6 जून 1984 को भारतीय सेना ने अमृतसर के गोल्डन टेम्पल में अकाल तख़्त पर गोलीबारी कर दी.अकाल तख़्त सिखों के पांच धार्मिक तख्तों में से एक है और खालसा की सांसारिक सत्ता का सर्वोच्च स्थान है.खालसा का मतलब है शुद्ध,पाक.इसकी स्थापना दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह ने की थी.इस गोलीबारी के पीछे था धर्म,धर्म के नाम पर आतंक,कई मौतें और इन सब का एक नाम ऑपरेशन ब्लूस्टार.इसके बाद इतिहास की बड़ी घटना, पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी का Assasination.ये Assasination उनके ही दो सिख बॉडीगार्ड्स ने ऑपरेशन ब्लूस्टार के बदले के रूप किया था जिसके बाद पंजाब की ये आग राजधानी तक पहुँच गयी. और दिल्ली सहित उत्तरी भारत के कई राज्यों में बड़े स्तर पर एंटी सिख सेंटीमेंट्स के तहत सिखों की हत्याएं हुई.The New Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें कुल 3,900 लोगों की जान गयी थी.दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों को मिलाकर 2,732 सिखों की मौत हुई थी. 2 दिन पहले लोक सभा के चुनाव परिणाम आये और पंजाब में 2 खालिस्तानी समर्थक बड़े वोट मार्जिन से जीते और इनमे से एक ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले दो बोडीगार्ड्स में से एक बेअंत सिंह का बेटा सर्बजीत सिंह खालसा[7] भी है.और दूसरा व्यक्ति है असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल[8]।अमृतपाल का कहना ही“मैं खु़द को भारतीय नहीं मानता. मेरे पास जो पासपोर्ट है ये मुझे भारतीय नहीं बनाता. ये यात्रा करने के लिए बस एक कागज़ात है.”
आज ऑपरेशन ब्लूस्टार के 40 वर्ष पूरे हो गए हैं और इस ऑपरेशन का परिचायक अमृतसर के गोल्डन टेम्पल में खलिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाए गए, बड़ा हुजूम इक्कठा हुआ,
Source-Mint
राज्य में सुरक्षा के कड़े इन्तेज़ामात किये गए ताकि किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना न घटे. गोल्डन टेंपल में अमृतपाल की मां और फरीदकोट से सांसद चुने गए सर्बजीत खालसा भी थे।नारे लगाने वालों में से कई के हाथों में तलवारें और पोस्टर्स थे.पोस्टर्स में एक तस्वीर थी. जरनैल सिंह भिंडरावाले की .
जरनैल सिंह भिंडरावाले,ऑपरेशन ब्लूस्टार का मकसद।वो जिसने स्वयं को सिखों की आवाज़ बताया था और उन्ही सिखों के सबसे पाक स्थल गोल्डन टेम्पल को अपनी जान बचाने के लिए एक ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया।
क्या था ऑपरेशन ब्लूस्टार?कौन था कुछ के लिए मिलिटेंट और कुछ लोगों के लिए शहीद जरनैल सिंह भिंडरावाले?
क्या हुआ था 6 जून 1984 को?
इन सब में सबसे पहला शब्द निकल कर आता है खालिस्तान.खालिस्तान सिखों के लिए एक अलग देश की मांग है.बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1940 में डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने किया था इसके बाद 60 के दशक में पंजाब के पुनर्गठन से पहले अकाली दल के नेताओं ने सिखों की स्वायत्ता की मांग की थी. साल 1966 में पंजाब तीन हिस्सों में बंटा और इससे निकले तीन राज्य एक तो पंजाब खुद,दूसरा हरियाणा और तीसरा हिमांचल प्रदेश. इसके बाद खालिस्तान की मांग ने ज़ोर पकड़ा.70 के दशक में चरण सिंह पंछी और डॉक्टर जगजीत सिंह चौहान ने पहली बार खालिस्तान की मांग की, जगजीत सिंह चौहान ने इसके लिए ब्रिटेन को बेस बनाया और अमेरिका और पाकिस्तान भी गए. साल 1978 में चंडीगढ़ के कुछ नौजवान सिखों ने खालिस्तान की मांग करते हुए दल खालसा का गठन किया.
इसके पीछे के कारणों को पार्टीशन के बाद सिख समुदाय की संस्कृति के कुछ शहरों और धार्मिक स्थलों का पाकिस्तान में चले जाना और नदी के पानी का बंटवारा जैसे विषयों के रूप में देखा जाता है.कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान से सेपरटिस्ट मूवमेंट को बढ़ावा देने के लिए हथियार भेजे जाते थे.साल 1980 तक पूरी तरह से पंजाब उग्रवादी संकट से जूझ रहा था और इन्ही सब में नाम आया जरनैल सिंह भिंडरावाले का .हालाँकि कई मीडिआ रिपोर्ट्स के मुताबिक जरनैल सिंह भिंडरावाले ने कभी भी खालिस्तान की मांग नहीं की थी बल्कि इसका उद्देश्य 1973 का आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन को लागू करवाना था
बीबीसी के मुताबिक 1973 का आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन में अपने राजनीतिक लक्ष्य के बारे में इस प्रकार कहा गया है, “हमारे पंथ (सिख धर्म) का राजनीतिक लक्ष्य, बेशक सिख इतिहास के पन्नों, खालसा पंथ के हृदय और दसवें गुरु की आज्ञाओं में निहित है. जिसका एकमात्र उद्देश्य खालसा की श्रेष्ठता है. शिरोमणि अकाली दल की मौलिक नीति एक भू-राजनीतिक वातावरण और एक राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के माध्यम से खालसा की श्रेष्ठता स्थापित करना है.”अकाली दल भारतीय संविधान और भारत के राजनीतिक ढांचे के तहत काम करता है.आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन का उद्देश्य सिखों के लिए भारत के भीतर एक स्वायत्त राज्य का निर्माण करना है. ये रिज़ॉल्यूशन अलग देश की मांग नहीं करता है.लेकिन…
अगर ऐसा था तो हाथों में बदूकेँ लेकर चलना,युवाओं के सामने उग्रवादी भाषण देना ये सब क्यों?
ABP न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1981 में पंजाब केसरी के संपादक लाला जगत नारायण की गोली मारकर हत्या कर दी गई. कहा गया कि भिंडरेवाले ने ही इस हत्याकांड की साजिश रची थी लेकिन तब किसी भी तरह की गिरफ़्तारी नहीं की गयी इसके दो साल बाद 1983 में पंजाब के डीआईजी AS Atwal की हत्या कर दी गई ये गोल्डन टेम्पल गए हुए थे.उस वक्त भिंडरावाले अपने हथियारबंद मिलिटेंट्स के साथ गोल्डन टेम्पल में ही था। सुपरकॉप कहे जाने वाले उस वक्त आईपीएस अधिकारी KPS गिल ने बताया था कि अतवाल की हत्या सिर्फ एक शुरुआत थी. इसके बाद से मंदिर के आस पास के गटर और नालियों में कटी फटी,बोरियों में भरी हुई लाशों का मिलना आम हो गया था. इस सब के बाद इंदिरा गाँधी की सरकार ने फैसला लिया कि मंदिर के अंदर बैठे मिलिटेंट्स को बाहर निकलना जरुरी है हालाँकि इस सब में राजनीती के भी पंजों के निशान हैं.फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक शिरोमणि अकाली दल के प्रभाव को कम करने के लिए कांग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को अपने पक्ष में करने की कोशिश की लेकिन युवाओं के प्रति इसकी उग्र बयानबाजी और अपील ने सरकारी व्यवस्था के लिए समस्या खड़ी कर दी.बहरहाल इस सब के बाद भारतीय सेना को हरी झंडी दे दी गयी और लांच हुआ ऑपरेशन ब्लूस्टार
इस सब के दौरान तैयारी सिर्फ बाहर नहीं चल रही थी.मंदिर के अंदर भिंडरवाले और इनके समर्थक खुद को हथियारों से लैस कर रहे थे फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक
1 जून को गोल्डन टेम्पल कॉम्प्लेक्स को इंडियन आर्मी ने चारों तरफ से घेर लिया। दोनों ओर से गोलिबरियाँ शुरू हुई और इसमें कई सिविलियन्स की भी जान गयी.
3 जून को पूरे पंजाब में 36 घंटों का कर्फ्यू लगा दिया गया.पब्लिक लाइन्स,ट्रांसपोर्ट,मीडिया और कम्युनिकेशन के हर साधन को पूरी तरह से बंद कर दिया गया
5 जून को सेना ने मंदिर पर हमला बोल दिया।हालात बिगड़े और कमांडर्स ने टैंक की मांग की,और अकाल तख़्त[23]पर गोलीबारी की गयी
6 जून की सुबह तक उग्रवादियों की सुरक्षा ख़त्म कर दी गई.11 बजे के करीब 25 के करीब उग्रवादी हमले के लिए आये लेकिन सभी मारे गए.जनरल्स को लगा कि या तो भिंडरवाले मारा गया,या घायल है या बच के भाग गया.उनका पहला अनुमान सही था
भिंडरावाले मर चुका था!
बाकि के उग्रवादियों ने 10 जून तक सर्रेंडर कर दिया।इंडियन आर्मी के आंकड़ों के मुताबिक 554 सिख मिलिटेंट और सिविलियन मारे गए। साथ ही 87 जवान इसमें शहीद हुए थे.
ऑपरेशन खत्म हुआ लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी था.31 अक्टूबर 1984 को ऑपरेशन के बदले में इंदिरा गाँधी के दो सिख बॉडीगार्ड्स ने उनकी हत्या कर दी जिसके बाद देश भर में Sikh riots हुए जिसमे हज़ारों की जानें गयी.कहा ये भी जाता है कि इसके बाद से ही खालिस्तान की मांग और भी ज्यादा मजबूत हो गयी.
एक मीडिया रिपोर्ट में पढ़ा था कि भिंडरावाले की तुलना कुछ लोग भगत सिंह से करते हैं. ये तुलना गलत है.और उसका सबूत है ढेरों बेगुनाहों की लाशें और उससे बचने के लिए खुद को धर्म का रक्षक कह कर धार्मिक स्थल जो शांति का केंद्र है उसे ढाल बनाना,ये भीरुता है.हर बम उठाने वाला भगत सिंह नहीं है.रही बात भगत सिंह की तो उन्होंने खुद कहा था कि बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती,क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है.
Sources: BBC, Firstpost, ABP News, Caravan,Times of India,Dainik Bhaskar