कौन थे परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक ओपेनहाइमर, जिनको जिंदगी भर इसका पछतावा रहा

About Oppenheimer The Maker Of The Atomic Bomb In Hindi: कश्मीर के पहलगाम में हुए पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान के मध्य टेंशन बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। भारत की जवाबी कार्यवाहियों से चिढ़ कर पाकिस्तान की तरफ से बार-बार भारत में परमाणु हमले की धमकी दे रहे थे। लेकिन ऐसे लोगों को परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक ओपेनहाइमर के बारे में जानना चाहिए, जिसने पहली बार परमाणु बम बनाए। लेकिन जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में हुए परमाणु हमलों और लाखों सिविलयन की मृत्यु के बाद उन्हें बड़ा पछतावा हुआ और जिंदगी भर रहा।

कौन थे ओपेनहाइमर

जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर का जन्म 22 अप्रैल 1904 को संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क में हुआ था। वह जर्मनी के धनी यहूदी अप्रवासी परिवार से थे। हवार्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने केमेस्ट्री में ग्रेजुएशन की, इसके बाद वह 1925 में जे. जे. थॉमसन के साथ काम करने के लिए इंग्लैंड चले गए। जे. जे. थॉमसन ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त था, उन्होंने इलेक्ट्रॉन की खोज की थी। उन्होंने जर्मनी के गाटिंगेन विश्वविद्यालय से भौतिकी से पीएचडी भी की थी। उन्होंने क्वांटम मैकेनिक्स में भी योगदान दिया था। उनमें बचपन से ही बेजोड़ और असाधारण प्रतिभा थी।

अमेरिका का ‘द मैनहट्टन प्रोजेक्ट’

1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया था। अमेरिका को खुफिया जानकारी थी, नाजी जर्मनी परमाणु बम बनाने का प्रयास कर रहा था। इसीलिए अमेरिका सरकार ने भी तय किया वह भी अपना एटॉमिक वेपन प्रोग्राम चालू करेगी, इसीलिए अमेरिका ने ‘द मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ प्रोजेक्ट की शुरुआत की। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य जर्मनी से पहले अपने परमाणु हथियार बनाने की संभावना को तलाशना था। 1942 तक यह तय हो गया था, परमाणु बम बनाए जा सकते हैं।

प्रोजेक्ट के चरम पर इससे करीब 1 लाख 30 हजार लोग जुड़े थे, जिसमें नोबल पुरस्कार विजेता थे। इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई ओपेनहाइमर को। जिन्होंने न्यू मैक्सिको के लॉस लैबोट्री में हजारों वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अपना कार्य प्रारंभ किया। आखिर कर 16 जुलाई 1945 को ट्रिनेट्री के नाम से इसका सफल परीक्षण किया।

प्रोजेक्ट की सफलता पर याद किया गीता का उपदेश

1960 के दशक में दिए गए एक इंटरव्यू में ओपेनहाइमर ने बताया कि परमाणु बम के सफल परीक्षण के बाद उनके दिमाग में गीता का एक श्लोक आया- “मैं अब काल हूँ, जो लोकों का विनाश कर सकता हूँ”, दरसल वह गीता के 11वें अध्याय के 32 श्लोक के बारे में बात कर रहे थे, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था- मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ। दरसल ओपेनहाइमर का किताबों की तरफ रुझान बचपन से ही था, 1930 के दशक से ही जब वह अपना कैरियर आगे बढ़ा रहे थे, तब उनका दर्शन की तरफ ध्यान गया। उन्होंने हिंदू धर्मशास्त्रों की तलाश की और गीता को अनुवाद रूप में पढ़ने की जगह ओरिजनल पढ़ने के लिए संस्कृत भाषा को सीखा।

जब अमेरिका ने जापान पर गिराया परमाणु बम

परीक्षण के लगभग एक माह ही बाद ही अमेरिका ने इन परमाणु बमों को जापान के विरुद्ध प्रयोग करने का फैसला किया। क्योंकि जर्मनी सरेंडर कर चुका था, लेकिन जापान अभी भी युद्ध मोर्चे पर डटा था। 6 दिसंबर 1945 को सुबह ही अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा में ‘लिटिल बॉय’ नाम का परमाणु बम गिराया था। हिरोशिमा शहर की आबादी 3 लाख थी और यह जापानी सेना का प्रमुख ठिकाना भी था। इस बम का वजन करीब 4044 किलोग्राम था, इस विस्फोट से हिरोशिमा में भारी तबाही मची घुप अंधेरा छा गया और उसके बाद सब कुछ बर्बाद हो गया। लगभग 90% शहर बर्बाद हो चुका था।

इन हमलों के करीब 2 दिन बाद ही अमेरिका ने जापान के नागासाकी शहर में फैटमैन नाम का दूसरा परमाणु हमला किया। जिसमें करीब 2 लाख सिविलयंस मारे गए।

ओपेनहाइमर को होने लगा पछतावा

द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए परमाणु हमलों पर पहले तो ओपेनहाइमर खुश हुए, लेकिन नागासाकी पर हुए हमले के बाद से वह उदास रहने लगे। युद्ध खत्म होने के बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से हुई मुलाकात में उन्होंने पछताते हुए कहा, मेरे हाथ खून से रंगे हैं, इस पर ट्रूमैन ने कहा- हाथ तो मेरे खून से रंगे हैं, इसीलिए तुम इसकी चिंता मुझ पर छोड़ो। इसके बाद ओपेनहाइमर परमाणु हथियारों के प्रसार के खिलाफ हो गए और इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध की वकालत की, उन्होंने हाइड्रोजन बमों के विकास का विरोध किया, जो परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक थे। जिसके बाद अमेरिका में 1954 में उनका सिक्योरिटी लाइसेंस भी छीन लिया। जो बाद में उनकी मृत्यु के 55 साल बाद 2022 में अमेरिकी सरकार ने फिर से बहाल कर दिया।

अंतिम समय तक नहीं मांग सके माफी

अंतिम समय में ओपेनहाइमर न्यू जर्सी के प्रिंसटन में एडवांस स्टडीज के निदेशक बने, लेकिन परमाणु बम के निर्माण पर वह कभी-कभी पछताते ही रहे। हालांकि कभी-कभी वह इस पर गर्व भी महसूस करते थे, और कहा करते थे- परमाणु बम तो बनता ही, मैं नहीं बनाता तो कोई और बनाता। इन्हीं सब के बीच से गुजरते हुए 18 फरवरी 1967 को 62 वर्ष की उम्र में गले के कैंसर से उनका निधन हो गया। कुछ लोग कहते हैं वह परमाणु बम बनाने के लिए माफी मांगना चाहते थे, पर कभी मांग नहीं पाए। 1960 में उन्होंने जापान की यात्रा भी की, लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी नहीं जा पाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *