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Naga Sadhu Mahakumbh : महाकुम्भ के बाद कहाँ जाते हैं नागा साधु, प्रसाद में भस्म देते हैं अघोरी बाबा 

Naga Sadhu Mahakumbh : प्रयागराज महाकुम्भ में अलग-अलग रंगो वो वेशभूषा में दिखने वाले नागा साधु, अघोरी बाबा और अखाड़े पहुंच रहें हैं। पौष मास की कड़ाके की ठंड में बिना वस्त्र शरीर पर भस्म लगाए अघोरी बाबा व नागा साधु महाकुम्भ की शोभा बढ़ा रहें हैं। इस बार महाकुम्भ में पहली बार राजकुमार अघोरी बाबा भी पहुंचे हैं। वजह अघोरी पंथ से ताल्लुक रखते हैं। नरमुंडों की माला और कंकाल तंत्र के साथ ही त्रिशूल, कमंडल और चिमटा के साथ श्मशान की भस्म लपेटे बाबा राजकुमार अघोरी सुबह से रात तक श्रद्धालुओं को भस्म लगाकर आशीर्वाद देते हैं। प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को खिचड़ी का वितरण करते हैं।

क्या होती है अघोरी परंपरा? | Naga Sadhu Mahakumbh

अघोर एक परंपरा है। इस परंपरा से जुड़कर साधु भगवान शिव की साधना करते हैं। शिवजी शमशान निवासी हैं। इसलिए अघोर परंपरा में अघोरी बाबा (नागा साधु) भी शमशान में रहकर लम्बी तपस्या वो साधना करते हैं। ये अघोरी अपने शरीर पर भगवान शिव की तरह भस्म लगाकर घूमते हैं। ये आम बस्तियों में कभी नहीं जाते हैं। सांसारिक सुख-दुःख और मोह-माया से दूर रहते हैं। यही अघोरी परंपरा है। 

प्रसाद में भस्म देते हैं अघोरी बाबा 

नागा साधु और अघोरी बाबा महाकुम्भ में श्रद्धालुओं को आशीर्वाद के रूप में भस्म और प्रसाद में खिचड़ी प्रसाद में देते हैं। बाबा राजकुमार अघोरी ने बताया कि उन्हें भिक्षा में चावल और दाल मिलती है। इसलिए प्रसाद में वह भक्तों को खिचड़ी देते हैं और खुद भी खिचड़ी ही खाते हैं। जबकि भस्म प्रयागराज के शमशान में जलने वाली चिताओं की ताजी राख से लाते हैं। यही भस्म श्रद्धालुओं को बांटते हैं। 

काशी है अघोरी बाबा की तपोभूमि | Naga Sadhu lifestyle

अघोरी बाबा राजकुमार ने बताया कि वह महाकुम्भ में अपने पंथ के सभी संतो के साथ गंगा मैया के दर्शन करने आए हैं। उन्होंने बताया कि वह बाल रूप से अघोरी है। उनकी जन्म भूमि भी काशी है और तपोभूमि भी काशी है। भस्म के बारे में उन्होंने बताया, “यह भस्म प्रयाग राजा की है। हम चिताओं से ही है भस्म यहां लाए हैं। काशी की श्मशान भस्म मेरे कमंडल में रहती है।अभी यहां पर जो 24 घंटे जल रही है यही भस्म प्रयाग राजा के श्मशान से लाए हैं। जब काशी में रहते हैं तो काशी के श्मशान की भस्म जलाते हैं। इसी भस्म को बाबा का प्रसाद रूप में सभी श्रद्धालुओं को दी जाती है। त्रिशूल भगवान शिव का है। कंकाल भी भगवान शिव का है। भैरव का कंकाल है। कमंडल मेरे गुरु के नाम का है। मेरे कमंडल में जल नहीं है। मेरे कमंडल में चिता भस्म है जिसका मैं अपने आप को लेपन करता हूं। 24 घंटे अपने शरीर पर लगाता हूं। ये राजा हरिश्चंद्र श्मशान की भस्म है जो भी भक्त इस भस्म को प्रसाद के रूप में मांगते हैं मैं उन्हें भी दे देता हूँ।”

महाकुम्भ के बाद कहाँ रहते हैं नागा साधु 

नागा साधु हमेशा श्मशान में रहते हैं। इनके लिए दर्शन और समर्पण सबसे बड़ी चीज होती है इसलिए ये श्मशान में रहते है। ये नागा साधु और अघोरी श्मशान में बैठे-बैठे ही अपने आसन पर बैठकर भजन करते हैं। ये अघोरी महादेव के उपासक होते हैं इसलिए औषधि और प्रसाद के रूप में गांजा का सेवन करते हैं। अघोरीयों का कहना है कि गांजा से कोई नशा नहीं होता है। ये नागा साधु शमशानों और दुर्लभ पर्वतों पर तप करते हैं और वहीं से महाकुम्भ आते हैं। इसके बाद ये दोबारा श्मशान में रहने चले जाते हैं।

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