Leela Chitnis Death Anniversary: लीला चिटनिस हिंदी और मराठी सिनेमा की एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने समय की सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर न केवल सिनेमा में अपनी पहचान बनाई, बल्कि नारी सशक्तीकरण की एक मिसाल भी कायम की। वह हिंदी सिनेमा की पहली ग्रेजुएट अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1930 से 1980 के दशक तक अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
लीला चिटनिस का जन्म 9 सितंबर 1909 को कर्नाटक के धारवाड में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे, जिसके कारण उनके घर में शिक्षा का माहौल था। लीला ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और उन्हें महाराष्ट्र की पहली “ग्रेजुएट सोसाइटी लेडी” का खिताब मिला। उस दौर में, जब महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना असामान्य था, लीला की यह उपलब्धि अपने आप में क्रांतिकारी थी।
थिएटर से सिनेमा तक का सफर
लीला ने अपने करियर की शुरुआत रंगमंच से की। उन्होंने ‘नाट्यमानवंतर’ नामक एक प्रगतिशील थिएटर ग्रुप के साथ काम किया, जो इब्सन, शॉ और स्टैनिस्लाव्स्की जैसे लेखकों से प्रभावित था। इस ग्रुप के साथ उन्होंने कई कॉमेडी और ट्रैजिक नाटकों में मुख्य भूमिकाएं निभाईं और बाद में अपना खुद का रंगमंच समूह भी स्थापित किया।
1930 के दशक में, जब सिनेमा में महिलाओं का काम करना सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं था, लीला ने साहस के साथ इस क्षेत्र में कदम रखा। उनकी पहली फिल्म ‘सागर मूवीटोन’ में एक छोटी भूमिका थी, लेकिन जल्द ही उन्हें ‘जेंटलमैन डाकू’ और ‘छाया’ जैसी फिल्मों में दमदार किरदार निभाने का मौका मिला।
बॉम्बे टॉकीज की ब्लॉकबस्टर ‘कंगन’
लीला चिटनिस का करियर तब शिखर पर पहुंचा, जब उन्हें बॉम्बे टॉकीज के साथ काम करने का अवसर मिला। 1939 में आई फिल्म ‘कंगन’ में उन्होंने सुपरस्टार अशोक कुमार के साथ मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म हिंदी सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर मानी जाती है, और अशोक-लीला की जोड़ी दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हुई।
अशोक कुमार के साथ जमी जोड़ी
अशोक कुमार ने स्वयं स्वीकार किया था कि बिना कुछ बोले आंखों से भाव व्यक्त करने की कला उन्होंने लीला से सीखी। इसके बाद लीला ने ‘बंधन’ और ‘झूला’ जैसी फिल्मों में भी अशोक कुमार के साथ काम किया। 1941 में वह पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं, जिन्होंने ‘लक्स’ साबुन के विज्ञापन में काम किया, जिसने उन्हें और भी प्रसिद्धि दिलाई।
मां की भूमिकाओं में नई पहचान
1940 के दशक के बाद, जब नए चेहरों ने नायिका की भूमिकाएं लेनी शुरू कीं, लीला ने सहजता से चरित्र भूमिकाओं को अपनाया। उन्होंने ‘शहीद’ में दिलीप कुमार की मां की भूमिका निभाई, जो सुपरहिट रही। इसके बाद उन्होंने राज कपूर, देव आनंद, धर्मेंद्र, सुनील दत्त, संजीव कुमार और राजेश खन्ना जैसे सितारों की मां के किरदार में अपनी अलग छाप छोड़ी। उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्में ‘नया दौर’, ‘साधना’, ‘उजाला’, और ‘बेवकूफ’ रही हैं।
निजी जीवन और उनका संघर्ष
15 साल की उम्र में उनकी शादी गजानन यशवंत चिटनिस से हुई, जिनके साथ उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। उन्होंने क्रांतिकारी मानवेंद्र नाथ राय को अपने घर में ब्रिटिश पुलिस से छिपाकर रखा था। लेकिन उनके वैवाहिक जीवन में तनाव रहा, और अंततः तलाक हो गया।
चार बच्चों की मां होने के नाते, लीला ने अपने करियर और पारिवारिक जिम्मेदारियों को संतुलित करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। उनकी आत्मकथा ‘चंदेरी दुनियेत’ में उन्होंने अपने जीवन के इन पहलुओं का जिक्र किया है। एक समय उनके बच्चों की देखभाल करने वाली सहायिका के चले जाने पर उन्हें अकेले ही घर और काम का संतुलन बनाना पड़ा।
स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक योगदान
लीला चिटनिस केवल एक अभिनेत्री ही नहीं, बल्कि एक समाजसेवी भी थीं। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने शिक्षिका के रूप में भी काम किया और अपने बच्चों की परवरिश के लिए स्कूल में पढ़ाया।
फिल्मों से विदाई और अंतिम वर्ष
1980 में ‘रामू तो है दीवाना’ उनकी आखिरी फिल्म थी। इसके बाद वह अमेरिका चली गईं, जहां उनके बेटे मानवेंद्र चिटनिस के घर पर 14 जुलाई 2003 को 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। लीला चिटणीस ने न केवल अपनी अभिनय कला से, बल्कि अपनी शिक्षित पृष्ठभूमि, साहस और दृढ़ता से हिंदी सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने उस दौर में महिलाओं के लिए सिनेमा में काम करने की राह आसान की, जब यह पेशा सामाजिक रूप से अस्वीकार्य था।