Baba Mahakal’s procession started in Ujjain: सावन मास के पहले सोमवार को विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन में भगवान महाकाल की भव्य सवारी निकली। इस बार सवारी वैदिक उद्घोष की थीम पर आधारित थी, जिसमें भगवान महाकाल नई पालकी में विराजमान होकर, अपनी प्रजा का हाल जानने निकले। यह सवारी शिप्रा नदी के तट तक गई, जहां भगवान महाकाल का विधि-विधान से पूजन किया गया। सवारी रात करीब 7 बजे मंदिर वापस लौटेगी।
तड़के ही खोल दिए गए मंदिर के पट
सावन के इस पवित्र अवसर पर सुबह तड़के 2:30 बजे महाकालेश्वर मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। मंदिर के कपाट रात 10 बजे शयन आरती तक खुले रहते हैं, जिससे हजारों भक्तों को बाबा महाकाल के दर्शन और पूजन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। सवारी के दौरान भजन मंडलियां नाचते-गाते हुए आगे बढ़ रही थीं, जिसने इस धार्मिक आयोजन में उत्साह और भक्ति का रंग और गहरा कर दिया।
वैदिक उद्घोष की थीम पर निकली बाबा की सवारी
इस वर्ष सावन की पहली सवारी को वैदिक उद्घोष की थीम पर सजाया गया था, जो भारतीय संस्कृति और वेदों की महिमा को दर्शाती है। नई पालकी में सजे भगवान महाकाल की सवारी को देखने के लिए उज्जैन की सड़कों पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। सवारी के दौरान शिप्रा नदी के तट पर पूजन का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पवित्र नदी भगवान महाकाल की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाती है।
भक्तों में उत्साह और भक्ति का माहौल
सवारी के दौरान भजन मंडलियों ने भक्ति भजनों और कीर्तन के माध्यम से माहौल को और भी रसमय बना दिया। भक्तों ने “हर हर महादेव” और “बम बम भोले” के जयघोष के साथ भगवान महाकाल का स्वागत किया। सवारी के मार्ग पर जगह-जगह भक्तों ने पुष्प वर्षा और आरती कर भगवान का अभिनंदन किया। इस दौरान सुरक्षा और व्यवस्था के लिए प्रशासन ने भी पुख्ता इंतजाम किए थे।
महाकालेश्वर मंदिर का विशेष महत्व
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और सावन मास में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। सावन के प्रत्येक सोमवार को निकलने वाली सवारी भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। यह सवारी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उज्जैन की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को भी दर्शाती है।