Nutan Death Anniversary | मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लेने वाली पहली अभिनेत्री नूतन

Nutan Death Anniversary | Author: न्याज़िया बेग़म | वो ऐसी अभिनेत्री थीं जिनके अंदर बचपन से अभिनेत्री बनने के सारे गुण थे लेकिन हीरोइन बनने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी उनकी तुलना सबसे पहले उनकी मां से ही की गई क्योंकि वो खुद बड़ी एक्ट्रेस थीं और खूबसूरत भी थीं, जिनकी बेटी के नाते उन्हें सांवली और बेडौल भी कहा गया, ये बात उन्हें प्रूफ करनी पड़ी कि अभिनय अपने आप में सुंदर कला है वो अंदर से आपके चरित्र की प्रकृति को उभारता है उसकी आवश्यकताएं आपके किरदार की ज़रूरतें हैं, वो आपके बाहरी रूप-रंग का मोहताज नहीं है जी हां ये थीं नूतन जिन्होंने-सीमा’, ‘सुजाता’, ‘बंदिनी’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी फिल्मों में अपनी बेहतरीन अदाकारी की छाप छोड़ी,महिला प्रधान भूमिकाएं करके अपनी अलग पहचान बनाई, वो अपनी फिल्में ये देखकर ही साइन करती थीं कि उनके किरदार में इतना दम हो कि वो उसमें ढलकर, अपना बेस्ट दे सकें, अपनी बेहतरीन अदाकारी का जलवा दिखा सकें।

मिस इंडिया बनने वाली पहली अभिनेत्री नूतन

और एक बात हम आपको याद दिल दें कि वो ‘मिस इंडिया’ कॉम्पटीशन में हिस्सा लेने वाली वाली पहली एक्ट्रेस थीं। ये वो दौर था जब हीरोइंस सुंदरता और शालीनता की मिसाल पेश करने के लिए पारंपरिक परिधानों में दिखती थीं ऐसे में हिंदी फिल्मों में स्विमसूट पहनने वाली भी वो पहली अभिनेत्री थीं और अपनी काबिलियत के बल पर नूतन अपने दौर की एकमात्र ऐसी एक्ट्रेस भी थीं जिन्हें 40 साल की एज में भी लीड रोल ऑफर होते थे। 4 जून, 1936 को मुंबई, महाराष्ट्र में पैदा हुईं नूतन ,जाने-माने फिल्ममेकर कुमारसेन समर्थ और एक्ट्रेस शोभना समर्थ की बेटी थीं पर बचपन में अपने सांवले रंग की वजह से उन्हें काफी ताने सुनने पड़ते थे। एक बार उन्होंने खुद बताया था कि जब मैं चार साल की थी तो मां की एक सहेली ने मेरे बारे में कहा था, कि सच कहूं शोभना तुम्हारी बेटी होने के बावजूद ये सुंदर नहीं है, ये सुनकर मां बहोत दुखी हो गई थीं, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा था कि, जब तुम बड़ी होगी तो बेहद खूबसूरत दिखने लगोगी क्योंकि तुम्हारे नैन नक्श बहुत प्यारे हैं, तुम बहुत मासूम सी हो और मुझे मां की बात पर इतना यकीन हो गया कि इसके बाद जब भी कोई मेरे लुक्स पर कमेंट करता तो मैं कहती-आप इंतजा़र करिए और मुझे बड़ा होने दीजिए, जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो अपनी मां की तरह खूबसूरत हो जाऊंगी।

पर मेरा दिल रखने के लिए उन्होंने ये बात कह तो दी थी, लेकिन वो मेरे लिए परेशान रहती थीं ,मेरे अंदर भी कॉन्फिडेंस नहीं था कि मै कभी मां जैसी बन पाऊंगी पर मां को मेरी काबिलियत पर भरोसा था और 14 साल की उम्र में मैने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्म ‘नल दमयंती’ के ज़रिए फिल्मी दुनिया में क़दम रखा। इस फिल्म में मेरे अभिनय को देखने के बाद 1950 में उन्होंने ही मेरे लिए ‘हमारी बेटी’ नाम की एक फिल्म बनाई। इसके बाद नूतन को 1951 में फिल्म नगीना में काम मिला जिसमें उनके काम की खूब तारीफें हुईं पर इसके प्रीमियर में वो खुद ही नहीं जा पाईं क्योंकि तब वो महज़ 15 साल की थीं और फिल्म ए सर्टिफिकेट थी जिसे 18 साल से ऊपर के लोग ही देख सकते थे हालांकि इसे देखने की उन्होंने पूरी कोशिश की, प्रीमियर वाले दिन वो शम्मी कपूर और मां शोभना समर्थ के साथ थिएटर पहुंची थीं, जहां ख़ासी बहस करने के बाद भी वॉचमैन ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। इसके बाद ही नूतन की एक और फिल्म ,”हम लोग” रिलीज़ हुई जिससे नूतन की पॉपुलैरिटी और बढ़ गई।
इन फिल्मों की सफलता के बाद नूतन को जो रिश्तेदार बदसूरती के ताने दिया करते थे, वो उनकी तारीफों के पुल बांधने लगे।
फिल्मों के लिए उन्होंने अपना फिगर भी मेंटेन किया तभी उनकी मां ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए स्विट्जरलैंड भेज दिया और खुद मसूरी शिफ्ट हो गईं। नूतन जब पढ़ाई करके मसूरी आईं तब उन्होंने मिस इंडिया कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया और मिस मसूरी का टाइटल अपने नाम किया ।

1955 में आपने एक बार फिर फिल्मों में कमबैक किया और आगे चलकर फिल्म फेयर पुरस्कारों की झड़ी लगाने वाली नूतन ने फिल्म ‘सीमा’ की, जिसके लिए उन्हें अपने करियर का पहला बेस्ट एक्ट्रेस फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। इसके बाद तो आपने बैक टु बैक पेइंग गेस्ट, बंदिनी, सुजाता, छलिया, देवी, सरस्वतीचंद्र जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया और देखने वालों के दिल जीत लिए। उनकी दिलकश आवाज़ भी अदाकारी में अहम रोल अदा करती थी उसपे उनका तलफ़्फ़ुज़ चार चांद लगा देता था ये इसलिए भी झलकता था क्योंकि उन्हें ताल और ले की भी समझ थी और उन्हें जब भी मौका मिलता वो गाती भी थीं, नूतन ने फिल्म में भी दो गाने भी गाए, एक पेइंग गेस्ट में जब पेट में रोटी होती है …,और दूसरा छबीली में, ऐ मेरे हमसफर …, जो बहुत सुरीले हैं और उनकी पर्सनालिटी से मैच करते हैं। वो अपने किरदारों में एक रंग अपना भरती थी जिसमें उनके नाम की तरह नया पन होता था ,पहली बार वो फिल्म दिल्ली का ठग में वो स्विमसूट पहने नज़र आईं।

अब वो ज़रा भी नहीं झिझकती थीं क्योंकि तब तक उन्हें भरोसा हो गया था कि वो सच में खूबसूरत हो गई हैं और उनके लिए लोगों की दीवानगी भी इस क़दर बढ़ चुकी थी कि इस फेहरिस्त में उनके को – आर्टिस्ट भी शामिल थे। कई बॉलीवुड एक्टर तो ऐसे भी थे जो उनसे शादी करना चाहते थे इसमें पहला नाम शम्मी कपूर का आता है क्योंकि दोनों बचपन के दोस्त थे पर एक दूसरे को पसंद करने के बावजूद किसी वजह से दोनों की शादी नहीं हो पाई उनको पसंद करने वाले दूसरे हीरो थे,
राजेंद्र कुमार जो नूतन को बेहद पसंद करते थे और उनसे शादी करना चाहते थे और नूतन की मां यानी शोभना जी से उनकी बेटी का हाथ मांगने भी गए थे, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया।

इन सितारों के बाद उनकी ज़िंदगी में आए लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल जिन्होंने जीवनसाथी बनकर नूतन की ज़िंदगी रौशन की 1959 में आप दोनों ने शादी की थी और आपके बेटे हैं मोहनीश बहल जो हमें फिल्मों में नज़र आते रहते हैं ।
एक क़िस्सा हम आपको बताते चलें कि जब मोहनीश इस दुनिया में आने वाले थे तब नूतन जी को बिमल रॉय ने फिल्म ‘बंदिनी’ का ऑफर दिया था लेकिन प्रेग्नेंसी की वजह से नूतन ने काम करने से मना कर दिया पर जब रजनीश बहल जो ने उन्हें समझाया हिम्मत दी तो उन्होंने बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ साइन कर ली। जिसके लिए उन्हें खूब तारीफें मिलीं ,ये उनके करियर की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक मानी जाती है , मां बनने के बाद भी वो फिल्मों में काम करती रहीं और रजनीश जी भी उनका साथ इसी तरह देते रहे कहते हैं नूतन उनका कहना भी बहुत मानती थीं एक बार देवी की शूटिंग के दौरान नूतन संजीव कुमार के साथ काम कर रही थीं, जिनसे उनकी दोस्ती नई थी लेकिन सेट पर इनकी बॉन्डिंग देखकर एक फिल्मी मैगजीन में ये खबरें छप गईं कि दोनों का अफेयर है। ये खबर जब नूतन ने पढ़ी तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने फिल्म के सेट पर सबके सामने संजीव कुमार को थप्पड़ जड़ दिया,जिसके बाद ये खबर भी आग की तरह फैल गई, और उनके बीच अफेयर की ख़बर धुंधली पड़ गई, रिपोर्ट्स की माने तो नूतन को ऐसा करने के लिए रजनीश जी ने ही कहा था, ताकि एक नई ख़बर सुर्खियों में आ जाए।

नूतन का स्टारडम ऐसा था कि शादी के बाद भी उनका फिल्मी करियर डाउन नहीं हुआ। वो हीरो के बराबर फीस लेती थीं और फिल्ममेकर्स हमेशा उन्हें अपनी फिल्म में कास्ट करने के इंतज़ार में रहते थे ,एक सशक्त भूमिका के साथ जो उस वक्त के परंपरागत नायिका के किरदार से अलग होती थी इसी वजह से उन्हें पाथ ब्रेकिंग एक्ट्रेस के तौर पर भी याद किया जाता है।
1976 की फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ के बाद नूतन सपोर्टिंग रोल निभाने लगीं लेकिन वो भी दमदार किरदार की शर्त के साथ और इस फिल्म के लिए नूतन को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला था।

नूतन ने अपने फिल्मी करियर में लगभग हर बड़े एक्टर के साथ काम किया था, लेकिन दिलीप कुमार के साथ काम करने के ख्वाहिश बाकी थी जिसके लिए उन्हें बहोत इंतज़ार करना पड़ा 1953 में ‘शिकवा’ नाम की एक फिल्म मिली भी थी जिसमें नूतन को दिलीप कुमार के अपोजिट कास्ट किया गया था, पर ये फिल्म थोड़ी सी शूटिंग के बाद बंद हो गई और नूतन मायूस हो गईं कि वो अब दिलीप कुमार के साथ काम नहीं कर पाएंगी , लेकिन 1986 में सुभाष घई ने जब फिल्म ‘कर्मा’ बनाई तो नूतन को दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका दे दिया और उनकी तमन्ना पूरी हो गई। उनकी रगों में अदाकारी ख़ून की तरह दौड़ती थी जो उन्हें घर से ही मिली थी और अदाकारी कि ये की रवायत उनकी बहन तनूजा और तनुजा जी की बेटी काजोल ने भी बखूबी निभाई है।

1990 में नूतन को ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ और 21 फरवरी, 1991 को 54 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली थी। कैंसर का पता लगने के बावजूद वो ‘गर्जना’ और ‘इंसानियत’ की शूटिंग कर रही थीं। उनकी मौत के बाद फिल्म ‘गर्जना’ कभी रिलीज नहीं हो पाई। वहीं, दूसरी फिल्म ‘इंसानियत’ में नूतन के साथ विनोद मेहरा भी थे जिनकी भी डेथ हो गई। ऐसे में 1994 में फिल्म की कास्ट बदलकर दोबारा शूटिंग हुई और फिर फिल्म रिलीज हो पाई। उन्होंने टीवी धारावाहिक मुजरिम हाज़िर में बतौर कालीगंज की बहू शानदार अभिनय किया, जो छोटे पर्दे पर उनकी इकलौती पर दमदार भूमिका थी।

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