Narmada Jayanti 2025 | नर्मदा नदी के उद्गम की पौराणिक कथा और मान्यताएँ

Narmada Jayanti 2025

देश के हृदयस्थल माने जाने वाले मध्यप्रदेश से एक नदी का उद्गम होता है, वह नदी जिसे मध्यप्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है, वही नदी जो कभी किसी युग में आर्य संस्कृति की सीमा था, जिसको लांघ कर उस पार नहीं जाया जा सकता था, उसकी एक मर्यादा थी, स्वयं भगवान राम ने वनवास प्रवासन के समय इस मर्यादा का पालन किया था, वह नदी जो किसी समय उत्तरभारत और दक्षिण भारत के बीच में विभाजन रेखा जैसी थी, वही नदी जिसके तट पर ही कहीं, किसी समय सकलोत्तरपथ नाथ हर्ष और दक्षिणापथ के स्वामी पुलकेशीन के बीच बहुत ही निर्णायक और घमासान युद्ध हुआ था, वही नदी जो उत्तर भारत के नदियों के प्रवाह तंत्र के विरुद्ध विद्रोह करते हुए पश्चिम की ओर बहती है, अपने प्रेमी के व्यवहार से आहत एक स्वाभिमानी नदी, जी हाँ हम बात कर रहें है नर्मदा की, जिसे भगवान शिव की मानस पुत्री माना जाता है, उन्हें चिरकुंवारी भी माना जाता है, जिसके तट पर आदिमानव ने भी अठखेलियाँ की, वह कई संस्कृतियों और सभ्यताओं का दौर देखते हुए, आज भी निरंतर प्रवाहमान है।

नर्मदा नदी के उद्गम की पौराणिक कथा और मान्यताएँ

स्कन्द पुराण में कथा आती है, एक बार भगवान शिव के तांडव करने के बाद निकला हुआ स्वेद अर्थात पसीना, एक कुंड में इकट्ठा हो गया था, जिससे नर्मदा का जन्म हुआ, इसीलिए देवी नर्मदा भगवान शिव की पुत्री भी मानी जाती हैं। एक समय पर्वतराज मैकल, संतान की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की आराधना कर रहे थे, भगवान ने प्रसन्न होकर यही कन्या मैकल को दे दी, इसीलिए देवी नर्मदा को मैकलसुता भी कहा जाता है। मत्स्यपुराण में नर्मदा नदी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है-“कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र हैं, कुरुक्षेत्र में सरस्वति, लेकिन नर्मदा तो सर्वत्र पवित्र हैं। नर्मदा नदी के जल की महत्ता बताते हुए कहा गया है- यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का जल तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन में और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है। नर्मदा इकलौती नदी हैं, जिनकी परिक्रमा की जाती है। मान्यता है नर्मदा नदी के प्राप्त होने वाले कंकड़ों और पत्थरों में भगवान शिव का वास होता है।

नर्मदा और सोनभद्र की प्रेमकथा

राजा मैकल के रेवा नाम की एक पुत्री थीं, युवती होने के बाद राजा मैकल ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का ऐलान करते हुए यह शर्त रखी, जो राजकुमार उनकी पुत्री के लिए दुर्लभ गुलबकावली के पुष्प लाएगा उसके साथ ही वह अपनी पुत्री का विवाह कर देंगे, राजकुमार शोणभद्र ने यह शर्त पूरी कर दी और राजा ने रेवा और शोणभद्र का विवाह तय कर दिया, एक बार सोनभद्र और नर्मदा ने एक उपवन में मिलना तय किया, विवाह से पहले अपने भावी वर की परीक्षा के लिए राजकुमारी नर्मदा ने अपनी प्रिय दासी जुहिला को अपने वस्त्र-आभूषण इत्यादि पहनाकर सोन के पास भेजा, सोनभद्र कृशकाय वर्ण की जुहिला के लावण्यमय रूप पर आसक्त हो गए, जुहिला भी सबकुछ जानते हुए भी, सोनभद्र पर आसक्त होकर उससे प्रेमालाप करने लगी, अपनी प्यारी सखी को बहुत देर तक नया आया देख, नर्मदा स्वयं उस स्थान पर गईं, और उन दोनों को वहाँ साथ देखकर आग-बबूला हो गईं, सोनभद्र ने उन्हे समझाने की कोशिस की लेकिन अपनी प्रिय सखी और प्रियतम के व्यवहार से क्षुब्ध होकर, वह रूठ कर चलीं गईं।

अब भौगोलिक दृष्टि से भी देखा जाए तो, अमरकंटक से तीन नदियों का उद्गम हो सकता है, एक हैं नर्मदा नदी जो पश्चिम की तरफ प्रवाहित होती हैं, दूसरी हैं सोनभद्र या सोन जिसे नद माना जाता है, यह नर्मदा के ठीक विपरीत पूर्व की तरफ बहती हैं और पटना के पास गंगा नदी से मिल जाती हैं, और तीसरी है जुहिला जो बांधवगढ़ के क्षेत्रों में प्रवाहित होती हैं, इस नदी को यहाँ आज भी पवित्र नहीं माना जाता है।

नर्मदा नदी के उद्गम की गोंडी लोककथा

एक गोंडी लोककथा के अनुसार मैकल के जंगलों में स्थित गाँव में एक लड़की नरबदी अपने पिता दुग्गन के साथ रहा करती थी, एक बार गर्मी के मौसम में अपने पिता के साथ वह बांस की लकड़ियाँ लेने बहुत दूर तक चली गई, धूप और गर्मी से बेहाल प्यास के मारे वह और उसके पिता दोनों बेहाल हो गए, अपनी पुत्री को प्यास से बेहाल देखकर दुग्गन पानी की तलाश में चले गए, बहुत देर तक न लौटने तथा अपने पिता को यूँ पानी के लिए भटकते हुए देखकर, नरबदी बहुत दुखित हुए, उसने आसमान की तरफ हाथ उठाकर प्रार्थना करते हुए अपने ईष्ट से कहा “चाहे मेरी जान ले लो, लेकिन मेरे बाबा को बचा लो, वह पानी के लिए भटक रहे हैं” इसके बाद नरबदी वहाँ नहीं थी, लौटकर वापस आने और पुत्री को वहाँ ना पाकर पिता अत्यंत चिंतित होकर रोने लगे, तभी उन्हें बांस के झुरमुटों से एक आवाज सुनाई दी “बाबा जो तुम कल-कल की ध्वनि सुन रहे हो, यह मेरा ही संगीत है, तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए मैं झरना बन गईं हूँ बाबा, यहाँ अब कोई प्यास पानी के लिए नहीं तरसेगा”, गोंडी लोककथा के अनुसार, नर्मदा नदी का उद्गम ऐसे ही हुआ था, और सचमुच नर्मदा अमरकंटक से लेकर गुजरात के समुद्र तक जीवन रेखा ही हैं।

नर्मदा नदी विंध्य और सतपुड़ा के मध्य स्थित अमरकंटक पठार से निकलते हुए, पश्चिम में अंकलेश्वर के पास अरब सागर के खंभात की खाड़ी में समाहित हो जाती हैं, इस बीच वह लगभग 1312 किलोमीटर की यात्रा करती हैं, इसके किनारे कई प्रमुख शहर स्थित हैं, इस नदी पर कई बहुउद्देशीय परियोजनाएँ भी बनी हैं, यह नदी हजारों सभ्यताओं के निर्माण और पतन की साक्षी है, और यूँ ही निरंतर प्रवाहमान है।

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