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माँ का खेल

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Hindi Kahani :आपको पता है आज से ठीक एक साल पहले बहोत मुश्किल से देविका की शादी हुई थी , अब आप पूछेंगे मुश्किल कैसी ? तो मै आपको बता दूँ की मेरी बेटी देविका मेरी ही तरह ज़िद्दी है और उसने ज़िद पकड़ ली थी कि वो शादी नहीं करेगी पैंतीस साल की हो गई थी मगर जाने क्यों उसे कोई लड़का पसंद ही नहीं आ रहा था ,कहती थी सारे आदमी एक ही जैसे होते हैं कोई अच्छा हो ही नहीं सकता ,सबने खूब समझाया मगर वो नहीं मानी और एक दिन नाराज़ होकर हमसे बहोत दूर जाकर जॉब करने का फैसला ले लिया ,कुछ दिनों बाद खबर दी कि देहरादून के एक कॉलेज में पढ़ाने लगी है तनख्वाह भी अच्छी है, हम उसकी फ़िक्र न करें पर मै कैसे उसकी फ़िक्र न करती एक लौती बेटी है मेरी और उसकी इस सोच के पीछे की वजह मै जानती थी इसलिए शायद मै और परेशान थी ,दरअसल उसके पापा ने मेरे और उसके साथ भी बहोत बुरा किया था वो न मुझे मेरा हक़ दे पाए न अपनी बेटी को और अपनी अलग दुनिया बसा ली। देविका अपने पापा का बुरा व्यवहार कभी भूल नहीं पाई और उसकी नज़र में हर आदमी उसके पापा की तरह बुरा हो गया फिर उसने इरादा कर लिया कि वो कभी शादी नहीं करेगी। लेकिन एक लड़का आशीष उसे बहोत पसंद करता था, वो मेरे पास आया था देविका का हाँथ मांगने के लिए पर मैं देविका की ज़िद से मजबूर थी इसलिए मैंने उसे साफ साफ कह दिया कि वो मुझे बहोत पसंद है पर शादी तभी होगी जब वो देविका को शादी के लिए राज़ी कर लेगा,उसके दिल में अपने लिए मोहब्बत जगा लेगा , ये सुनकर वो तो ख़ुशी से फूला नहीं समाया कि कमसे कम मुझे तो कोई ऐतराज़ नहीं है पर मैंने आशीष को समझाया कि देविका को मनाना आसान काम नहीं है और उसे देविका का पता देते हुए मैंने इस काम में उसका साथ देने का वादा किया। कुछ दिनों बाद देविका का कॉल आया मैंने उससे पूछा की सब ठीक है, तो उसने कहा हाँ मां सब ठीक है बस दो तीन दिनों से एक लड़का मेरी बिल्डिंग के नीचे खड़ा रहता है और आते जाते मुझे घूरता रहता है ,उसी को लेकर थोड़ा ग़ुस्सा आ रहा था , इस पर मैंने मुस्कुराते हुए पूछा” अच्छा दिखने में कैसा है वो और सुन ये बता लड़का है या आदमी ,मेरा मतलब तुझसे छोटा है या बड़ा “देविका झुंझलाते हुए बोली मां आप भी न मुझे उस पर ग़ुस्सा आ रहा है और आपको मज़ाक सूझ रहा है,हाँ शायद मेरी ही उम्र का होगा। अच्छा चलिए मेरी क्लास का टाइम हो रहा है मै आपसे बाद में बात करुँगी। ये कहकर उसने फोन काट दिया पर मै ये सुनकर खुश हो गई कि आशीष उसके पास पहुंच गया है , मैंने फ़ौरन आशीष को कॉल लगाई और उससे पूछा कि कहीं उसने मेरी देविका को ज़्यादा डरा तो नहीं दिया है तो उसने कहा “नहीं मां अभी तो डराना और मेरा पिटना बाक़ी है ” ये सुनकर मुझे तसल्ली हो गई कि वो देविका को अच्छे से समझता है पर फिर भी मैंने उसे समझाया कि वो दिल से बहोत प्यारी है बस वो किसी को ख़ासकर लड़कों को अच्छा नहीं समझती इसलिए बुरा व्यवहार करती है तो आशीष ने कहा ,’हाँ मां मै जानता हूँ’ ,मै उसका विश्वास जीतने की पूरी कोशिश करूँगा आप तो बस इंतज़ार करिये उसकी अगली कॉल का। खैर अगले दिन फिर देविका ने मुझे कॉल किया और” बोली माँ आज तो मै बहोत डर गई थी ,कॉलेज के बाद ज़रा शॉपिंग करने चली गयी थी ,लौटी तो काफी देर हो गई थी और आंधी-पानी का मौसम भी बन रहा था ,मै जैसे ही अपनी बिल्डिंग के नीचे पहुंची मुझे फिर वही आदमी दिख गया ,और दूर से ही उसने मुझे भी देख लिया मानो मेरा ही इंतज़ार करते हुए इधर उधर टहल रहा था, मैंने भी ग़ुस्से से उससे पूँछ ही लिया कि कौन हो ? किससे काम है ,रोज़ मेरी बिल्डिंग के नीचे क्यों खड़े रहते हो और आते जाते मुझे क्यों घूरते रहते हो ? तो वो बड़ा मुस्कुराते हुए बोला अरे ,अरे ज़रा सांस तो लीजिये आराम सा ग़ुस्सा कर लीजियेगा ,हाँ मैं आपको ही देखने आता हूँ , और आज आपने आने में देर कर दी न इसलिए मै घबरा गया था ,इस पर मैंने पूछा कि क्यों मुझे देखने आते हो? तो बोला , आप मुझे बहोत अच्छी लगती हैं ,मै आपसे शादी करना चाहता हूँ ,क्या प्लीज़ आप मुझे समझने की कोशिश करेंगी ? और हाँ आप पर साड़ी ही अच्छी लगती है रोज़ पहना करिये ,आपके लम्बे बालों के साथ लहराता आँचल बहोत प्यारा लगता है , ये सब सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गए ,मैंने उसे डांटते हुए कहा ‘देखो मिस्टर मेरा शादी वादी का कोई इरादा नहीं है और दोबारा मेरे घर का आस पास भी न नज़र आना वर्ना तुम्हारी कंप्लेन कर दूँगी ‘ ,इतना कहकर मै लिफ्ट की तरफ चली गई ,अपने फ्लोर में पहुंची,अपना मेन गेट खोला और रूम में आ गई कुछ ही देर में कुछ आवाज़ सी आई और लाइट चली गयी मुझे लगा मौसम ख़राब है शायद इसलिए लाइट चली गयी है, थोड़ी देर में आ जाएगी , पर कुछ ही देर में चीख़ पुकार की आवाज़े मेरे कानों में पड़ी तो मैंने अपना मेन गेट थोड़ा खोलके देखा तो सामने वाले फ़्लैट से धुंए का ग़ुबार उठता दिखा सब भाग रहे थे, मै तो अभी किसी को जानती भी नहीं थी, तो क्या किसी से पूछती बस मै भी सबके साथ नीचे की तरफ दौड़ी ,एक लिफ़्ट भरी थी तो मै दूसरी उसी वक़्त खुली लिफ्ट में चढ़ गई , पर लिफ़्ट चलते ही रुक गई उसकी लाइट भी चली गई मेरी तो सांस ही रुकने को थी पर मैंने खुद को संभाला और याद किया की मै लिफ्ट में अकेली नहीं हूँ कोई और भी है , तो मैंने कहा ‘लिफ़्ट जाने कैसे रुक गई शायद शार्ट सर्किट हुआ है अब जाने कैसे ये ठीक होंगी तो’ , बगल से आवाज़ आई ‘परेशान मत होइए सिक्योरिटी गार्ड आ चुके हैं नीचे जल्द ही सब ठीक हो जाएगा’ ,ये सुनकर मुझे अच्छा लगा पर मै किसी आदमी के साथ अकेले लिफ्ट में फँस गई हूँ ये सोचकर भी मै डर रही थी और पसीना पसीना होकर मेरा सर चकराया और मै सामने की तरफ गिरने को थी कि उस आदमी ने मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया मुझे समझाया कि ‘आप इतना डरिये मत अभी लिफ़्ट और लाइट दोनों बन जाएगी ‘और पल भर के लिए मुझे सुकून आ गया और कुछ दस मिनट में लिफ्ट चल दी लाइट भी आ गई पर मेरी आँखे उसके कंधे पे सर रख कर यूँ बंद हुई थीं कि खुलना ही नहीं चाहती थी पर जब आँख खोली तो मै उसी आदमी की बाँहों में थी जिसे मै शाम को आते वक़्त बिल्डिंग के नीचे, खुद को घूरने के लिए डांट के आई थी और वो मुझे फिर अपनी बड़ी -बड़ी आँखों से वैसे ही घूर रहा था,अब मुझे कुछ समझ नहीं आया और मै लिफ़्ट खुलते ही नीचे आ गई,वो भी सबके साथ नीचे खड़ा रहा और जब सब ठीक हो गया तो मै अपने रूम में चली गयी वो बिल्डिंग के नीचे ही खड़ा रहा मैंने उसे अपनी खिड़की से देखा था। ‘चलो भगवान् का शुक्र है कि तुझे कुछ नहीं हुआ’ मैंने कहा देविका का ये क़िस्सा सुनकर मै भी डर जाती पर मुझे पता था देविका के इस मुश्किल वक़्त में कोई और नहीं बल्कि आशीष उसके साथ था क्योंकि मैंने उसे बताया था कि देविका को अँधेरे से बहोत डर लगता है इसलिए वो लिफ़्ट से ऊपर जा रहा था और देविका को लिफ़्ट में मिल गया ,खैर अब तो मुझे मौका मिल गया था देविका को एक बार फिर डांटने का उसे समझाने का तो मैंने कहा कि देविका तुम्हारा शादी न करने का फैसला ग़लत है ,हर इंसान को एक सहारे की, किसी की मोहब्बत की ज़रूरत होती है, पर देविका इतने पर भी हमेशा की तरह अपनी ज़िद पे अड़ी रही और बोली ,माँ ऐसा नहीं है ,मै हमेशा थोड़ी डरती हूँ चलिए अब फोन रखती हूँ कल बात करुँगी। इधर उसके फोन रखते ही मैंने आशीष को फोन करके थैंक यू कहा पर उसने कहा ‘माँ ये मेरा सौभाग्य है कि मै उस वक़्त उसके साथ था और फोन रख दिया। अगले दिन जब देविका का फोन आया तो मैंने उससे पूछा कि अब वो ठीक है उसने कहा हाँ। तो मैंने फिर उसे शादी के बारे में सोचने को कहा पर वो एक न मानी और मेरी बात टालते हुए फिर बात ख़त्म करदी। अगले हफ्ते आशीष मेरे घर आया मुझे लगा इसने हाँथ खड़े कर दिए देविका शादी के लिए नहीं मान रही पर उसने कहा माँ देविका को मै पसंद आ गया हूँ पर वो आपसे नहीं कहेगी इस लिए उसने मुझे आपके पास भेजा है ताकि आप फिर से उससे कहे कि एक रिश्ता आया है और आप उसे फिर शादी के लिए प्रेस करें ताकि सबको लगे कि उसने आपके लिए अपनी ज़िद छोड़ी है। ये सुनकर मुझे तो मज़ा ही आ गया और मैंने हँसते हुए आशीष से कहा ठीक है ,मै देविका से कह दूँगी कि एक और रिश्ता आया है , और आशीष ने भी हँसते हुए कहा , ‘हाँ आप तो मुझे जानती ही नहीं हैं तो अच्छे से जान लीजिये फिर देविका तक पैग़ाम भिजवाइएगा ,और अब मिठाई तो खिलाइये ,”हा हा हा”। बस फिर क्या था मैंने देविका को फोन लगाया और उसे अगले हफ्ते घर आने को कहा ,बताया कि एक लड़का है आशीष मुझे बहोत पसंद है तेरे लिए ,उसके घर वाले भी तुझे देखना चाहते हैं ,बस तू एक बार आ जा ,उसे देख ले “मेरी मां”, “मेरी बहन” फिर तुझे शादी करने के लिए कभी नहीं बोलूंगी अगर तुझे पसंद आये तो करना नहीं तो मत करना। खैर थोड़ा न नुकुर करके वो मान गयी और अगले हफ्ते आई और आशीष को देखकर शादी के लिए हाँ कर दी। मैंने धूम धाम से फिर उसकी शादी की। आशीष दूल्हा बनकर मेरे द्वार पर आया और बोला’ मां आप इस खेल में जीत गईं’ और देविका झट से पूछ बैठी ‘कौन सा खेल माँ’, तो मैंने कहा शादी कर लो फिर तुम्हे आशीष बताएगा। अब शादी के बाद जब देविका घर आयी और आशीष के साथ पहली बार हमारी महफ़िल जमी तो देविका ने ज़ोर देकर कहा आशीष अब बताओ माँ किस खेल में जीत गईं तो आशीष ने सारे राज़ देविका के सामने खोले और बोला जब बिल्डिंग में आग लगने वाली रात तुम अपने कमरे की खिड़की पे बैठी रात भर मुझे बिल्डिंग के नीचे खड़ा ,देखती रही थी ,तब मै समझ गया था कि तुम भी मुझे अपना मानने लगी हो लेकिन तुम आसानी से नहीं मानोगी इसलिए मैंने माँ को मैसेज किया कि अब क्या करूँ तो माँ ने ही कहा अब जब तक तुम हाँ न कहो मै तुम्हें छोड़कर न जाऊँ इसलिए मैंने पूरी रात वहीं पार्क में गुज़ार दी ,पर’ एक सेकेंड माँ तुम्हें कैसे जानती है ? ‘देविका बोल पड़ी ,तो आशीष ने कहा देविका मैडम आपसे पहले इन्होंने ही मुझे आपके लिए पसंद किया था और आपके पास भेजा था तब जाके आप मुझे मिली हैं और हाँ जब सुबह आप पार्क में मेरे लिए चाय लाईं और कहा कि मै आपके घर जाकर आपकी माँ से बात कर लूँ अगर वो मान जाती हैं तो मैं आपसे शादी कर लूंगी तो मैंने माँ के कहने पे ही ये सच आपको उस वक़्त नहीं बताया कि माँ तो पहले से राज़ी हैं , फिर क्या था देविका तो ज़ोर -ज़ोर से रोने और चिल्लाने लगी “आप दोनों ने मेरे साथ गेम खेला है” ,मै तो हँसते हुए वहां से उठके चली आयी पर थोड़ी देर में आशीष और देविका के हॅसने खिलखिलाने की आवाज़े मेरे पूरे घर में गूँजने लगी और मैंने सुकून से बरामदे में आकर चाय पी और आज इसी तरह दोनों को देखते एक साल गुज़र गया ,चलिए अब मुझे बाज़ार जाना है दोनों के लिए एनिवर्सरी गिफ्ट लेने।

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