MP Foundation Day 2025: भारत के नक्शे के एकदम मध्य में स्थित राज्य है मध्यप्रदेश, जिसे भारत का हृदयप्रदेश भी कहा जाता है। बाघों की अधिकता के कारण ही इसे टाइगर स्टेट और बहुत सारी नदियों के उद्गम के कारण ही इसे नदियों का मायका भी कहा जाता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का यह दूसरा सबसे बड़ा राज्य हमेशा से ऐसा नहीं था। इसका निर्माण स्वतंत्र भारत के प्रांतीय पुनर्गठन का प्रतीक है। अतीत में इसकी संरचना, सीमाएं और स्वरूप कई ऐतिहासिक और राजनैतिक परिवर्तनों से गुजरे हैं और इसके बाद गठन हुआ मध्यप्रदेश का।
कैसे हुआ था मध्यप्रदेश का गठन
स्वतंत्रता के समय यह क्षेत्र मुख्यतः दो तरह की शासन व्यवस्था में बंटा हुआ था, पहला था ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रत्यक्ष शासित क्षेत्र जिसे सेंट्रल प्रोविन्स और बरार कहा जाता था, इसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी। और दूसरा थे सेंट्रल इंडिया पॉलिटिकल एजेंसी द्वारा के तहत आने वाले कई छोटे-छोटे प्रिंसिली स्टेट्स, इनमें से ग्वालियर, इंदौर, भोपाल और रीवा प्रमुख थीं।
सेंट्रल प्रोविन्स एण्ड बरार
स्वतंत्रता के बाद भारत के मध्य क्षेत्र में चार प्रांत बनाए गए, इनमें से प्रमुख था सेंट्रल प्रोविन्स और बरार, जिसकी राजधानी नागपुर थी, इस राज्य में आज का पूरा छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश का जबलपुर संभाग और उसके साथ ही सागर और दमोह के जिले। जबकि इन हिंदी भाषी क्षेत्र के साथ ही इसमें नागपुर के साथ ही मराठीभाषी आठ जिले भी शामिल थे। मूलतः यह क्षेत्र नागपुर के भोंसले राजाओं द्वारा शासित था, लेकिन 1853 में राघोजी भोंसले के निधन के बाद, डॉक्टरिन ऑफ लैप्स के नीति के तहत अंग्रेजों ने यह क्षेत्र हड़प लिया था और इसे कहा गया और इसे सेंट्रल प्रोविन्स नाम दिया गया। इसके साथ ही इसमें सागर और नर्मदा टेरेटरी भी शामिल कर दिए गए थे। वर्ष 1936 में इसमें बरार भी शामिल कर लिया गया और इसका नाम हुआ सेंट्रल प्राविन्स। आजादी के बाद इसके प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल बने।
मध्यभारत राज्य
दूसरा राज्य था मध्यभारत जिसका निर्माण मालवा क्षेत्र में स्थित ग्वालियर और इंदौर समेत 25 प्रिंसिली स्टेट्स थे, अपनी उर्वरक भूमि और औद्योगिक विकास के कारण यह अत्यंत विकसित क्षेत्र था। इस राज्य को पार्ट B स्टेट के तौर पर रखा गया था। लेकिन राज्यप्रमुख बनने को लेकर ग्वालियर के जीवाजी राव सिंधिया और इंदौर के यशवंतराव होल्कर के मध्य मनमुटाव खुलकर सामने आ गई थी, बाद में सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद यह मामला सुलझा और जीवाजी राव को राजप्रमुख और यशवंतराव होल्कर को उपराजप्रमुख बनाया गया था, लेकिन इन दोनों राज्यों की प्रतिद्वंदिता ही आगे चलकर इस राज्य के पतन का कारण बनी। इस राज्य में 99 विधानसभाएं थीं और विलयन के समय इसके मुख्यमंत्री तख्तमल जैन थे। और यहाँ की राजधानी भी छः महीने ग्वालियर और छः महीने इंदौर रहती थी।
विंध्यप्रदेश
तीसरा राज्य था विंध्यप्रदेश जिसका निर्माण रीवा और बुंदेलखंड एजेंसी की 35 रियासतों के साथ मिलाकर किया गया था, इसकी राजधानी रीवा को बनाया गया था। यह राज्य मूलतः दो क्षेत्रों बघेलखंड और बुंदेलखंड को मिलाकर बनाया गया था। इसके लिए इसमें सरकार बनाने के कुछ प्रारंभिक प्रयोग असफल रहे, जिसके बाद इसके विलयन का फैसला लिया गया था, लेकिन समाजवादियों के उग्र आंदोलन के बाद यह रुक गया और केंद्रीय सरकार ने इसे पार्ट-सी स्टेट के तौर पर रखा था, अर्थात केंद्रशासित प्रदेश जैसे। यहाँ पर उपराज्यपाल और साठ सदस्यीय विधानसभा थी, 1952 के चुनाव में पंडित शंभूनाथ शुक्ला के नेतृत्व में यहाँ कांग्रेस की सरकार बनी थी।
भोपाल राज्य
और चौथा राज्य था भोपाल, जिसके शासक नवाब हमीदुल्ला खान थे, वह भोपाल का विलयन पाकिस्तान के साथ करना चाहते थे, लेकिन वहाँ की अधिसांख्य हिंदू जनता भारत में मिलना चाहती थी। हालांकि भौगोलिक और राजनैतिक दृढ़ता के कारण यह संभव नहीं हो पाया था, इसीलिए भोपाल का विलय भारतीय संघ में 1949 में हुआ था, जिसके बाद इसे पार्ट-सी के तौर पर रखा गया था, यहाँ पैंतालिस विधानसभा सीटें थीं और डॉ शंकर दयाल शर्मा यहाँ के प्रथम मुख्यमंत्री बने थे।
मध्यप्रदेश का निर्माण क्यों किया गया
लेकिन अब सवाल उठता है, जब चार राज्य बन चुके थे और सब सही चल रहा था तो नए राज्य बनाने की जरूरत थी, और वह भी जिस राज्य की मांग कभी की नहीं गई थी। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश में लिखते हैं, मध्यप्रदेश निर्माण का संयोग बड़ा विचित्र था, 1952 में मद्रास प्रांत से अलग तेलगु भाषी राज्य के निर्माण को लेकर भूख हड़ताल करते हुए श्रीरामलुलु नाम के व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी, इसके साथ ही अलग मराठी भाषी राज्य की भी मांग हो रही थी, जिसके बाद भारत सरकार ने 1955 में सैय्यद फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का निर्माण किया, इसी आयोग ने भाषाई आधार पर सोलह राज्य और तीन केंद्रशासित प्रदेश बनाने की सिफारिश की थी। इसी के आधार पर ही आयोग ने सेंट्रल प्रोविन्स के हिंदी भाषी क्षेत्रों के साथ ही मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर एक राज्य बनाने की सिफारिश की थी।
मध्यभारत, नए राज्य में क्यों नहीं मिलना चाहता था
लेकिन दिक्कत यह थी चारों राज्यों की अपनी विधानसभा थी, अपने मुख्यमंत्री थे, चूंकि चारों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थी, इसीलिए इनके विलयन में कुछ ज्यादा बड़ी दिक्कत नहीं थी, लेकिन इन चार राज्यों के विलयन में सबसे बड़ी समस्या भावनात्मक एकीकरण की थी। हालांकि चारों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने साथ मिलकर कई मीटिंग्स की और धीरे-धीरे एकीकृत मध्यप्रदेश की नींव पड़ने लगी। लेकिन प्रारंभ में मध्यभारत स्टेट की नए राज्य के साथ मिलने की इच्छा नहीं थी, दरसल वहाँ के मुख्यमंत्री तख्तमल जैन थे, उनका यह मानना था, मध्यप्रदेश के साथ मिलने से मध्यभारत की पहचान खत्म हो जाएगी, क्योंकि मध्यभारत अत्यंत साधन सम्पन्न राज्य था, और नए मध्यप्रदेश के कई क्षेत्र अत्यंत पिछड़े थे।
कांग्रेस कमेटी द्वारा क्षेत्र अदला-बदली के प्रस्ताव
तत्कालीन महकौशल कांग्रेस कमेटी ने तो प्रस्ताव देकर उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड के चार जिलों झांसी, हमीरपुर, महोबा और जालौन को मध्यप्रदेश में मिलाने और तथा मध्य भारत के चार जिलों ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना को उत्तरप्रदेश में अदला बदली करने का प्रस्ताव दिया था। जबकि कुछ नेताओं का मत था रीवा, सीधी, सतना और शहडोल जिलों को उत्तरप्रदेश में शामिल कर दिया जाए, लेकिन ऐसा हो ना पाया।
मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री कौन थे
अब चूंकि चार राज्य थे और चारों राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और चार मुख्यमंत्री थे, तो नए बने राज्य मध्यप्रदेश का पहला मुख्यमंत्री कौन होगा, इसके लिए बहुत मुश्किल नहीं थी, क्योंकि सीपी और बरार के मुख्यमंत्री पं रविशंकर शुक्ल इनमें से सबसे ज्यादा वायोवृद्ध थे, लिहाजा उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार कर लिया गया, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने से सबसे ज्यादा टीस तख्तमल जैन को हुई।
जबलपुर मध्यप्रदेश की राजधानी क्यों नहीं बन पाया
लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत नए प्रांत की राजधानी को लेकर हुई, राज्य पुनर्गठन आयोग ने जबलपुर को नई राजधानी के तौर प्रस्तावित किया, लेकिन जबलपुर के साथ समस्या थी स्थान और भवनों की कमी, क्योंकि यह ब्रिटिश प्रशासन का भी अत्यंत महत्वपूर्ण शहर था। ग्वालियर और इंदौर का भी दावा था, लेकिन उनके आपसी विवाद से यह संभव नहीं हो पाया, चारों प्रांतों के मुख्यमंत्रियों की कई बैठकें रीवा और जबलपुर में हो चुकी थीं।
भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी कैसे बनी
इसी बीच भोपाल के मुख्यमंत्री शंकरदयाल शर्मा दिल्ली गए और केंद्रीय नेताओं से मुलाकात की, इस दौरान उन्होंने प्रस्तावित किया भोपाल में रियासतकालीन कई भवन खाली हैं, इनमें बेहद विशाल मिंटो हाल भी एक था, नवाब इन्हें सरकार को सौंपने को तैयार थे, पंडित नेहरु को भोपाल का प्रस्ताव ठीक लगा, यहाँ बहुत सारा खाली स्थान और भवन था। इसके अलावा यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरत और मौसम भी अत्यंत अनुकूल था, पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ बाढ़ की भी समस्या नहीं होती थी और भोपाल पूरे मध्यप्रदेश के एकदम मध्य में था। इसके अलावा उसे राजधानी बनाने के पीछे एक राजनैतिक कारण भी था, दरसल भोपाल रियासत सबसे आखिर में भारतीय संघ में शामिल होने वाली रियासत थी, यहाँ के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान भोपाल को पाकिस्तान के साथ मिलाना चाहते थे, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। इसीलिए कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व ने भोपाल को राजधानी के तौर पर पहली वरीयता दी, राजधानी बनते समय भोपाल सीहोर जिले की एक तहसील मात्र था, यह वर्ष 1972 में पूर्ण जिला बना था।
मध्यप्रदेश निर्माण के समय हुए भौगोलिक परिवर्तन
1 नवंबर 1956 को जब नया राज्य बना तो उसमें कई भौगोलिक परिवर्तन हुए, सीपी और बरार के नागपुर समेत आठ मराठी भाषी जिले मुंबई प्रांत को शेष हिंदी भाषी क्षेत्र मध्यप्रदेश को दे दिए गए, मंदसौर जिले की सुनेल-टप्पा तहसील राजस्थान को दे दी गई और राजस्थान के कोटा जिले की सिरोंज तहसील को मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया गया, जबकि विंध्यप्रदेश और भोपाल को पूरा का पूरा मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया गया।
मध्यप्रदेश का नाम किसने रखा था
इस राज्य का नक्शा देख कर पंडित नेहरु ने कहा था, कैसा राज्य बना दिया है, बिल्कुल ऊंट जैसा। लेकिन पंडित रविशंकर शुक्ल ने कहा- इसका आकार एकदम गणेश की मुखाकृति जैसा है। पंडित नेहरू ने ही इस राज्य का नामकरण किया था, देश के एकदम मध्य में स्थित होने के कारण ही इसे मध्यप्रदेश कहा गया। निर्माण के साथ इसमें कुल 43 जिले थे और समय-समय पर इसमें जिलों की संख्या बढ़ती ही गई।
भोपाल को क्यों कहते हैं बाबुओं का शहर
राज्य बनने के साथ ही बाकि तीन राज्यों से अधिकारी और बाबू भोपाल रवाना होने लगे, अब चूंकि भोपाल की बसाहट पुराने भोपाल तक ही सीमित थी और यह सीहोर जिले की एक तहसील मात्र था। लेकिन जब मध्यप्रदेश में विलीन चार राज्य के कर्मचारी यहाँ पहुंचे तो उनके लिए एक नए नगर की स्थापना की गई, जिसे आजकल टीटी नगर कहा जाता है। तो अगर यह कहा जाए, भोपाल का एक छोटे से टाउन से महानगर बनने का सफर सरकारी बाबूओं के माध्यम से हुआ, तो यह गलत नहीं होगा।
अमावस की रात हुआ था शपथग्रहण समारोह
भोपाल स्थित मिंटो हाल को नई विधानसभा घोषित किया गया, उसके बाद यहाँ के चीफजस्टिस हिदायतुल्लाह ने नए राज्यपाल डॉ पट्टाभि सीतारमैया को दिलवाई और उन्होंने नए मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल को। 80 वर्ष के पं शुक्ल पुरानी राजधानी नागपुर से जी. टी. एक्सप्रेस से बैठकर भोपाल आए थे। 1 नवंबर 1956 को जिस वक्त मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ था, वह अमावस्या की रात थी, शपथ ले रहे पं शुक्ला को किसी ने यह बात याद दिलाई, वे थोड़ा असहज हुए, लेकिन अगले ही पल सहज होते हुए इस अंधेरे को भगाने के लिए हजारों दिए तो जल रहे हैं, बोले यह दीवाली की भी रात है, और इस अंधेरे को भगाने के लिए हजारों दिए जल तो रहे हैं। क्योंकि वह दीवाली के एक दिन पहले की रात थी।
सन 2000 में छत्तीसगढ़ हुआ अलग
तो इस तरह निर्माण हुआ मध्यप्रदेश का, हालांकि 1 नवंबर सन 2000 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों पर यहाँ से अलग कर एक नए राज्य छत्तीसगढ़ का निर्माण किया गया।

