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Shakeel Badayuni Birthday: जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का ‘शकील’ मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

Shakeel Badayuni

Shakeel Badayuni

न्याजिया बेग़म

Musician Shakeel Badayuni Birthday: 1944 में फिल्मों के लिए गाने लिखने के लिए एक शायर बंबई आया, जिसका अंदाज़ ए बयां कुछ यूं था कि दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ, छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ, जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई, दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई। जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का ‘शकील’मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया ,तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो ,आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना दिल की तरफ़ दिल की तरफ़ ‘शकील’ तवज्जोह ज़रूर हो,ये घर उजड़ गया तो बसाया न जाएगा,बदलती जा रही है दिल की दुनिया,नए दस्तूर होते जा रहे हैं। ऐसे ही नायाब शेरों का तोहफा लेकर वो मिला फिल्म निर्माता, एआर कारदार और संगीतकार नौशाद अली से, जिन्होंने उनका इम्तेहान लेने के लिए दर्द और मोहब्बत को एक पंक्ति में समेटने के लिए कहा तब उसने लिखा, हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल मैं मोहब्बत की एक आग लगा देंगे । बस फिर क्या था नौशाद ने तुरंत उन्हें कारदार की फिल्म दर्द (1947) के लिए रख लिया और गाने जब पर्दे पर आए तो बहुत सफल साबित हुए, खासकर उमा देवी यानी टुन टुन का गया गीत अफ़साना लिख रही हूं, बेशक आप हमारा इशारा समझ गए होंगे, ये शख़्स कोई और नहीं बदायूं से आए शकील बदायूंनी थे, जिन्हें अपनी पहली कोशिश में वो कमियाबी मिल गई जिसके वो हक़दार थे ।

मुशायरों में शिरकत करते करते मशहूर हो गए
संगीतकार शकील बदायूँनी 3 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के बदायूँ में पैदा हुए,उनके वालिद मोहम्मद जमाल अहमद सोख्ता कादिरी चाहते थे कि वो आगे बढ़ें इसलिए उन्होंने घर पर शकील के लिए अरबी, उर्दू , फ़ारसी और हिंदी ट्यूशन का इंतज़ाम किया पर शायरी में दिलचस्पी उन्हें घर से या रिवायती तौर पर नहीं आई हालंकि उनके दूर के रिश्तेदारों में से एक, ज़िया-उल-कादिरी बदायूंनी , एक मज़हबी शायर थे जिनसे आप मुतासीर थे और जब 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाख़िला लिया , तो उन्होंने इंटर-कॉलेज, अंतर-विश्वविद्यालय मुशायरों में भाग लेना शुरू कर दिया और जीतने भी लगे । 1940 में, उनकी शादी सलमा जी से हुई, जो उनकी दूर की रिश्तेदार थीं और बचपन से उनके साथ पली बढ़ी थीं, लेकिन पर्दा प्रथा के कारण वो उनके पास रहकर भी दूर थीं ,कुछ वक्त बाद शकील आपूर्ति अधिकारी के रूप में दिल्ली चले गए, लेकिन मुशायरों में शिरकत करते करते मशहूर हो गए। उन दिनों शायर समाज के दलित वर्गों, उनके उत्थान, समाज की भलाई के बारे में लिखते थे। लेकिन शकील की पसंद बिल्कुल अलग थी – उनकी शायरी रोमांटिक और सबके दिल के करीब थी। शकील कहा करते थे:
मैं शकील दिल का हूं तर्जुमन, कह मोहब्बतों का हूं राज़दान
मुझे फख्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं

फिल्म उद्योग में सबसे महंगे संगीतकार
अपने अलीगढ़ के दिनों में, बदायूँनी ने हकीम अब्दुल वहीद ‘अश्क’ बिजनोरी से उर्दू शायरी को लिखना सीखा और उसके बाद ही मुंबई गए, जहां फिल्म दर्द से वो कमियाबी हासिल हुई जो बरसों का सिलसिला बन गई और कम लोगों को नसीब भी होती है फिर संगीतकार नौशाद का साथ आपको यूं मिला कि आप दोनों उस दौर में फिल्म उद्योग में सबसे महंगे संगीतकार/गीतकार जोड़ियों में से एक बन गए। उन्होंने मिलकर जो रचनाएँ लिखीं, उनमें दीदार (1951), बैजू बावरा (1952), मदर इंडिया (1957) और मुग़ल-ए-आज़म (1960) दुलारी (1949), शबाब (1954), गंगा जमुना (1961) और मेरे मेहबूब (1963) शामिल हैं। शकील बदायूँनी ने सबसे अधिक काम नौशाद के साथ किया, पर रवि और हेमन्त कुमार के भी संगीत बद्ध किए उनके गीत बेमिसाल हैं जैसे . हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं, फिल्म घराना का गीत जिसके लिए उन्होंने फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। रवि के साथ उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्म चौदहवीं का चांद (1960) है, जबकि साहिब बीबी और गुलाम (1962) हेमंत कुमार के साथ उनकी सबसे बड़ी हिट है। मोहम्मद रफी द्वारा गाए गए चौदहवीं का चांद के शीर्षक गीत ने 1961 में बदायुनी को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया।

सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार मिला
1963 फ़िल्म बीस साल बाद (1962) के गीत कहीं दीप जले के लिए भी आपको फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार मिला
शकील ने लगभग 89 फिल्मों के लिए गीत लिखे। इसके अलावा, उन्होंने बेगम अख्तर द्वारा गाई गई कई लोकप्रिय ग़ज़लें लिखीं , जिन्हें पंकज उधास जैसे बड़े फनकारों ने अपनी आवाज़ दी । भारत सरकार ने उन्हें गीतकार-ए-आज़म की उपाधि से सम्मानित किया था । शकील साहब की दोस्ती केवल नौशाद ही नहीं बल्कि रवि और गुलाम मोहम्मद के साथ भी बहोत गहरी हो गई थी, जिनके साथ उन्होंने अपने जीवन का भरपूर आनंद लिया। फिल्म बैजू बावरा , आपके करियर में एक मील का पत्थर थी, जब शकील बदायूँनी को तपेदिक हो गया तो उन्हें इलाज के लिए पंचगनी के एक अस्पताल में रखा गया पर उस समय उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी ऐसे में नौशाद ने 3 फ़िल्में उन्हें दिलवाई और गाने के बोल सेनेटोरियम में लिखवाए जिसके लिए उन्हें उनकी सामान्य फीस से लगभग 10 गुना अधिक भुगतान प्राप्त हुआ। शकील बदायुनी के कलमबद्ध किए उम्दा गीत उस दौर के क़रीब क़रीब सभी संगीतकारों की धुनों पर बन रहे थे पर मधुमेह की जटिलताओं के कारण वो अस्पताल में भर्ती हुए और 20 अप्रैल 1970 को तिरपन वर्ष की उम्र में इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए पर वो अपने दिलनशीं नग्मों के ज़रिए हमेशा जावेदा रहेगें और उनके नक्श ए क़दम पे शायर चलते रहेंगे , सबक लेते रहेंगे। 3 मई 2013 को उनके सम्मान में इंडिया पोस्ट द्वारा उनके चेहरे वाला एक डाक टिकट जारी किया गया था। चलते उनके चंद शेर आपको याद दिलाते चलें,

अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे।

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया।

अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ ,दुनिया में कोई दोस्त मेरे काम तो आया ।
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल ,सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है।

काँटों से गुज़र जाता हूँ
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर,फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ ,काफ़ी है मेरे दिल की तसल्ली को यही बात आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया ।
कल रात ज़िंदगी से
कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई ,लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई कोई ऐ ‘शकील’ पूछे ये जुनूँ नहीं तो क्या है कि उसी के हो गए हम जो न हो सका हमारा।
कोई दिलकश नज़ारा हो
कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो ,तबीअत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती ,क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाया था हमें खुल गई आँख तो ताबीर पे रोना आया।
उन का ज़िक्र उन की तमन्ना
उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद ,वक़्त कितना क़ीमती है आज कल
उन्हें अपने दिल की ख़बरें मेरे दिल से मिल रही हैं, मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे ।

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