न्याज़िया
मंथन। क्या आपके पास भी कुछ लोग ऐसे हैं जो आपसे बहुत बड़े हैं उम्र में या रुतबे में लेकिन आपकी हर बात ग़ौर से सुनते हैं, आपको अहमियत देते हैं फिर चाहे आप उनसे किसी भी नाते जुड़े हों ,हैं ? नहीं हैं? या एक दो लोग ही हैं? या फिर आप ख़ुद ऐसे हैं ? अगर आप ही हैं ऐसे ,तो ये बहुत अच्छी बात है क्योंकि बहुत मुश्किल काम है ये ,ऐसा व्यवहार सबके साथ रखना अक्सर इसलिए भी मुश्किल होता है कि हमें बात बात पे ग़ुस्सा आ जाता है लेकिन क्यों? ये नहीं जानते , ख़ासकर जब कोई हमसे वो बात करने आता है जो हमारे लिए छोटी होती है या किसी ऐसी कला से जुड़ी बात हो जिसमें हमें महारत हासिल हो और अगला उसे समझने में ही वक्त लगा रहा हो तो हमें ग़ुस्सा आ ही जाता है।
ऐसा है श्लोक
आखिर ऐसा क्यों होता है और फिर कैसे होते हैं वो लोग जिन्हें ग़ुस्सा नहीं आता और क्यों नहीं आता क्यों वो सबको इज़्ज़त देते हैं,क्यों उन्हें किसी की बात बुरी नहीं लगती और अगर उन्हें बुरी लगती है तो वो कैसे सब सह जाते हैं बर्दाश्त कर लेते हैं ,कैसी है ये खूबी ? कैसा है ये हुनर? जो सबको नहीं आता ,तो अगर हम इस बात पर ग़ौर करें तो आपको याद आ जाएगा कि हमने संस्कृत में एक श्लोक पढ़ा है
‘नमन्ति फलनो वृक्षारू, नमन्ति गुणतोजना,
शुष्क कास्ठानि मुर्खाश्च नमति कदाचन’
जिसका अर्थ है फल वाले वृक्ष के समान गुणवान व्यक्ति झुक जाते हैं लेकिन सूखे वृक्ष और मूर्खजन कभी नहीं झुकते हैं।
तो क्या गुणवान होना ही सबसे आवश्यक है क्रोध से मुक्त रहने के लिए या विनम्र रहने के लिए ,संतुष्ट रहने के लिए और
गुणवान कौन होता है ? ये भी समझना ज़रूरी है,जो बहोत सारी कलाएं जानता हो! बहुत पढ़ा लिखा हो! या जिसके पास , ज्ञान का भंडार हो ! पर ऐसे भी लोग होते हैं जिनके पास किताबी ज्ञान बहुत होता है इसके बावजूद उन्हें किसी से बात करने का भी सलीक़ा नहीं होता किसी की इज़्ज़त करना किसी के जज़्बातों की क़द्र करना उन्हें नहीं आता शायद इसलिए कि गुण और ज्ञान को उन्होंने किताब तक ही सीमित रखा है उसे व्यवहार में लाकर परखा नहीं है आत्मसात नहीं किया है, वही कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हमेशा अकड़े रहते हैं अपनी ग़लती के बावजूद दूसरों को ही दोष देते हैं ,किसी की इज़्ज़त करना तो दूर की बात है,वो अपनी ज़िद नहीं छोड़ते और अपनी मूर्खता का परिचय स्वयं दे देते हैं ।
गुणवान की कैसे करे पहचान
अब सवाल ये उठता है कि कोई गुणवान है ,ये कैसे पहचाने ! दरअसल जो गुणवान होते हैं उन्हें कुछ आभास पहले से हो जाते हैं, हर क्रिया के पीछे का कारण पता होता है यानी ऐसा हो रहा है तो क्यों हो रहा है ,उसने ऐसा किया तो क्यों किया ,क्रिया के सकारात्मक,नकारात्मक दोनों परिणामों से भी अवगत होते हैं , अगर सामने वाला उनसे बुरा व्यवहार करता है तो वो उसकी परिस्थिति या दुख को भी भाप लेते हैं और उसे स्वाभाविक क्रिया मानते हुए उसे सांत्वना देने या उसकी बात सुनने या फिर अपनी ग़लती न होने पर भी मौन धारण कर लेने में भी भलाई समझते हैं ,यानी फलदार वृक्ष के समान किसी की खुशी के लिए झुक भी जाते हैं,नहीं !और शायद ज़िंदगी खुशी- खुशी जीने के लिए इतना ज्ञानी तो होना ही चाहिए कि हम कुछ आधारभूत मानवीय गुणों से अनभिज्ञ न हों ,जैसेरू- दया , करुणा ,सहानुभूति , सही ग़लत की समझ होने लायक ज्ञान ,प्रेम और धैर्य , जिनसे कम से कम हम मानवीय भावनाओं को समझ सकें, है कि नहीं ? विचार ज़रूर करिएगा इस विषय पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में…