Munshi Premchand Jayanti: इस वर्ष मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती है। 31 जुलाई 1880 बनारस के निकट लमही नाम के गाँव में पैदा हुए धनपत राय श्रीवास्तव की, नवाब राय से मुंशी प्रेमचंद तक की यात्रा अत्यंत रोचक है।
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
उनका जन्म 31 जुलाई 1880 बनारस के निकट लमही नाम के गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल श्रीवास्तव और माता का नाम आनंदीदेवी था, उन्होंने अपनी माँ के नाम को ही केंद्र में रखकार ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी लिखी थी। जबकि उनके दादा गुरुसहाय राय पटवारी थे। बालक का नाम रखा गया धनपत राय श्रीवास्तव, पिता किसानी के साथ ही डाकखाने में मुंशी थे। हालांकि उनके चाचा उन्हें नवाबराय कहते थे, अपने लेखन की शुरुआत में उन्होंने यही नाम प्रयोग किया था। प्रेमचंद जब सात वर्ष के थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया था, इसके बाद प्रेमचंद के पिता ने दूसरा विवाह कर लिया।
15 वर्ष की उम्र में हो गया था विवाह
जब प्रेमचंद महज 15 वर्ष के थे, तभी उनके पिता ने उनका विवाह करवा दिया। लड़की ऐसी थी जो प्रेमचंद को पसंद नहीं थी, इसका जिक्र उन्होंने स्वयं किया है, कि वह बहुत ही झगड़ालू और कर्कश स्वभाव की थीं। लेकिन यह रिश्ता ज्यादा दिन टिक नहीं पाया, प्रेमचंद की पहली पत्नी, अपने मायके चली गईं और फिर कभी वापस नहीं आईं। हालांकि इसके बाद भी प्रेमचंद कुछ वर्षों तक उन्हें खर्च देते रहे।
बाल विधवा महिला से किया दूसरा विवाह
1906 में प्रेमचंद ने शिवरानी देवी से दूसरी शादी की, शिवरानी देवी बाल विधवा थीं, उनके पहले पति का निधन बहुत पहले ही हो गया था। शिवरानी देवी से शादी के बाद, प्रेमचंद के जीवन में बहुत सार्थकता आई और जीवन में स्थायित्व आया। सुखद वैवाहिक जीवन की वजह से ही, उनकी रचनात्मकता को नए आयाम प्राप्त हुए।
प्रारंभिक पढ़ाई उर्दू और फारसी में हुई
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के मदरसे में हुई थी, जहाँ उन्हें उर्दू और फारसी पढ़ाई गई। उच्च शिक्षा के लिए शहर पढ़ने गए, लेकिन हिसाब की परीक्षा में दो बार फेल हुए। दसवीं की पढ़ाई करने के बाद कॉलेज में दाखिला लिया, इसके बाद शहर में ही रहकर अपनी पढ़ाई करने लगे। खर्च के लिए ट्यूशन पढ़ाते थे। शहर में रहकर ही उनकी पढ़ने-लिखने में रुचि बढ़ती गई। आगे चलकर हिंदी और अंग्रेजी भी स्वाध्याय से सीख ली, 1904 में हिंदी वर्णाकुलर की परीक्षा भी पास कर ली थी। 1919 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बी. ए. की डिग्री भी ली।
उच्च शिक्षा प्राप्त कर बने अध्यापक
क्वींस कॉलेज बनारस से पासआउट होकर निकलने के बाद 18 रुपये मासिक में अध्यापक की नौकरी भी करने लगे। इसके बाद बहराइच, प्रतापगढ़, महोबा, कानपुर, गोरखपुर और इलाहाबाद समेत कई शहरों में रहे। आगे चलकर वह गोरखपुर में सहायक शिक्षक और छात्रावास के अधीक्षक भी बने। बी. ए. करने के बाद उन्हें पदोन्नति भी मिली और वह स्कूल इंस्पेक्टर बन गए।
गांधी के आह्वान पर छोड़ी सरकारी नौकरी
इसी बीच देश में गांधी पदार्पण हुआ, 1921 में उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन छेड़ा, इसी बीच उन्होंने सरकारी कर्मचारियों से भी असहयोग का आह्वान किया। गांधी जी से प्रभावित होकर मुंशी प्रेमचंद ने भी सरकारी नौकरी छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़े।
नौकरी छोड़ साहित्य को समर्पित
नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान साहित्य की तरफ ही लगाने का फैसला किया। तब से 1936 में आखिरी समय तक वह साहित्य साधना ही करते रहे। इसी बीच बहुधा उन्हें कई आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी साहित्य की साधना अनवरत जारी ही रही।
उर्दू से की थी लेखन की शुरुआत
प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा एक उपन्यासकार और आलोचक के तौर पर शुरू हुआ। उनका पहला उपन्यास 1901 में प्रकाशित हुआ और दूसरा 1904 में, तब वह अपने नाम नवाबराय के नाम से ही लिखते थे। 1907 से उन्होंने कहानियाँ लिखना भी प्रारंभ कर दिया। प्रारंभ की उनकी कुछ कहानियाँ उस समय सुप्रसिद्ध पत्रिका जमाना में प्रकाशित हुई थीं। उनका पहला कहानी संग्रह सोजे वतन, उस समय छपा, जिस समय विश्वयुद्ध के बादल छाए हुए थे। लिहाजा अंग्रेज सरकार ने उनकी रचनाओं को अपने लिए खतरनाक मानते हुए जब्त कर।
नवाबराय से कैसे बने प्रेमचंद | How did Nawabrai become Premchand
दरसल हुआ यह कि प्रेमचंद सरकारी नौकरी में थे, इसीलिए वह नवाबराय नाम से लिखते थे, दरसल यह नाम उनके एक दूर के चाचा ने रखा था। लेकिन उर्दू भाषा में लिखा गया उनका कहानी संग्रह, अंग्रेज सरकार ने जब्त करने का आदेश दे दिया था, जाने कैसे उनके उच्च अधिकारियों को इसका पता चल गया था। लेकिन फिर भी उनकी साहित्य साधना जारी ही रही। कानपुर से निकालने जमाना पत्रिका के संपादक मुंशी दयानारायण निगम के सलाह के अनुसार वह ‘प्रेमचंद’ के छद्म नाम से लिखने लगे। इस नाम से उनकी पहली कहानी “बड़े घर की बेटी” प्रकाशित हुई, जिसकी केंद्रीय पात्र का नाम आनंदी था, जो उनकी माँ से प्रेरित था, जो खुद बहुत बड़े जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थीं।
मुंशी प्रेमचंद नाम कैसे पड़ा | How did Munshi Premchand get his name
बहुत लोग कहते हैं मुंशी प्रेमचंद के नाम में मुंशी शब्द इसीलिए लगता है, क्योंकि उनके पिता मुंशी थे, लेकिन शायद बहुत कम लोगों इस बात की जानकारी है, मुंशी प्रेमचंद के नाम में जो ‘मुंशी’ शब्द है, वह उनके पिता के वजह से नहीं, बल्कि कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की वजह से लगता है।
दरसल हुआ यह कि महात्मा गांधी के प्रभाव के दौर में ‘हंस’ नाम की एक पत्रिका निकली थी, इस पत्रिका के संपादक मंडल में प्रेमचंद और के एम मुंशी दोनों शामिल थे, इसीलिए लेखों में दोनों का नाम छपता था, चूंकि के एम मुंशी प्रेमचंद से वरिष्ठ थे, पहले कन्हैयालाल मुंशी और फिर कॉमा लगाकर प्रेमचंद छपता, कुछ इस तरह ‘ कन्हैयालाल मुंशी, प्रेमचंद’, कभी-कभी केवल ‘मुंशी, प्रेमचंद’ छपता था, लेकिन एक बार प्रिंटिंग वाले की गलती की वजह से बिना कॉमा के ‘मुंशी प्रेमचंद’ छप गया, इसके बाद पाठकों ने इसे एक व्यक्ति ही समझ लिया, और प्रेमचंद बन गए मुंशी प्रेमचंद।
हिंदी गद्य साहित्य के कथा सम्राट
प्रेमचंद ने अपने जीवन काल में कुल 18 उपन्यास और 300 कहानियाँ लिखी थीं। इसके साथ ही कई आलोचनात्मक लेख भी लिखे थे। उनके रचनाओं में एक आदर्शोन्मुखी यथार्थ होता था, मुंशी प्रेमचंद को आज भी पढ़ना ऐसे लगता है जैसे हम उस समय के यथार्थ समाज को जी रहे हों, प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना तब थे। हिंदी साहित्य में उन्हें कथा सम्राट कहा गया। लेकिन दुखद 1936 में पेचिश के कारण उनका निधन हो गया।