कोई बच्चा अचानक आदर्शवादी नहीं बन सकता , और कोई युवा एक दिन में ही नहीं बिगड़ता। हमारी हर आदत, हमारे हर व्यवहार की नींव बचपन में ही पड़ती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अच्छे इंसान बनें, तो इसकी शुरुआत आज और अभी से करनी होगी यानी उनके बचपन से। बच्चे जिस परिवेश में रहते हैं, जैसा व्यवहार, जैसा आचरण अपने बड़ों का देखते हैं वही अपनाते हैं।
हां,ये भी सही है कि किशोरावस्था से बच्चों में न सिर्फ शारीरिक बल्कि व्यवहारिक बदलाव भी देखने को मिलते हैं ऐसे में बहुत से बच्चे अपनी बात न कह पाने,या अपनों से छुपाने के चलते और को अपना समझ कर रास्ते बदल लेते हैं,बस यहीं वो दौर है जब हम अभिभावकों को बच्चों को न सिर्फ समझना है बल्कि उनके कोमल मन को समझ कर तरासने की जिम्मेदारी भी निभानी है जो निश्चित ही एक दिन में संभव नहीं। इस लेख में इसी विषय पर कुछ ख़ास बिंदुओं पर अपना विचार सांझा किया है जो आपके बहुत काम बना सकता है तो आइए जानते हैं कैसे गढ़ें बच्चों का व्यक्तित्व।
संस्कार क्या हैं और क्यों जरूरी हैं?
संस्कार मतलब सिर्फ ‘नमस्ते’ या ‘प्रणाम’ नहीं, बल्कि जीवन के मूल्यों की समझ है जो बच्चों को आत्मनिर्भर, सहनशील, और ज़िम्मेदार, समाज के प्रति नैतिकता व सभ्यता सिखाते हैं।
बचपन के आदतों और सोच का बीजारोपण
- 0 से 7 साल तक की उम्र ‘इम्प्रिंटिंग’ स्टेज होती है।
- इस उम्र में जो देखा-सुना, वही जीवनभर असर करता है।
संस्कार देने का सबसे असरदार तरीका-उदाहरण बनें
- बच्चे वो नहीं करते जो आप कहते हैं, वो करते हैं जो आप करते हैं।
- घर का वातावरण और बड़ों का व्यवहार ही बच्चों को संस्कारवान बनानें की पहली पाठशाला है।
रोज़ के व्यवहार में करें संस्कार सिखाने की शुरुआत
- कृतज्ञता सिखाएं – खाना मिलने पर धन्यवाद कहना।
- ईमानदारी सिखाएं – छोटी बातों में भी झूठ से बचें।
- दया और सहानुभूति सिखाएं – जानवरों, पशु-पक्षियों , पेड़-पौधों ,गरीबों और छोटे बच्चों से सौजन्य व्यवहार करने को कहें।
- शिष्टाचार – ‘प्लीज़’, ‘सॉरी’, ‘थैंक यू’ जैसे शब्दों के प्रयोग को औपचारिकता नहीं, नैतिकता से जोड़कर सिखाएं।
संस्कार सिखाने वाले घरेलू अभ्यास
- परिवार के साथ ही भोजन करना।
- रात को सोने से पहले दिनभर की एक अच्छी बात पर चर्चा करना।
- कहानियों से नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाना।
- पूजा, त्यौहार और पारिवारिक परंपराओं में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाना।
डिजिटल युग में संस्कार देना क्यों है, अत्यंत ज़रूरी है ?
- मोबाइल और सोशल मीडिया के कारण बच्चों पर बाहरी वातावरण का प्रभाव बढ़-चढ़कर पड़ रहा है, बच्चों समय से पहले वो सब जान लेते हैं जिसकी उनके मन-मस्तिष्क में कोई जगह नहीं है। ऐसे में अंदरूनी मूल्य ही उन्हें संतुलित रखते हैं जो एक परिवार से ही मिल सकते हैं।
विशेष :- संस्कार एक दिन में नहीं आते, इन्हें रोज़-रोज़ सींचने की ज़रूरत होती है। अगर आप आज से शुरुआत करते हैं, तो कल आपके बच्चे समाज के लिए उदाहरण बन सकते हैं। याद रखें – अचानक कुछ नहीं होता, हर महान शुरुआत एक छोटे कदम से होती है। इसलिए समय रहते बच्चों को समझिए और उनके मानवीय व्यवहार का वो मूलमंत्र दीजिए जिस संस्कार कहा जाता है।