‘Barsaat Ki Raat’ Film Story In Hindi: सन 1960 में एक ऐसी फिल्म रुपहले पर्दे पर आई जिसमें सिर्फ इश्क़ का बयान था। पर कुछ इस तरह की ये आज तक एक ऐसी फिल्म है जिसे जब भी आप देखेंगे एक नया जज़्बात उमड़ आएगा दिल में, इश्क़ के गलियारों से गुज़रने का। जिसमें हर किरदार का अपना इश्क़ है। जिसपे फना होने को जांँ निसार करने को वो तैयार है, इंतहाँ ये है कि इसके नग़्मों और क़व्वालियों के लहजे अल्फ़ाज़ और इश्क़ की तरफदारी के मुक़ाबले का कोई सानी नहीं।
‘बरसात की रात’ की फिल्म का गीत
याद आया आपको ? ये कौनसी फिल्म है जिसकी क़व्वाली ने कहा-
“मज़हब ए इश्क़ की हर रस्म कड़ी होती है
हर क़दम पे कोई दीवार खड़ी होती है
इश्क़ आज़ाद है, हिन्दू न मुस्लमान है इश्क़
आप ही धर्म है और आप ही ईमान है इश्क़
जिस से आगाह नहीं शेख ओ बरहन दोनों
इस हक़ीक़त का गरजता हुआ ऐलान है इश्क़.”
इश्क़ न पुच्छे दीं धरम नूं, इश्क़ न पूछे ज़ातां
इश्क दे हत्थों गर्म लहू विच डूबियाँ लक्ख बराताँ
ये इश्क़ इश्क़ है..
“अल्लाह और रसूल का फरमान इश्क़ है
यानी हदीस इश्क है, क़ुरान इश्क़ है
गौतम का और मसीहा का अरमान इश्क़ है
ये कायनात जिस्म है, और जान इश्क़ है
इश्क़ सरमद, इश्क़ ही मंसूर है
इश्क़ मूसा, इश्क़ कोहेतूर है
ख़ाक को बुत और बुत को देवता करता है इश्क़
इंतिहाँ ये है के बन्दे को खुदा करता है इश्क़
ये इश्क़ ,इश्क़ है इश्क़ इश्क़ ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ …”
‘बरसात की रात’ फिल्म के कलाकार
जी हां ये है फिल्म “बरसात की रात ” जिसे मुख्य भूमिकाओं में बेमिसाल अदाकारी के जलवों से रौशन किया हैं- भारत भूषण, मधुबाला, श्यामा के अलावा के एन सिंह, मुमताज़ बेगम, चंद्रशेखर, बेबी शोभा, शांति कंवल और रशीद ख़ान ने।
‘बरसात की रात’ फिल्म का संगीत
कुछ और नग़्मों की बात करें तो, ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी” को तो कोई संगीत प्रेमी नहीं भूल सकता जिसे एक बार मोहम्मद रफी और एक दफा लता मंगेशकर और मो. रफ़ी दोनों ने गाया है। सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट का गाया सावन गीत “गरजत बरसात सावन आयो रे” भी बहोत पसंद किया गया। जिसमें शास्त्रीय राग गौड़ मल्हार की झलक है जिसमें बारिश की बूंदों से वाद्ययंत्रों में जलतरंग, सरोद, तबला और सारंगी की धुनें न केवल जुगलबंदी करती हैं बल्कि बूंदों की तरह इसका संगीत बरसता है और हम संगीत से भीग जाते हैं।
फिल्म की शुरूआत इसे गाने से होती है और दर्शकों को अनुभूति हो जाती है फिल्म के संगीत सागर की, उस पर श्यामा की अदाकारी और खूबसूरती कमाल है। “जी चाहता है चूम लूं” को गाया है आशा भोसले, सुधा मल्होत्रा, बलबीर और बंदे हसन
ने। “मैं ने शायद तुम्हें पहले भी” को आवाज़ दी है मोहम्मद रफी ने। मायूस तो हूं वादे से तेरे गीत को भी बड़ी ही संजीदगी के साथ गाया है मो . रफ़ी ने। “मुझे मिल गया बहाना” लता मंगेशकर ने गाया है।
‘बरसात की रात’ फिल्म की क़व्वालियां
“ना तो कारवां की तलाश है” को गाया है मन्ना डे, आशा भोसले, सुधा मल्होत्रा, एसडी बातिश और मोहम्मद रफ़ी ने।
“निगाह-ए-नाज़ के” में आवाज़ें हैं आशा भोसले, सुधा मल्होत्रा और शंकर शंभू की। “ये है इश्क इश्क” है मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, एसडी बातिश और सुधा मल्होत्रा कि आवाज़ों में।
इन नग़्मों की खासियत की बात करें तो जहां उम्दा संगीत है वहीं बोल भी कमाल करते हैं आप ग़ौर से सुनिएगा कुछ हम आपको याद दिलाए देते हैं-
“ना तो कारवां की तलाश है, ना तो हमसफर की तलाश है
मेरे शौक ए खाना खराब को तेरी रहगुज़र की तलाश है
मेरे ना मुराद ए जूनून का है इलाज तो कोई मौत है
जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है”
“जां सोज़ की हालत को जां सोज़ ही समझेगा ,मै शमा से कहता हूं महफिल से नहीं कहता,ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़…., सहर तक सब का है अंजाम जलकर ख़ाक हो जाना भले महफ़िल में कोई शमा या परवाना हो जाये क्योंकि ये इश्क़ इश्क़ है..”।
‘बरसात की रात’ फिल्म के दिलकश गीत
यहां हम आपको ये भी याद दिल दें कि शमा वो किरदार भी है जो नायक अमान से बेइंतहां मोहब्बत करने के बावजूद इज़हार नहीं कर पाती और उसे शबनम और अमान की मोहब्बत का पता चल जाता है जिससे वो अपनी ही मोहब्बत की आग में जलने लगती है,शमा की मानिंद। केवल क़व्वाली के बोल नहीं हैं बल्कि इश्क़ के हवाले से पूछे गए सवालों के जवाब हैं, एक ऐसा मुक़ाबला है जिसमें इश्क़ की कैफियत से हर कोई वाकिफ है। कुछ मुश्किल अल्फ़ाज़ भी हैं जैसे – जांँ सोज़ यानी दिलजला
शौक ए खाना ख़राब यानी बर्बादी के शौक, चारागर यानी इलाज करने वाला।
यूं तो क़व्वाली सूफियाना कलाम से चलते हुए मुस्लिम शामियाने में पड़ाव डालती है पर ये क़व्वाली धर्म का ये फासला भी मिटा कर राधा कृष्ण की प्रीत का बखान करती है ,कुछ यूं,
“जब जब कृष्ण की बंसी बाजी निकली राधा सज के
जान अजान का ध्यान भुला के, लोकलाज को तज के
बन-बन डोली जनक दुलारी पहन के प्रेम की माला
दर्शन जल की प्यासी मीरा पी गई ,विष का प्याला
और फिर अर्ज करी क़ि लाज राखो राखो राखो…”
‘बरसात की रात’ का सुपरहिट संगीत
इन दिलनशीं नग़्मों को लिखा साहिर लुधियानावी ने और संगीतबद्ध किया रौशन ने, ये मुग़ल-ए-आज़म के बाद 1960 का दूसरा सबसे ज़्यादा बिकने वाला साउंडट्रैक था। “ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी” गीत चार्टबस्टर था, और बिनाका गीतमाला की 1960 की वार्षिक सूची में शीर्ष पर था। रेडिफ डॉट कॉम ने फिल्म के संगीत को इसकी जीवन रेखा बताते हुए “ना तो कारवां की तलाश है” को “बॉलीवुड की शीर्ष 10 क़व्वालियों” में दूसरे स्थान पर रखा हालांकि न तो कारवां की तलाश है क़व्वाली की कमान जब नायक ,शायर अमान हैदराबादी ने संभाली तो ये कुछ 12 मिनट की क़व्वाली ,”ये इश्क़ इश्क़ है “हो जाती है। बरसात की रात 1960 की दूसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म है, और अब तक की शीर्ष सौ सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्मों में से एक है।
‘बरसात की रात’ की कहानी
कहानी की बात करें तो- बरसात की रात फिल्म में अमान हैदराबादी एक शायर और गुलूकार हैं जो क़व्वाल मुबारक जी के घर में किराए से रहते हैं उनके फन और बेहतरीन शायरी की सब दाद देते हैं। इसलिए मुबारक साहब इसबार अपनी क़व्वाली की हार को जीत में बदलने और खोई हुई इज़्ज़त को वापस पाने का ज़िम्मा अमान को सौंप देते हैं। अमान भी कहता है कि वो पूरी कोशिश करेगा लेकिन अभी उसे हैदराबाद रेडियो स्टेशन में प्रोग्राम देने जाना है वो लौट कर उनकी तैयारी करवा देगा। मुबारक साहब की दो बेटियां हैं शमा और शबाब जो गाती भी हैं जिनसे अमान की खूब बनती है, पर उसे इल्म नहीं की शमा उसे प्यार करती है और वो चला जाता है।
वहां वो अपने दोस्त पुलिस इंस्पेक्टर शेखर के घर पर रुकता है फिर निकल पड़ता है खुली वादियों में अपनी नई नज़्म को जामा पहनाने की कोशिश में, उसे कुछ नहीं सूझता और पानी बरसने लगता है तो वो, एक लोहार की झोपड़ी में आसरा लेता है और इस अंधेरी बरसात की रात में हुस्न की बिजली चमकती है जो सीधे अमान के दिल में गिर जाती हैं। बरसात की रात तो गुज़र जाती है, अमान को अपनी नज़्म भी मिल जाती है जिसके बोल थे ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी। बरसात की रात जिसे वो जब रेडियो पर सुनाता है, तो उनकी चाहने वाली शबनम तक भी ये अशआर पहुंचते हैं जिसे सुनकर वो समझ जाती है, कि अंधेरे में कल रात वो बिजली से डरकर जिनसे लिपट गई, वो कोई और नहीं उसके पसंदीदा शायर अमान साहब थे। उधर अमान के दिल में भी ये रात एक हंसी ख्वाब की तरह नक्श हो गई थी जिसकी ताबीर में वो भटक रहा था कि उसकी बरसात की रात बहुत मशहूर हो गई और उसके सम्मान में शबनम की सहेली शांति ने एक एहतमाम किया। जिसमें उनकी इज़्ज़त अफज़ाई के साथ एक नज़्म सुनाने की फरमाइश की गई और अमान साहब ने नज़्म सुनने की ख्वाहिश मंद शबनम को देखा और नज़्म की शक्ल में कहा “मैने शायद तुम्हे पहले भी कहीं देखा है ..”।
ख़ैर उन्हें जल्द एहसास हो गया कि उस बरसात की रात जो हुस्न की बिजली कौंधी थी वो शबनम बन गई है, ऐसे में शेखर अमान को शबनम के घर उसकी बहन को ट्यूशन पढ़ाने को कहता है, और बस प्यार का और मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ता है पर जल्द ही शबनम के वालिद को इनकी मोहब्बत की भनक लग जाती है। और वो अमान को बेइज़्ज़त करके घर से निकाल देते हैं, शबनम इस बात से अपने वालिद के खिलाफ हो जाती है और फिर लोहार की दुकान पहुंच जाती है। अमान से मिलने जहां उनकी पहली मुलाक़ात हुई थी, अमान उसे समझाता है ये भी कहता है कि उसका सरमाया केवल उसकी शायरी है। जिसे वो पुलिस की निगरानी में कहीं भी पेश करेंगे तो पकड़ा जाएगा और शबनम के पिता और अमान का दोस्त उन्हें ढूंढ ही लेंगे पर वो नहीं मानती और अमान के साथ चली जाती है।
अमान किसी तरह बचते-बचाते शबनम को लेकर अपने वकील दोस्त के घर पहुंचता है जहां दोनों के निकाह की तैयारी होने लगती है। पर वहां इंस्पेक्टर चंद्रशेखर पहुंच जाता है और शबनम को ले जाता है। अब शबनम के वालिद शबनम पर सख्ती करते हैं और आफताब अहमद से उसका रिश्ता पक्का कर देते हैं। इत्तेफ़ाक़ से ये लड़का भी अमान का दोस्त रहता है और अमान मायूस होकर उससे मिलने चला जाता है और उसी वक्त शबनम को लेकर उस के वालिद वहां पहुंच जाते हैं। जिन्हें देखते ही चुपके से अमान वहां से चला जाता है, पर शबनम अमान को देख लेती है और बहोत रोती है, दुख से वो बहुत बीमार हो जाती है और दिन ब दिन उसकी हालत बिगड़ती जाती है।
ये देखकर उसके घर वाले शादी को टाल कर उसे अजमेर शरीफ की दरगाह ले आते हैं, दुआ के लिए हालांकि इससे पहले शमा के वालिद अपनी बेटियों को लेकर बैरिस्टर आफताब अहमद के घर गए थे, ये बताने के लिए कि वो अब अजमेर शरीफ जा रहे हैं क़व्वाली पेश करने और वहां शबनम और शमा की मुलाक़ात होती है। जिसमें शमा उसके इश्क़ की खुशबू पहचान लेती है उसकी मोहब्बत की कमियाबी के लिए तावीज़ लेके जाती है, उसके महबूब की तस्वीर देखती है जो अमान की ही थी जिसे देखकर शमा ख़ामोशी से अपने परवाने के बग़ैर जल जाती है।
इस तरह फिल्म में ये वो वक़्त है जब सभी मुख्य किरदार अजमेर में ही हैं भूले से अमान भी एक क़व्वाल के साथ वहीं है, अब मुक़ाबले का दिन आ जाता है जिसके लिए शमा और उसके परिवार ने जी तोड़ मेहनत की थी पर आज अपना इश्क़ गवां कर शमा के अंदर हिम्मत नहीं बची थी जबकि पिछले ही मुक़ाबले में अमान ने आकर उसकी लाज रखी थी उसे जीत दिलाई थी न उम्मीदी के भंवर से निकाला था और उसने गाना गाया था। मिल गया बहाना तेरी दीद का, ऐसी ख़ुशी लेके आया चांद ईद का …।
खैर आज वो अपने इश्क़ को नहीं भूल पा रही थी और कह रही थी कि मेरी ज़िंदगी भर की तलाश है, ये इश्क़ ग़म में चूर होकर शमा पिघलने लगती है कि पास बैठा अमान उसकी क़व्वाली की कमान संभाल लेता है। और आगे उसका कलाम होता है जब जब कृष्ण की बंसी बाजी…., इस क़व्वाली का सीधा प्रसारण रेडियो पर हो रहा था कि शबनम उसे सुन लेती है और लोक लाज भुला कर अमान के पास खिंची चली आती है। उसे देखकर शमा समझ जाती है कि ये उसकी दुआ की क़ुबूलियत का वक़्त है, ख़ैर अमान की वजह से शमा ये मुक़ाबला जीत जाती है।
शमा की ताबियत बिगड़ने से सब ख़ेमे में पहुंच जाते हैं और बाहर शबनम के वालिद अपनी ज़िद पे अड़े अमान को पकड़ने के लिए आते हैं। लेकिन आज शबनम की मां अपनी बेटी की खुशियों की भीख मांगती है और अमान का दोस्त आफताब भी अपने दोस्त की पैरवी करता है तब शबनम के वालिद साहब भी हार मान लेते हैं। रिमझिम बरसती बूंदे सभी अपनों को एक-एक छांव तले ले आती हैं। अमान और शबनम का जोड़ा भी एक पेड़ की छांव में मुस्कुराता है, बरसात की रात से शुरू हुआ उनका इश्क़, बरसात की इस रात में मुकम्मल होता है परवान चढ़ता है। ये दिलकश कहानी लिखी है रफी अजमेरी ने निर्माण आर. चंद्रा ने किया है निर्देशन और पटकथा है पी.एल. संतोषी की है।
कुछ और बातें बताएं तो
कनाडाई गायिका बफी सेंट-मैरी, ने गीत “मायूस तो हूं वादे से तेरे” को लेकर अपना ट्रैक गाया है। भारत भूषण की सादगी और खूबसूरती मधुबाला की शोख़ी को गज़ब की टक्कर देती हुई रूमानियत को नई परवाज़ दे रही है। ये एक रोमांटिक संगीतमय फ़िल्म है, और जो भी लोग संगीत ख़ास कर क़व्वालियों का लुत्फ़ लेते हैं उनके लिए ये फिल्म किसी दिलनशींं सौग़ात है ।