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रीवा राज्य के मुकुंदपुर में हुआ था, मुग़ल बादशाह अकबर II का जन्म

History Of Rewa State In Hindi: ऐतिहासिक रूप से देखें तो विंध्य की इस धरती ने, आपदा के मारे लोगों को अपनी अंक में हमेशा प्रश्रय दिया है। पति और भाई की मृत्यु से दुखी होकर कन्नौज की महारानी राज्यश्री भी, शांति की खोज में विंध्य के आटविक क्षेत्रों अर्थात वनों में भटकर ही थी और पीछे उसे खोजता हुआ उसका भाई सम्राट हर्ष भी इस भूमि पर आया। समय बीता, साम्राज्य बदले, लेकिन विंध्य की यह परंपरा नहीं बदली। 16 वीं शताब्दी में शेरशाह से प्रताड़ित मुग़ल बादशाह हुमायूँ को भी इसी भूमि ने शरण दी थी और 18वीं शताब्दी में उसी के वंशज अलीगौहर को भी, जो आगे चलकर दिल्ली के तख्त पर शाह आलम द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा। और यही रीवा राज्य के मुकुंदपुर में जन्म हुआ अकबर-ए-सानी अर्थात अकबर द्वितीय का, जो 1806 में दिल्ली के तख्त पर बैठा और बहादुर शाह जफ़र का पिता था।

कमजोर हो चुकी थी मुग़ल सत्ता

यह उस समय की बात है, जब भारत का राजनैतिक नक्शा बिखर चुका था, बाह्य आक्रमणों और आंतरिक राजनीति से त्रस्त मुग़ल सत्ता कमजोर हो चुकी थी। दिल्ली के तख्त पर आलमगीर नाम का कमजोर मुग़ल बादशाह बैठा था, पर वह मात्र कठपुतली था। वास्तविक सत्ता थी मुग़ल सरदारों, अफगानों और मराठा क्षत्रपों के पास, ये अपनी राजनैतिक लाभ के लिए ताश के पत्तों की तरह बादशाहों को फेंटा करते थे। उस समय इमाद-उल-मुल्क नाम का वजीर, मराठों की मदद से दिल्ली पर राज कर रहा था। वह शहजादे अली गौहर को शक की दृष्टि से देखता था और कई बार उसे बंदी बनाने का प्रयास भी कर चुका था।

अली गौहर बिहार अभियान पर कब गया

दिल्ली में खुद को असुरक्षित जानकार शहजादा पहले रोहतक और फिर वहीं से रूहेलखण्ड और अवध होते हुए इलाहाबाद चला आया और वहाँ के सूबेदार क़ुली खान के साथ मिर्जापुर के रास्ते गुजरते हुए बिहार अभियान पर चला गया। रास्ते में उसने नजीबुद्दौला और अवध के नवाब शुजा से मदद मांगी, लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ भी नहीं मिला। अपनी इसी यात्रा के दौरान जब वह रूहेलखंड से पहले मीरंपुर में ठहरा था, तो वहीं मुबारक महल नाम की एक सैय्यद वंश की लड़की से उसने शादी की थी।

पराजित होकर रीवा आया शाह आलम


खैर पटना में उसकी अंग्रेज और बंगाल के नवाबों सेना से टकराव हुए, लेकिन उसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा, कुली खान भी उसे छोड़ कर जा चुका था। शहजादा इस अभियान से थका, टूटा और निराश होकर, अपने परिवार और बची हुई सेनाओं के साथ मिर्जापुर की तरफ वापस आ गया। उसके लिए यह समय अनिश्चितता का था, वह और उसके लोग, भूख-प्यास से व्याकुल मिर्जापुर के जंगलों में भटक रहे थे। चारों ओर उसके शत्रु ही शत्रु थे, भरोसा करे भी तो किस पर, आखिरकार इस विषम परिस्थिति में उसने रीवा के राजा अजीत सिंह से मदद मांगी, अजीत सिंह ने अपनी बघेलवंशीय क्षत्रिय परंपरा का पालन करते हुए, बिना किसी भय और लोभ के उसे रीवा में शरण दी, और उसे उसके परिवार के साथ मुकुंदपुर की गढ़ी में प्रश्रय दिया।

रीवा की मुकुंदपुर गढ़ी में रुका था शाह आलम

कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है, क्योंकि कोई लगभग दो सौ साल पहले, अलीगौहर का पूर्वज हुमायूँ भी शेरशाह सूरी से परास्त होकर दर-दर भटक रहा था और तब उसकी मदद की थी अजीत सिंह के पूर्वज गहोरा के बघेला राजा वीरभानु ने।शहजादा अली गौहर अपने परिवार के साथ मुकुंदपुर में रहने लगा था, जबकि उसके साथ आए लोगों को बिछिया में नदी किनारे ठहराया गया था। कहा जाता है बिछिया मस्जिद का निर्माण शहजादे के सिपाहियों द्वारा ही किया गया था। शहजादे ने अपना वर्षावास मुकुंदपुर में ही बिताया।

मुकुंदपुर में हुआ अकबर II का जन्म

सोचिए राजा अजीत सिंह ने कितना साहस का परिचय दिया था, जब वजीर, मुग़ल सरदार और मराठे भी अली गौहर के विरुद्ध थे, किसी ने उसे सहायता नहीं दी, तब उसके निवेदन पर रीवा राजा ने उसे शरण दी। शहजादे अली गौहर ने यहाँ वर्षावास किया और अक्टूबर के महीने में, अपनी गर्भवती बेगम मुबारक महल को राजा अजीत सिंह के संरक्षण में छोड़कर, वह फिर से बिहार की तरफ चला गया। मुकुंदपुर की गढ़ी में ही 22 अप्रैल 1760 को अकबर द्वितीय का जन्म हुआ जो आगे चलकर 1806 में दिल्ली के तख्त पर अकबर द्वितीय के नाम से बैठा और मुग़ल बादशाह बना।

शाह आलम बादशाह कब बना

वजीर इमाद-उल-मुल्क के डर से मुग़ल शहजादा अली गौहर दिल्ली छोड़कर बिहार की तरफ चला आया था, और वहाँ अंग्रेजों से पराजित होने के बाद वह रीवा राज्य की तरफ चला आया, रीवा राजा अजीत सिंह ने उसे मुकुंदपुर की गढ़ी में प्रश्रय दिया, उसने यहाँ वर्षावास किया और अक्टूबर के महीने में, अपनी गर्भवती बेगम मुबारक महल को राजा अजीत सिंह के संरक्षण में छोड़कर, वह फिर से बिहार की तरफ चला गया। मुकुंदपुर की गढ़ी में ही 22 अप्रैल 1760 को अकबर द्वितीय का जन्म हुआ जो आगे चलकर 1806 में दिल्ली के तख्त पर अकबर द्वितीय के नाम से बैठा और मुग़ल बादशाह बना।

अकबर नाम की गुत्थी

अकबर नाम की साम्यता के कारण ही कई लोग, हुमायूं पुत्र अकबर का जन्म रीवा राज्य के मुकुन्दपुर में हुआ मानते हैं, लेकिन यह गलत बात है,चूँकि वर्ष 1539 शेरशाह से पराजित हो भाग रहे हुमायूं को गहोरा के बाघेला राजाओं ने संरक्षण दिया था, लेकिन तब तक हुमायूं का विवाह हमीदा बानो के साथ नहीं हुआ था। हुमायूं जब भारत से बाहर था, तब 1541 में दोनों का विवाह हुआ और उसके एक साल बाद 1542 में राजपुताना के अमरकोट में अकबर का जन्म हुआ।वास्तविकता में अकबर द्वितीय के नामकरण के पीछे भी यह रोचक कारण था, उसका जन्म भी प्रथम अकबर के जैसे ही विपरीत परिस्थितियों में हुआ था, उसका पिता भी हुमायूं की तरह दर-दर भटक रहा था।

रीवा राजा अजीत सिंह ने दिया था मुकुंदपुर का परगना

शहजादे के जन्म के बाद रीवा महाराज अजीत सिंह ने, मुकुंदपुर का मौजा उसके कलेवा के लिए दे दिया, और उस मौजा का कुल जमा तब से शहजादे को ही दिया जाने लगा। यहाँ तक की यह परंपरा आगे भी जारी रही, लेकिन 1837 में उसके मृत्यु के बाद रीवा के राजाओं ने जमा भेजना बंद कर दिया। जब बहादुर शाह जफ़र बादशाह बना और आर्थिक तंगी से गुजर रहा था, तब उसने गवर्नर जनरल को पत्र लिखकर, निवेदन किया था, मेरे पिता का जन्म रीवा राज्य में हुआ था, उस समय रीवा महाराज अजीत सिंह ने मुकुंदपुर की जमा मेरे पिता के कलेवा पर लगा दी थी, अतः आप रीवा महाराज से कहकर वहाँ की जमा मुझे दिलवाएं। जब महाराज रघुराज सिंह को यह बात पता चली तो उन्होंने अपने सचिव बाँके सिंह के हाथों जमा राशि के साथ ही बहुत सारी खाद्य सामग्री भी भिजवाई थी।

रीवा के राजवैद्य ने सम्पन्न करवाया था प्रसूति

कहते है बेगम की प्रसूति को रीवा के राजवैद्य पंडित शरभसुख ने सम्पन्न करवाया था, इसीलिए वह इलाहाबाद बादशाह के पास यह संदेश लेकर गए और कुछ इनाम भी मांगा, तब बादशाह ने प्रयाग के निकट कोड़ा परगने का अकौरी गाँव, अपने शहजादे के नाम और निशान के साथ उन्हें प्रदान कर दिया। हालांकि बताते हैं बाद में वैद्यराज, जब गाँव पर कब्जा लेने पहुंचे तो ब्रिटिश कलेक्टर ने यह कह कहकर उन्हें लौटा दिया, बादशाह तो खुद सत्ता विहीन था, उसके पास गाँव की सनद देने का अधिकार ही नहीं था, बहरहाल उन्हें गाँव नहीं मिल पाया, लेकिन बादशाह द्वारा प्रदान किए इस दस्तावेज की नकल अभी सिलपरी गाँव में रहने वाले वैद्य जी के वंशजों के पास सुरक्षित है।

अली गौहर कौन था

लेकिन सवाल उठता है शहजादे अलीगौहर का क्या हुआ, बिहार जाते समय रास्ते में ही उसे खबर मिली, मराठा समर्थित वजीर ने उसके पिता की हत्या कर दी थी, जिसके बाद उसने वहीं शाहआलम के नाम से खुद को भारत का सम्राट घोषित कर लिया। 1764 में उसने शुजाउद्दौला और मीरकासिम के साथ मिलकर बक्सर में अंग्रेजों से युद्ध लड़ा और पराजित होने के बाद इलाहाबाद लौट आया। इधर दिल्ली में अफगानों ने मराठों और वजीर को पानीपत में शिकस्त देकर वापस दिल्ली पर कब्जा कर लिया और नजीबुद्दौला को फिर से वजीर नियुक्त कर दिया, जिसके बाद उसने शुजा के साथ मिलकर अलीगौहर बादशाह मान लिया, जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी उसके साथ इलाहाबाद की संधि की और 26 लाख पेंशन का वादा भी किया, साथ ही उसे इलाहाबाद का किला भी वापस कर दिया गया, जहाँ वह रहता था लेकिन इसके बाद भी वह 12 वर्ष तक दिल्ली नहीं जा सका, बाद में 1772 में मराठा सरदार महादजी सिंधिया उसे वापस दिल्ली के तख्त पर बैठाया।

मुग़लों का पतनकाल

इतिहास का यह पूरा प्रसंग रीवा राज्य और राजा अजीत सिंह की उदारता, तथा उस दौर में दिल्ली से सांस्कृतिक और राजनैतिक संबंधों का प्रमाण है। साथ ही यह भी दर्शाता है रीवा जैसा अर्धस्वायत्त राज्य, मुग़ल साम्राज्य के पतनकाल में भी उसकी गरिमा का मान रखे हुए थे, रीवा ही नहीं मराठों और पेशवा ने भी बादशाह का मान रखा, महादजी सिंधिया ने ही बादशाह शाहआलम को दुबारा 1772 में बादशाह बनाया था। जहाँ एक तरफ हिंदू सरदार थे, जबकि इसके ठीक उलट स्थानीय मुस्लिम सूबेदार और सरदार थे, जिन्होंने बादशाह को अपनी कठपुतली बना रखा था, अफगानों ने तो कई मर्तबा मुग़लों की गरिमा को तार-तार कर दिया था।

रहीम ने भी बताया था विंध्य का महत्व

कहते हैं मुग़ल सरदार और भक्त कालीन कवि अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना को जब मुग़ल बादशाह जहांगीर का कोप-भाजन बनना पड़ा था, तब उन्होंने एक दोहा लिखकर एक ब्राम्हण के हाथों बांधवगढ़ के बाघेला राजा रामचंद्र के पास भिजवाईं थीं, इस दोहे को पढ़ प्रसन्न होकर राजा ने ब्राम्हण को एक लाख रुपये दिए थे।

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस

जाको विपदा परत है, सो आवत यहि देस

अर्थात अयोध्या के राजा राम भी आपत्तिकाल में अपनी राजधानी को छोड़कर चित्रकूट में बसे थे, इस क्षेत्र में वही आता है जिस पर विपत्ति आती है।

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