नाज़िया बेग़म
Music composer RD Burman birth anniversary: 60 के दशक में या कहें उसके आख़िर में ,रगों में जोश भर देने वाला फिल्म संगीत यूं सुनाई देता है मानो इक इंकलाबी लहर सी आ गई हो और संगीत प्रेमियों के दिलों में घर कर गई जैसे हम इसी बदलाव के मुंतज़िर थे, कभी कभी गीत बेहद संजीदगी से अपना दर्द बयां कर रहा होता है लेकिन उसका संगीत हमें ये तसल्ली देकर ग़म से निकाल लेता की ये सब ज़िंदगी का हिस्सा है और हमें इनका सामना करने के लिए मज़बूत बनना पड़ेगा ,एक सच्चे दोस्त की तरह ये संगीत हमारे जीवन के हर मोड़ पे हमारा साथ देता है आखिर कौन था इस अपनाहियत भरे संगीत को संजोने वाला ,तो हम आपको बता दें कि मौसिकी का ये हुनर था 27 जून 1939 को कोलकाता में जन्मे आर डी बर्मन बर्मन के पास जिन्होंने महज़ नौ बरस की उम्र में गीत ‘ ऐ मेरी टोपी पलट के आ ‘ का संगीत रचा जिसे उनके पिता और महान संगीतकार सचिन देव बर्मन ने अपनी 1956 की फिल्म फंटूश में उनसे ये कहकर इस्तेमाल किया की मैं देखना चाहता था की लोग तुम्हारा संगीत पसंद करते हैं कि नहीं , ख़ैर जब गीत रुपहले पर्दे पर उतरा तो सबकी ज़ुबां पर अपनी धुन के साथ चढ़ गया ,एक और गीत ‘ सर जो तेरा चकराए और दिल डूबा जाए ‘ की धुन भी उन्होंने बचपन में ही तैयार कर ली थी जिसे सचिन देव बर्मन ने गुरुदत्त की फिल्म प्यासा में पेश किया और इस गीत के क्या कहने ये तो आज भी पुरअसर है।
ऐसे पड़ा नाम पंचम
कहते हैं बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम स्वर में या कहें पंचम स्वर तक रोते थे जिसे सुनकर उनकी नानी ने अपने टूब्लू का नाम बदलकर पंचम रख दिया ,ये भी कहा गया कि एक बार अशोक कुमार ने भी उन्हें रोते हुए सुना और उन्हें भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ और उसके बाद राहुल देव बर्मन पंचम और उसके बाद पंचम दा हो गए ।
पिता के संगीत सहायक बन कर की शुरुआत
शुरुआती दौर में वो अपने पिता के संगीत सहायक बने और हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू भी बिखेरा।उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, और “है अपना दिल तो आवारा” के लिए माउथ ऑर्गन भी बजाया, जिसे फ़िल्म सोलवा साल में हेमंत मुखोपाध्याय ने गाया था ।
जब प्रसिद्ध हिंदी फ़िल्म कॉमेडियन महमूद ने छोटे नवाब का निर्माण करने का फ़ैसला किया , तो उन्होंने सचिन देव बर्मन से संगीत के लिए संपर्क किया। हालाँकि, एसडी बर्मन ने यह कहते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया कि वो बहोत व्यस्त हैं पर इस मुलाक़ात में महमूद साहब ने राहुल को तबला बजाते हुए देखा और उन्हें फिल्म ‘ छोटे नवाब ‘ के लिए संगीत निर्देशक के रूप में साइन कर लिया इसके बाद राहुल देव ने महमूद की (1965) की फिल्म ‘ भूत बंगला ‘ में कैमियो किया।संगीतकार के रूप में आर डी बर्मन की पहली सफल फिल्म (1966) की फिल्म तीसरी मंजिल थी। पंचम दा ने अपनी संगीतबद्ध की हुई 18 फिल्मों में आवाज़ भी दी। ‘ भूत बंगला ‘ और (1969) की फिल्म ‘ प्यार का मौसम’ में अभिनय भी किया।
लोकप्रिय संगीतकार बन गए
सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में संगीत दिया जिसमें फिल्म कटी पतंग काफी सफल रही इसके बाद फिल्म ‘ यादों की बारात’, ‘ हीरा पन्ना’ ,और ‘ अनामिका ‘ जैसी फिल्मों में अपना बेमिसाल संगीत दिया उनका संगीत उनके पिता एस डी बर्मन के संगीत की शैली से काफ़ी अलग था वो हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत का भी मिश्रण करते थे, जिससे भारतीय फिल्म संगीत को एक अलग पहचान मिली ,वो इतने प्रयोगात्मक तरीके से संगीत की धुनों को खोज लेते थे कि उसके मूल रूप में ये सोचना भी मुश्किल होता था कि यहां से भी कोई सुर लहरी फूट सकती है जैसे अगर आप शोले फिल्म के महबूबा गीत को सुनें तो उसका सुरीला ओपनिंग म्यूजिक खाली बोतलों से निकाला गया है और घर फिल्म के गीत तेरे बिना जिया जाए न का म्यूजिक उन्होंने अपनी गाड़ी के ट्रेफिक में फंस जाने पर ब्रेक एंड रन के साउंड से बनाया था , उन्होंने गुलज़ार के गीतों को खूब अपने संगीत में पिरोया और आशा भोंसले की चुलबुली आवाज़ का भी बखूबी इस्तेमाल किया , पर कमियाबी की आगोश में चलते हुए एक दौर ऐसा भी आया जब उनके संगीत से सजी फिल्में फ्लॉप होने लगी जिसका ज़िम्मेदार उनके संगीत को ठहराया गया और निर्देशकों ने उन्हें काम देना बंद कर दिया ऐसे में विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी फिल्म फिल्म ‘1942 अ लव स्टोरी’ का संगीत निर्माण करने को कहा ये वो वक्त था जब बर्मन दा टूट चुके थे खुद को ही कहीं भूल चुके थे पर उन्होंने इस फिल्म के लिए ज़माने के हिसाब से तड़कती भड़कती धुन तैयार कर दी जो विधु को पसंद नहीं आई और उन्होंने बर्मन दा से कहा मुझे आर डी बर्मन की धुन चाहिए जिसमे ज़माने का रुख़ मोड़ देने का माद्दा है बस फिर क्या था बर्मन दा ने खुद को तलाशते हुए नए सिरे से धुन तैयार की और इस फिल्म के साथ उन्होंने साबित कर दिया कि कलाकार कभी नहीं हारता बर्मन आज भी वही हैं जो थे ये फिल्म सबसे बड़ी म्यूजिकल हिट साबित हुई और आज भी इसके गीत सदाबहार हैं, इस फिल्म में उन्हें फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के खेताब से नवाज़ा गया पर इसे स्वयं ग्रहण करने से पहले 4 जनवरी वर्ष 1994 को वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए।
इससे पहले उन्हें सनम तेरी कसम और मासूम फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के रूप में चुना जा चुका था । आर डी बर्मन ने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया। आज भी उनके संगीत को न केवल पसंद किया जाता है बल्कि फिल्म उद्योग में उनके संगीत से प्रेरणा लेकर कुछ नया रचने की कोशिशें भी होती रहती हैं।