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EPISODE 62: कृषि आश्रित समाज में उपयोग वाले धातु के बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्मश्री बाबूलाल दहिया: कल हमने गिलास ,हांडा ,बटुआ आदि धातु शिल्पियों के बनाए बर्तनों की जानकारी दी थी आज उसी श्रृंखला में अन्य बर्तनों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

भुजंगी

भुजंगी को नई पीढ़ी बिल्कुल ही नही जानती होगी। इसे पहले भी बिरले लोग ही अपने घरों में रखते थे। क्योकि यह एक बारात आदि के पंगत में दाल परोसने केलिए बना पीतल का ऐसा बर्तन है जो करछुली की तरह का होता है। पर बनावट में उससे गहरे आकार का जिससे एक बार में बारात के पंगत के लिए पर्याप्त दाल उसमें आजाय।

यूं तो दाल बाल्टी नुमा एक डोंगे में रहती है जिसे परोसने वाला एक हाथ में उस पीतल की डोंगी को रखता है और दूसरे हाथ से भुजंगी द्वारा डोलची की दाल निकाल कर परोसता जाता। पर अब स्टील आदि के सस्ते बर्तन आजाने से भुजंगी का उपयोग पूरी तरह समाप्त होगया है अस्तु इसका भी पुरातत्व की वस्तु का रूप ग्रहण कर लेना स्वाभाविक है।

पराँत

पराँत भी कोपरी या थाली के आकार का एक पीतल का चौड़ा बर्तन होता है। इसमें हांङे से निकाल बारात आदि के खाने के लिए पकाया गया चावल रखा जाता है। और फिर अन्य बर्तनों में लेकर परोसा जाता है।यह ऐसा बर्तन है जिसे दहेज में देने की परम्परा भी है अस्तु इसका व्यवसाय बरकरार है। विवाह के समय वर और कन्या के पैर इसी में रखकर पूजे जाते हैं। आकार में बड़ा होने के कारण इसे उठा कर ले जाने में कोई दिक्कत न हो अस्तु सुबिधा के लिए बाट के समीप एक कड़ा भी लगा रहता है।

कलसा

कलसा एक काँसे की धातु का बना घड़े के आकार का बर्तन है जिसमें प्राचीन समय में महिलाओं द्वारा दीपक जलाकर खड़ा होना बारात के लिए शुभ माना जाता था। अब स्टील आदि के यूज ऐंड थ्रो सस्ते बर्तन आजाने से इसका उपयोग भी काफी कम हो गया है। अस्तु अन्य वर्तनों के साथ – साथ यह भी पुरावशेष का रूप लेता जा रहा है।

तबेलिया

यह एक पीतल का बर्तन है जो दाल पकाने के काम आता था। काँसे की बटलोही काफी वजनी होने के कारण उतनी कीमती धातु खरीदना उन दिनों हर ब्यक्ति के बस की बात नही थी।जब कि तबेलिया पीतल की बनती थी अस्तु पतली और कम कीमत की होती थी। यही कारण था कि गरीब और मद्धम आय वर्ग के लोग अक्सर दाल पकाने के लिए पीतल की तबेलिया ही खरीदते थे। यह छोटे परिवारों के दाल पकाने के लिए उपयुक्त बर्तन माना जाता था।

बाद में उपयोग करते- करते जब वह कहीं से फूट जाती तो ताम्रकार लोग आधे कीमत पर उसके पीतल को खरीद शेष अधिक मूल्य वाली राशि नगद ले कर उसे नया बर्तन दे दे तेथे।पर अब स्टील आदि के सस्ते बर्तन आजाने से इसका उपयोग काफी कम हो गया है।

आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ।

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