EPISODE 63: कृषि आश्रित समाज में उपयोग वाले धातु के बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्मश्री बाबूलाल दहिया: कल हमने भुजंगी ,पराँत ,कलसा तबेलिया आदि धातु शिल्पियों के बनाए बर्तनों की जानकारी दी थी आज उसी श्रंखला में अन्य बर्तनों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

पीतल का लोटा


बाद में भले ही काँसे के अनेक डिजाइन के लोटा बने हों पर जिस प्रकार एक प्राचीन लोटा हमें पीतल का मिला है उससे सिद्ध है कि सस्ती धातु होने के कारण पहले पीतल के लोटे ही प्रचलन में रहे होगें ? काँसे के लोटे बाद में चलन में आए होंगे। पीतल और काँसे में बुनियादी अन्तर यह है कि पीतल 100% तांबे के साथ 40% जत्सा मिलाने से बनता है वहीं कांसा 60 % जत्सा मिलाने से। इसलिए यह पीतल का लोटा अधिक महत्वपूर्ण है जो धातु शल्पियों के क्रमिक विकास की एक कहानी भी कह रहा है।

यह एक अकाट्य सिद्धान्त है कि जब कोई विकसित प्रणाली आ जाती है तो ओल्ड प्रणाली अपने आप समाप्त हो जाती है।

इसी परिस्थिति से हमारे इस पीतल के लोटा को भी गुजरना पड़ा होगा इसीलिए अब घर के कबाड़ में पड़ा है।लेकिन उसके लिए कम से कम इतना अच्छा है कि वह बचा हुआ है। वर्ना आधे मूल्य पर उसका पुनः चक्रन हो जाता।

गंजा


यूं तो आज कल सिलवर और स्टील के गंजे हर टेंट हाउस वालों के यहां बारात एवं तमाम तरह के उत्सवो में भोजन पकाने के लिए किराए पर मिलते हैं। पर शुरू -शुरू में गंजे बनाने का अविष्कार शायद धातु शिल्पी ताम्रकारों द्वारा ही किया गया होगी। क्योकि उनके यहां बहुत पहले से भोजन पकाने और पानी भर कर रखने के काम आने वाले बड़े -बड़े गंजे बनाए जाते थे जिसे सम्पन्न किसान भी खरीदते थे।

यह अलग बात है कि कीमती धातु होने के कारण वह चलन से बाहर हो अब मात्र भंडार गृह की शोभा ही बढ़ा रहे हैं । लगता है अब वह दिन दूर नही जब वे मात्र पुरातत्व की वस्तु बन कर ही रह जाँयगे।

पीतल की छोटी डोलची



यह पीतल की पानी लेजाने वाली डोलची है। घर में लोटा गिलास में पानी पीना तो ठीक है पर अगर बाहर जाना है तब क्या हो ? धातु शल्पियों ने उसका विकल्प भी निकाल रखा था। वह थी यही छोटी डोलची जिसमें बाल्टी जैसा कड़ा लगाया गया था। इस डोलची में पानी भरें और लेकर चाहे जितनी दूर चले जाँय।

प्राचीन समय में जब हैंड पम्प नही थे और कुएं का पानी ही पिया जाता था तब लोग इसके साथ एक पतली सी डोरी रखते थे जिससे कुएं से भी पानी खींच कर पी सकें। परन्तु समय ने इसे भी चलन से बाहर कर दिया और अन्य वर्तनों के साथ यह भी पुरावशेष बन गई है।

आज बस इतना ही कल फिर मिलेंगे इस श्रृंखला में नई जानकारी के साथ।

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