MP Politics: विंध्य क्षेत्र, मध्य प्रदेश की राजनीति का अखाडा माना जाता है. विंध्य की माताओं ने कई राजनितिक मठाधीस इस प्रदेश को दिए हैं. फिर वो चाहे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह हों या श्री निवास तिवारी। जिन्होंने न सिर्फ प्रदेश की बल्कि देश की राजनितिक में अपनी सूझ-बुझ की वजह से जाने और पहचाने गए. जाने कितने युवाओं के गुरु बनकर उन्हें राजनीति करने की प्रेरणा दी. गौर करने वाली बात तो यह है कि ये दोनों नेता कांग्रेस के ही थे. यही नहीं अर्जुन सिंह 1980 के दशक में सूबे के मुख्यमंत्री भी रहे, और श्रीनिवास तिवारी विधानसभा अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर रह चुके हैं.
Vindhya Politics: एक समय था जब विंध्य कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. पूरे विंध्य में पंजा का राज था. लेकिन आज के समय में कांग्रेस यहां की 30 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 5 सीटों में सिमट कर रह गई है. ऐसा अचानक से नहीं हुआ है. 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद अर्जुन सिंह को प्रदेश की राजनीति से दूर कर दिया गया. विंध्य के वाइट टाइगर नाम से मशहूर श्री निवास तिवारी अकेले पड़ जाते हैं. तब से कांग्रेस का ग्राफ विंध्य में लगातार गिरता चला जाता है. 2003 विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से ही हाथ धो बैठती है. श्री निवास तिवारी और अर्जुन सिंह की मृत्यु के बाद कांग्रेस किसी भी विंध्य के नेता को पार्टी में बड़ा पद नहीं देती, जिससे कांग्रेस विंध्य में लगातार कमजोर पड़ती जाती है. हालिया स्तिथि विंध्य में कांग्रेस की क्या है वो किसी से छिपा हुआ नहीं है.
विंध्य के साथ कांग्रेस का रवैया ऐसा क्यों?
2023 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की करारी हार हुई है. और विंध्य में तो शर्मनाक। विंध्य क्षेत्र की 30 विधानसभा चुनावों में से कांग्रेस सिर्फ 5 सीट ही अपने खाते में जोड़ने में सफल हो पाई है. इन पांच सीटों में से तो कुछ सीटें ऐसी हैं जजों प्रत्याशी अपने दमपे जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं. तो ऐसे में क्या माना जाए, विंध्य के नेताओं को प्रदेश की राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व न देना विंध्य में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण है.
हाल ही में कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश की कमान तीन नए चेहरे के हाथ में सौंपी है. कांग्रेस का यह यंग ब्रिगेड मालवा-निमाड़ क्षेत्र से आता है. ऐसे में क्या ये मान लिया जाए कि मालवा-निमाड़ के आलावा प्रदेश के और क्षेत्र में कांग्रेस के पास काबिल नेता नहीं है. भारतीय जनता पार्टी ने विंध्य को डिप्टी सीएम जैसा बड़ा पद दिया है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास विंध्य में कोई बड़ा नेता नहीं है. अजय सिंह, राजेंद्र सिंह, सिद्धार्थ कुशवाहा जैसा बड़ा OBC चेहरा है. जिसने भारतीय जनता पार्टी के 4 बार के सांसद गणेश सिंह को पटखनी दी है.
क्या युथ ब्रिगेड कांग्रेस की नैया को पार लगा पाएगा?
कांग्रेस ने ऐसे तीन नए चेहरे के हाथ में प्रदेश की बागडोर सौंपी है, जिनका कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से संबंध सही नहीं है. जीतू और उमंग दोनों स्पार्किंग हैं। जीतू की कमलनाथ से और उमंग की दिग्विजय से नहीं बनती। इसी आधार पर दोनों को सामने लाया गया ताकि यह मैसेज जाए कि कांग्रेस अब रणनीतिक तौर पर भाजपा से पीछे नहीं। कांग्रेस में इससे बेहतर और कुछ हो भी नहीं सकता। कमलनाथ दिग्विजय व अन्य क्षत्रपों के पट्ठेबाजी के समय गए। कुछ देर के लिए इन बातों को हम मान भी लेते है कि कांग्रेस ने बहुत सही निर्णय लिया है. लेकिन क्या राहुल गांधी का यह यंग ब्रिगेड कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगा पाएगा। क्या दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेताओं के मार्गदर्शन के बीना राहुल की यंग कंपनी आगामी लोकसभा में कुछ बढ़िया कर पाएगी? मुझे तो नहीं लगता क्योंकि राजनीति हो या कुछ और अनुभव बहुत मायने रखता है. और जब संबंध ही इन युवा नेताओं के सीनियर लीडर सही नहीं हैं तो कांग्रेस कितना सफल हो पाएगी वो तो आने वाला समय बताएगा।