शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने एक न्याय संगत और न्याय पूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है ।गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करना वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता,वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण के संदर्भ में भारत की सतत प्रगति और आर्थिक विकास की कुंजी है। सार्वभौमिक उच्चतर स्तरीय शिक्षा वह उचित माध्यम है, जिससे देश की समृद्ध प्रतिभा और संसाधनों का सर्वोत्तम विकास और संवर्धन व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व की भलाई के लिए किया जा सकता है।
अगले दशक में भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा और इन युवाओं को उच्चतर गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा।विश्व का सबसे युवा लेकिन विशालतम लोकतंत्र भारत 78 वर्ष का हो चुका है।राष्ट्र 2047 में अपनी स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा ।अगले 25 वर्षों को अमृत काल का नाम दिया गया है। यह 2047 के बाद शुरु होने वाले स्वर्णिम युग का द्वार होगा। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया जा चुका है।आज के युवा उस रथ के अर्जुन हैं जो भारत को अमृत यात्रा पर ले जाएंगे। यह यात्रा भारत को विश्व गुरु बनाएगी।
21वीं सदी वास्तव में भारत की सदी है।वर्तमान में विश्व की उम्र तेजी से बढ़ रही है लेकिन भारत अब भी नौजवान है और 2070 तक सबसे युवा बना रहेगा। हमारे 1.4अरब मानव संसाधनों में से लगभग एक अरब भारतीय 35 साल से उम्र के हैं। हमारी औसत उम्र 29 वर्ष है।वर्ष 2047 में वैश्विक श्रम बल का 21प्रतिशत भारत में होगा।अनुकूल जनसांख्यिकी का लाभ भारत तभी उठा सकता है जब हर हाथ में योग्यतानुसार काम होगा। रोजगार सृजन इस युवा जनसंख्या के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का समाधान रोजगारोन्मुखी शिक्षा में निहित है। रोजगारोन्मुखी शिक्षा वह शिक्षा है जो छात्रों को बाजार में प्रासंगिक कौशल प्रदान करती है, जिससे उन्हें रोजगार प्राप्त करने में मदद मिलती है।
“शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं होना चाहिए, बल्कि छात्रों को रोजगार के लिए तैयार करना भी होना चाहिए।” शिक्षा का लक्ष्य केवल डिग्रियां देना नहीं होना चाहिए, बल्कि छात्रों को ऐसे कौशल सिखाना चाहिए जो उन्हें रोजगार पाने में मदद करें।
“कौशल विकास ही रोजगार का रास्ता है।” तथा “शिक्षा और उद्योग के बीच मजबूत संबंध स्थापित करना आवश्यक है ताकि छात्रों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा मिल सके।” इसी प्रकार “सरकार को रोजगार आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनानी चाहिए और विभिन्न कार्यक्रमों को शुरू करना चाहिए।”
1.बढ़ती बेरोजगारीः भारत में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है।रोजगारोन्मुखी शिक्षा युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करके इस समस्या का समाधान कर सकती है।
2.कौशल का अभावः भारतीय शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से सैद्धांतिक ज्ञान पर केंद्रित है, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों में व्यावहारिक कौशल का अभाव होता है। रोजगारोन्मुखी शिक्षा इस कमी को दूर कर सकती है।
डिग्रियां तो महज तालीम की रसीदें हैं। असली हुनर तो किरदार में झलकता है।।
3.बदलता रोजगार का परिदृश्यः आजकल रोजगार का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। नई प्रौद्योगिकियों का उदय और वैश्वीकरण ने कौशल की मांग में बदलाव ला दिया है। रोजारोन्मुखी शिक्षा छात्रों को इन बदलावों के लिए तैयार कर सकती है।
4.आर्थिक विकासः कुशल कार्यबल किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।कुशल कार्यबल का निर्माण करके देश के आर्थिक विकास में योगदान दे सकती है।
5.आत्म निर्भरता: रोजारोन्मुखी शिक्षा युवाओं को आत्मनिर्भर बनाती है।जब युवा अपने पैरों पर खड़े होते हैं,तो वे समाज के लिए उपयोगी सदस्य बन जाते हैं।
6.बढ़ता जनसंख्या भार। 7. सरकारी/और गैर सरकारी क्षेत्रो में घटती नौकरियां।
8.देश की आर्थिक तरक्की के लिए तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए।
9.जनशक्ति को आर्थिक क्षेत्र में निवेश के लिए।
10.वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने में आर्थिक स्वावलंबन सहायक है।