भारतीय नौसेना ने सी हैरियर ( Sea Harrier ) लड़ाकू विमान को साल 2016 में रिटायर कर दिया था. अपनी मारक क्षमताओं और स्पीड के चलते यह बहुत प्रसिद्ध रहा. इसकी सेवा समाप्त होने के बाद इसे रीवा वापस लाने के लिए लगातार प्रयास जारी रहे.
भारतीय नौसेना में रक्षा कर रहे लड़ाकू विमान ‘Sea Harrier’ 22 नवंबर को रीवा के सैनिक स्कूल पहुंच चुका है. बताया जा रहा है कि लगातार प्रयासों के बाद रीवा को यह लड़ाकू विमान मिल पाया। मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री महाराजा पुष्पराज सिंह ने बताया कि हमारी पूरी कोशिश रही कि इसे रीवा वापस ले आया जाए. हमारा प्रयास सफल भी रहा. अब इसे रीवा के सैनिक स्कूल में रखा सुरक्षित रखा जाएगा।
रीवा के लिए क्यों ख़ास है Sea Harrier विमान?
बताया जा रहा है कि भारतीय नौसेना में अपनी सेवा दे रहे इस विमान में रीवा के सफेद बाघ ‘विराट’ का लोगो है. ये बाघ विश्व के पहले White Tiger मोहन का अंतिम वंश था, जो 19 साल तक रीवा में रहा और साल 1975 में इसे भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया. महाराजा ने कहा कि हमारे लिए गर्व की बात है विराट को एक लोगो के तौर पर इस फाइटर जेट में जगह मिली. यहां तक कि इस विमान का दूसरा नाम ही विराट था.
क्या खासियत है ‘सी हैरियर’ में?
भारतीय नौसेना ने ये लड़ाकू विमान 1983 में ब्रिटेन से खरीदे थे. नौसेना में आने के बाद ये विमान वाहक पोत विराट में तैनात हो गए थे. दुनिया में शायद ही कोई ऐसा लड़ाकू विमान रहा होगा जो इसकी तरह वर्टिकल लैंडिंग करता था. इनमें एक खासियत थी कि ये दूसरे लड़ाकू विमानों से अलग थे. ये बहुत कम रनवे पर आसानी से टेक ऑफ़ कर लेते थे यानी कि इन्हे उतारने के लिए किसी हवाई पट्टी की जरूरत नहीं पड़ती थी. साथ ही इनमें आसमान में ही ईंधन भरने की क्षमता भी थी. 1,186 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से उड़ान भरने वाले इस जेट के सामने दुश्मन की सांसें फूल जाती थी. लेकिन साल 2016 में इसने अपनी अंतिम उड़ान भरी। 33 साल की सेवा के बाद इसे 11 मई 2016 को सेवामुक्त कर दिया गया.
दुश्मन के 20 विमानों को मार गिराया था
महाराजा पुष्पराज सिंह ने इसकी तारीफ़ करते हुए कहा कि फ़ॉकलैंड युद्ध और बाल्कन संघर्षो में इसने अपनी सेवा दी. इतना ही नहीं इन युद्धों में सफलता भी दिलाई, जो कि ब्रिटिश टास्क फ़ोर्स की सुरक्षा के लिए एकमात्र फिक्स्ड विंग लड़ाकू विमान था. यह संघर्ष क्षेत्रों में विमान वाहक पोत से संचालित होता था. इसने दुश्मन के 20 विमानों को मार गिराया था. इन्हे रॉयल एयर फ़ोर्स द्वारा संचालित हैरियर की तरह ही जमीनी हमले करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता था.
एकमात्र खरीदार था भारत
बताया गया कि सी हैरियर को विदेशों में बिक्री करने के लिए इसका विपणन किया गया. लेकिन अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया को विमान बेचने के प्रयास असफल होने के बाद भारत ही एकमात्र ग्राहक था. इसका पहला संस्करण 1983 में आया और दूसरा दस साल बाद 1993 में सी हैरियर एफए 2 के रूप में आया. इसकी हवा में मार करने की क्षमता भी सबसे खास थी.