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मालगुड़ी डेज़ के दिन अब न भूलेंगे कभी

maalgudi

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Malgudi Days Serial :आपको पता है ,80 के दशक में भारतीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अनेक स्वतंत्र निर्माताओं और निर्देशकों को टेलीविजन धारावाहिक बनाने के आमंत्रण दिये। आर के नारायण की कृति पर आधारित मालगुडी डेज़ इन्हीं में से एक ऐसा धारावाहिक था जो खासा लोकप्रिय हुआ और जिसका इस दौर के बच्चों पर तो गहरा असर पड़ा ही बड़े भी इन दिनों की गिरफ्त में आने से खुद को रोक नहीं पाए । धारावाहिक में “स्वामी एंड फ्रेंड्स “तथा “वेंडर ऑफ स्वीट्स “जैसी लघु कथाएँ व उपन्यास शामिल थे। इस धारावाहिक को हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनों में बनाया गया था। पद्मराग फिल्म्स के टी.एस.नरसिम्हन द्वारा 1987 में निर्मित मालगुडी डेज़ का निर्देशन दिवंगत कन्नड़ अभिनेता व निर्देशक “शंकर नाग” ने किया था। इस धारावाहिक का फिल्मांकन कर्नाटक के शिमोगा ज़िले स्थित अगुम्बे में किया गया। भारतीय राज्य कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले में अगुम्बे  में स्थित ” मालगुड़ी” एक काल्पनिक शहर है ,दूरदर्शन पर मालगुडी डेज़ के कुल 39 एपिसोड प्रसारित हुये और इसकी लोकप्रियता के चलते मालगुडी डेज़ रिटर्न नाम से पुनर्प्रसारित भी किया गया।

इसके संगीत की धुन आज भी करती है आकर्षित :-

मालगुड़ी डेज़ धारावाहिक के संगीत निर्देशक थे जाने माने वायलिन वादक एल.वैद्यनाथन यानी लक्ष्मीनारायण वैद्यनाथन ,जो शास्त्रीय कर्नाटक संगीत के ज्ञाता थे, वैद्यनाथन का जन्म चेन्नई में वी. लक्ष्मीनारायण और सीतालक्ष्मी, दो कुशल संगीतकारों के घर हुआ था। वो निपुण वायलिन वादक जोड़ी एल. शंकर और एल. सुब्रमण्यम के बड़े भाई थे । तीनों भाइयों ने अपने पिता से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। आपने तमिल और कन्नड़ भाषाओं की 170 से अधिक फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया। वो देश के सर्वश्रेष्ठ संगीत संयोजकों में से एक थे जो दुर्लभ और अज्ञात वाद्ययंत्रों के उपयोग के लिए जाने जाते थे और ध्वनि मिश्रण में वर्तमान तकनीकी प्रगति के आगमन से पहले विभिन्न लोक ताल वाद्यों के साथ मैंडोलिन , बांसुरी और वायलिन की ध्वनियों को सूक्ष्मता से मिलाना जानते थे। 2003 में, तमिलनाडु सरकार ने सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए वैद्यनाथन जी को “कलैमामणि” पुरस्कार से सम्मानित किया था । मालगुड़ी डेज़ के संगीत में घुले बोल थे “ताना न तना न ना ना ,ताना न तना नाना न।” इस सीरियल की स्टार्टिंग में संगीत के साथ कुछ स्केच दिखा कर कहानी के चरित्रों से परिचित भी कराया जाता था ,इन चित्रों को , लेखक आर के नारायण के भाई और टाईम्स ऑफ इंडिया के जानेमाने कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण ने तैयार किया था। जिन्हें प्रतिदिन लिखी जाने वाली कार्टून शृंखला “यू सैड इट” के लिए जाना जाता है।  

कुछ श्रृंखलाएं हुईं बहोत चर्चित :

मालगुड़ी डेज़ सीरियल में कुछ श्रृंखलाओं को सबसे ज़्यादा पसंद किया गया , इसकी सीरीज़ “वेंडर ऑफ स्वीट्स” की बात करें तो ये एक मिठाई विक्रेता जगन की कहानी थी जिसमें विदेश से लौटे अपने बेटे के साथ उसके पटरी बिठाने के प्रयास का वर्णन था। जगन की भूमिका में थे, शंकर के भाई और कन्नड़ और हिन्दी फिल्मों के जाने माने अभिनेता अनंत नाग। “स्वामी एंड फ्रेंड्स” भी बहोत लोकप्रिय हुई ,जो दस बरस के स्वामीनाथन, जिसे उसके दोस्त स्वामी पुकारते हैं, उसके इर्दगिर्द घूमती है। स्वामी को स्कूल जाना ज़रा भी पसंद न था, पसंद था तो अपने दोस्तों के साथ मालगुडी में इधर उधर , मारे -मारे फिरना पर वो दिल से इतना भोला भला और प्यारा था कि सबके दिल में बस जाता था । स्वामी के पिता, जिनका किरदार गिरीश कर्नाड ने निभाया था, जो सरकारी नौकर थे। स्वामी के दो करीबी दोस्त थे, मणि और चीफ पुलिस सुपरीटेंडेंट के पुत्र राजम।

मंजुनाथ का भोला सा चेहरा सबके दिलों में बस गया :-

स्वामी के किरदार में “मंजुनाथ” तो जैसे घर-घर में लोकप्रिय हो गये थे बच्चे बच्चे के मन में उनकी प्यारी सी छवि बस गयी थी। इसी लोकप्रियता के बल पर उन्हें अग्निपथ जैसी मुख्यधारा की फिल्म में महानायक अमिताभ बच्चन के बचपन की भूमिका निभाने को मिली । मंजूनाथ नायकर ने तीन साल की उम्र से अभिनय शुरू किया था और कन्नड़, तेलुगु और हिंदी सहित 68 फिल्मों का हिस्सा बनें, लेकिन “स्वामी और फ्रेंड्स” में उनकी दमदार भूमिका ने उन्हें छह अंतरराष्ट्रीय, एक राष्ट्रीय और एक राज्य पुरस्कार के साथ स्वामी के नाम से एक ख़ास पहचान दिलाई। ये श्रृंखला 1985-86 में उनकी स्कूल की छुट्टियों के दौरान शूट की गई थी, और 1987 में प्रसारित हुई थी, पर बड़े होने पर वे अभिनय की दुनिया से दूर ही रहे।

मालगुड़ी डेज़ को भूलना अब और भी मुश्किल :-

टेलीविजन में 80 के दशक का सबसे यादगार काल्पनिक धारावाहिक , मालगुडी डेज़,अब और भी लोकप्रिय हो गया है और मालगुडी के दिनों को भूलना टेलीविजन की दुनिया में रोमांच ढूढ़ते किसी भी भारतीय के लिए मुश्किल होगा फिर चाहे उसने ये सीरियल बचपन में देखा हो या बड़े में क्योंकि अब ये हक़ीक़त बन चुका है ,जी हाँ मालगुडी संग्रहालय के ज़रिये जिसमें आर.के. नारायण की कहानियाँ , संग्रहालय की दीवारों , प्रतिकृतियों, और एक पुरानी मगर यादों से भरी नैरो-गेज ट्रेन के डिब्बे में सदा के लिए अमर हो गई हैं। दरअसल मालगुडी डेज़ की लिकप्रियता के बाद ही दक्षिण पश्चिम रेलवे ज़ोन के मैसूरु डिवीजन ने अरासुलु स्टेशन का जीर्णोद्धार किया , जहाँ नवनिर्मित मालगुडी डेज़ म्यूज़ियम स्थित है। इस म्यूज़ियम में बाघ और मोर की हमारे कद के बराबर प्रतिकृतियाँ आकर्षण का केंद्र हैं जिनमें हम आज भी कल्पना के पंख लगाकर मालगुड़ी के उन दिनों में पहुंच सकते हैं। इस श्रृंखला के प्रतिष्ठित दृश्यों और पात्रों को म्यूज़ियम की दीवारों पर उकेरा गया है। बैंगनी रंग का रेल का डिब्बा भी है जिस पर मालगुडी चाय की तस्वीर ,हमें चाय पीने के लिए मजबूर कर देती है। अहमदाबाद के पतंग संग्रहालय में हमारे खेलने लायक़ रेलगाड़ियाँ, लोकोमोटिव बोगियाँ और शूटिंग के दौरान खींची गई पुरानी तस्वीरें हैं। मालगुड़ी डेज़ सीरियल का हिस्सा रहे “जॉन देवराज” ने इसे डिज़ाइन किया है। यही नहीं “वेंडर ऑफ स्वीट्स” जैसी ,,श्रृंखला को याद दिलाता , बेंगलुरु के पास एक मालगुडी डेज़ थीम रेस्तरां है, इसके अलावा भी “मालगुडी डेज़” कई रेस्टोरेंट और भोजनालयों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। जिनमें मालगुड़ी की श्रृंखला जैसा ही परिदृश्य बनाया गया है। “मालगुडी वट्टिका रेस्टोरेंट” भी इसी थीम पे बना है।

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