ऐ मेरे वतन के लोगो… इस गाने को सुनकर नेहरू की भी आंखों से आंसू छलक पड़े थे, जानिए इस गाने से जुड़ा वाकया

Music composer C Ramachandra

न्याजिया बेगम

Music composer C Ramachandra: जब सेना के वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक गाना बनाने की बात आई तो प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संदेशा भेजवाया था दिग्गज म्यूज़िक डायरेक्टर सी रामचंद्र को, बोल लिखे थे कवि प्रदीप ने, गीत और धुन तैयार हो गए तो गाना गाने के लिए लता मंगेशकर का नाम तय किया गया. फिर गाना रिकॉर्ड हुआ. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू खुद इस गाने को सुनने के लिए पहुंचे और लता मंगेशकर ने गाना गाया … ‘ऐ मेरे वतन के लोगो, ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं, उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी’. ये गाना सुनकर प्रधानमंत्री नेहरू की भी आंखों से आंसू छलक पड़े थे. ऐसा था रामचन्द्र नरहर चितलकर यानी सी. रामचन्द्र या चितलकर या अन्ना साहब की धुनों का असर वो केवल , संगीत निर्देशक नहीं थे बल्कि अभिनेता और पार्श्व गायक भी रहे पर एक संगीतकार के रूप में, उन्होंने ज़्यादातर सी.रामचंद्र नाम का इस्तेमाल किया, और अक्सर आर एन चितलकर के नाम से मराठी फिल्मों में गाते और अभिनय करते थे फिर भी एक सामयिक पार्श्व गायक के रूप में अपने करियर के लिए उन्होंने केवल अपने उपनाम चितलकर का ही उपयोग किया।


चितलकर ने लता मंगेशकर के साथ कुछ प्रसिद्ध और अविस्मरणीय युगल गीत गाए, जैसे फिल्म आज़ाद (1955) में “कितना हसीन है मौसम” और अलबेला (1951) में “शोला जो भड़के”। रामचंद्र ने हिंदी फिल्मों के अलावा कुछ मराठी , तेलुगु , तमिल और भोजपुरी फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन किया उन्होंने न्यू साईं प्रोडक्शंस के साथ तीन हिंदी फिल्में भी बनाईं, जिनका नाम है झांझर , लहरें , और दुनिया गोल है । 60 के दशक के अंत में, रामचन्द्र ने दो मराठी फिल्में, धनंजय (1966) और घरकुल (1970) का निर्माण किया। संगीत रचना के अलावा, उन्होंने उनमें अभिनय भी किया। रामचन्द्र ने 1977 में अपनी आत्मकथा द सिम्फनी ऑफ माई लाइफ ( मराठी में माज्या जीवनाची सरगम ) लिखी सी रामचंद्र एक बेहद ज़हीन संगीतकार थे और सुरों के जादूगर ने बॉलीवुड को कई सुपरहिट गाने दिए हैं. :- ऐ मेरे वतन के लोगो’, ‘भोली सूरत दिल के खोटे’, ‘शोला जो भड़के’, ‘किस्मत की हवा कभी नरम-कभी गरम’, ‘आना मेरी जान संडे के संडे’, ‘क़दम क़दम बढ़ाये जा’, ‘दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम’ जैसे दर्जनों सुपरहिट गाने जो 50 साल बाद भी लोगों के कानों को ठंडक पहुंचाते हैं. ये सभी गाने सी रामचंद्र की सुरों की पोटली की इजाद हैं।


12 जनवरी 1918 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के बुदवा गांव में सी रामचंद्र का जन्म एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बचपन से ही सी रामचंद्र का लगाव संगीत से था. जब रामचंद्र जवान हुए तो हीरो बनने की लगन लग गई ये लगन यूं ही नहीं थी इसके लिए उन्होंने “गंधर्व महाविद्यालय” में विनायकबुआ पटवर्धन के अधीन और नागपुर के शंकरराव सप्रे के अधीन संगीत का अध्ययन किया,था और वसंतराव देशपांडे के साथ भी संगीत का अध्ययन किया । साल 1935 में सी रामचंद्र ने बतौर हीरो फिल्म ‘नागानंद’ से अपने करियर की शुरुआत की. लेकिन रिलीज़ होते ही ये फिल्म महाफ्लॉप साबित हुई इसके बाद भी मिनर्वा मूवीटोन में सैद-ए-हवस (1936) और आत्म तरंग (1937) फिल्मों में कुछ छोटी भूमिकाएँ निभाईं पर कुछ खास जौहर न दिखा सके और उनका स्टार बनने का सपना टूट गया. इसके बाद रामचंद्र ने फिर कभी एक्टर बनने का ख्वाब नहीं देखा.
इसके बाद मिनर्वा मूवी बिंदु खान-हबीब खान ग्रुप के साथ हर्मोनियम बजाने लगे. साल बीते और संगीत के सुरों में धार आई. और उन्हें कंपोज़िग के ऑफर मिलने लगे।


फिर जयक्कोडी और वाना मोहिनी के साथ तमिल फिल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में शुरुआत की साल 1942 में रामचंद्र के हाथ लगी ‘सुखी जीवन’. इस फिल्म के गानों को रामचंद्र ने कंपोज़ किया. यहीं से शुरू हुआ सुरों के सरताज का सफर. फिल्में आती हैं और गाने सुपरहिट होने लगे. साल 1947 में फिल्म रिलीज़ हुई ‘शहनाई’. इस फिल्म के गानों ने पूरे देश में धूम मचा दी.
और रामचंद्र एक दिग्गज म्यूज़िक कंपोज़र के तौर पर पहचाने जाने लगे. इसके बाद साल 1949 में फिल्म ‘पतंगा’ का गाना ‘मेरे पिया गए रंगून’ सुपरहिट रहा. साल 1951 में सी रामचंद्र की फिल्म ‘अलबेला’ रिलीज़ हुई. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. इसके बाद रामचंद्र संगीत की दुनिया के बादशाह हो गए।

बेनी गुडमैन से प्रभावित होकर , रामचन्द्र ने अपनी रचनाओं में गिटार और हारमोनिका के संयोजन में ऑल्टो सैक्सोफोन पेश किया। उन्होंने फिल्म शहनाई (1947) के गीतों में से एक, आना मेरी जान संडे के संडे में सीटी बजाना ने अलग छाप छोड़ी तो वहीं उन्होंने फिल्म अलबेला में शोला जो भड़के गीत के लिए बोंगो, ओबो, ट्रम्पेट, शहनाई और ऑल्टो सैक्स के संयोजन का उपयोग किया । उन्होंने लता मंगेशकर के साथ शीर्षक गीत “शिन शिनाकी बूबला बू” गाया , जिसमें रॉक लय शामिल थी फिर आशा (1957) में स्कैट गीत “इना मीना दिका” के लिए बेमिसाल संगीत तैयार किया । संगीतकार के रूप में शायद सी. रामचन्द्र की सबसे बड़ी सफलता 1953 की फिल्म अनारकली थी जिसमें बीना रॉय और प्रदीप कुमार मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म के लिए उन्होंने जो गाने लिखे वो आज भी मशहूर हैं। इस फिल्म के गाने जैसे “ये जिंदगी उसकी है”, “मुझसे मत पूछ मेरे इश्क में क्या रखा है”, “मोहब्बत ऐसी धड़कन है”, “जाग दर्द-ए-इश्क जाग” बहुत हिट हुए और आज भी सदाबहार नग़्मों की फेहरिस्त में शामिल हैं।

वी. शांताराम की नवरंग (1959) और स्त्री (1961) में भी सी. रामचन्द्र की धुनें काफी लोकप्रिय रहीं और आज भी याद की जाती हैं। हालाँकि उनकी धुनों में शास्त्रीयता का रंग भी नए रंग रोग़न के साथ सुनाई देता है जिसमें कई रागों का इस्तेमाल किया, गया लेकिन उनका पसंदीदा राग ” बागेश्री ” था जिसमें उन्होंने आज़ाद, फिल्म का गीत राधा ना बोले – को पिरोया । 1978 में बीबीसी स्टूडियो में महेंद्र कौल के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने इसका कारण बागेश्री की सादगी को बताया। हालाँकि, उन्होंने मालकौंस का भी खूब इस्तेमाल किया । – फिल्म नवरंग के गीतों में कुछ और रागों में भी उन्होंने गीत बनाए हैं । उनके इस हुनर को देखकर लता मंगेशकर जैसी दिग्गज सिंगर भी उन्हें अपना गुरू मानने लगीं लेकिन कहते हैं थोड़े ही दिनों में लता मंगेशकर ने सी रामचंद्र का साथ छोड़ दिया.. इसके बाद से ही रामचंद्र के करियर का उतार शुरू हो गया. और धीरे-धीरे उन्हें काम मिलना बंद हो गया ,इस बात से दुखी होकर रामचंद्र ने फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का मन बना लिया. करीब 98 फिल्मों में 100 से ज़्यादा गानों में अपना जादू चलाने वाला सुरों का ये जादूगर गुमनामी में चला गया।

5 जनवरी 1995 को सुरों के इस सरताज ने फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन रामचंद्र के गाने आज भी इस जहां को रोशन करते हैं. 50 साल बाद भी उनके गानों का कोई सानी नहीं है। सी रामचन्द्र की कुछ सर्वश्रेष्ठ रचनाओ को अगर हम कुछ गीतों के ज़रिए याद करें तो ये गीत हमें ज़रूर याद आएंगे… फिल्म अनारकली से ये जिंदगी उसी की है और जाग दर्द-ए-इश्क जाग फिल्म ( अलबेला ) से धीरे से आजा री अंखियां में , भोली सूरत दिलके खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे , मेरे दिल की घड़ी करें टिकटिक ओ बजे रातके बारा शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के क़िस्मत की हवा कभी नरम ,फिल्म ( परछाई) कटते हैं दुख में ये दिन , मोहब्बत ही ना जो समझे, वो ज़ालिम प्यार क्या जाने तुम क्या जानो, तुम्हारी याद में , फिल्म ( शिन शिनाकी बुबाला बू ) आँखों में समा जाओ इस दिल में रहा करना ( यास्मीन ) कितना हसीं है मौसम ( आजा़द ) इना मीना डिका ( आशा )
( सरगम ) से छेड़ सखी सरगम ​​ कोई किसी का दीवाना ना बने महफ़िल में जल उठी शमा ( निराला ) ऐ प्यार तेरी दुनिया से हम ( झांझर ) सी. रामचन्द्र ने कुछ मराठी गानों के लिए संगीत तैयार किया, जिन्हें पसंद किया जाता है। आज सी रामचंद्र की सुरीली धुनों पर पड़ाव डालते हैं और गुनगुनाते हैं ये ज़िंदगी उसी की है …..।

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