साफ।यानि इमरान खान.दोनों के लीडर पाकिस्तानी आवाम के बीच काफी लोकप्रिय हैं.
पाकिस्तान की सरकार में सेना के डोमिनेन्स का कारण क्या है?
दृष्टि आईएएस के एक लेख के मुताबिक इसका कारण सामाजिक और राजनीतिक दोनों है.सेना द्वारा तख्तापलट में दो सिचुएशन जिम्मेदार होती हैं.पहली है सामाजिक जिसमे आता है कमजोर जनमत और राजनीतिक कारणों में है भ्रष्ट सरकार। अब पाकिस्तान में ये हालात बेहद आम हैं.इसके अलावा भारत का नाम लेकर और कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान की सेना ने देश में लम्बे समय से एक नैरेटिव फैलाया है और इसमें वो सफल भी रही है.ये नैरेटिव है कि अगर सेना ने राजनीति में हस्तक्षेप नहीं किया तो पाकिस्तान ख़त्म हो जाएगा लेकिन इन सब का असर क्या है.आज के समय में पाकिस्तान के हालात क्या हैं?इस Political Instability का खामियाजा भुगत रही है पाकिस्तान की आम आवाम।किसी भी सरकार के अपना टर्म पूरा न करने के कारण किसी भी पालिसी पर काम नहीं हो पाता।पाकिस्तान में इन्फ्लेशन आल टाइम पीक पर है.इलेक्ट्रिसिटी बिल्स और एनर्जी प्राइसेस से लोग परेशान हैं.जहाँ गैस बिल 200-300 रूपए था वो अब 8000 है.इलेक्ट्रिसिटी बिल 20 हज़ार है.पाकिस्तान की आम जनता त्रस्त है.पाकिस्तान सरकार डेब्ट में डूबी हुई है.यहाँ नेशनल डेब्ट 239.7 मिलियन डॉलर है और डेब्ट टू जीडीपी अनुपात 77 फ़ीसदी है.यहाँ बिसनेस करना भी मुश्किल है. इन सब हालातों में पाकिस्तान में हो रहे आम चुनावों के बाद क्या कुछ बदलाव होता है देखने वाली बात होगी।