राजनीति के अपने तकाजे होते हैं, जिन्हें आप यदि पूरा नहीं करते हैं तो सामने आये अवसर भी व्यर्थ हो सकते हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादवने अपने मनोनयन से लेकर अभी सवा बरस के कार्यकाल तक ऐसी मोहिनी चला रखी है, जिसका असर संगठन, शासन, प्रशासन व जनता के बीच समान रूप से बरकरार है। अल्पज्ञात से सर्वज्ञात तक के अपने सफर में मुख्यमंत्री ने कहीं यह अहसास नहीं होने दिया कि वे सरकार संचालन के लिये नये या अनुभवहीन हैं। संगठन व सरकार के बीच बेहतर तालमेल के साथ वे जन हितैषी अभियानों पर तो ध्यान केंद्रित किये हुए हैं ही, प्रदेश के इतिहास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन 2028 में होने वाले सिंहस्थ के लिये जिस तत्परता,दृढ़ता और समुचित योजना बनाकर जुटे हुए हैं, वह यह बताता है कि नेतृत्व क्षमता उनमें प्राकृतिक रूप से मौजूद है। इसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पहचाना और नये चेहरे को सामने लाने का जोखिम उठाने से भी परहेज नहीं किया।
यूं देखें तो मध्यप्रदेश जैसे विशाल राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर साल,सवा साल के कार्यकाल का आकलन करना जल्दबाजी होगी। फिर भी,उनके खाते में अनेक ऐसी उपलब्धियां दर्ज हो चुकी हैं, जिन पर ध्यान जाता है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि वे इस पद को पाकर आत्ममुग्ध होकर नहीं बैठ गये, बल्कि प्रारंभ से ही इस चिंतन में लग गये कि ऐसा क्या किया जा सकता है, जो भाजपा सरकार को स्थायित्व तो प्रदान करे ही, जो लोक कल्याण के लिये भी आवश्यक हो। जहां तक मेरा आकलन है तीन ऐसे काम उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं, जो उनकी दक्षता का प्रमाण देते हैं। पहला,उन्होंने काफी हद तक पटवारी राज पर अंकुश लगाया है। पहले नामांतरण, डायवर्शन, सीमांकन,बटाकंन जैसे कामों में साल-छह महीने लगना सामान्य था। अब इन कामों की समय सीमा तय कर उनकी सतत देखरेख से काफी फर्क पड़ा और एक-दो माह में यह काम होने लगे हैं। अनेक कलेक्टर इस पर निजी निगाह रखते हैं। इसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें आम थीं, वे खत्म भले न हुई हों, उन पर काफी अंकुश तो लगा है।
दूसरा, ध्वनि प्रदूषण पर मप्र में उल्लेखनीय काम हुआ है, किंतु उसका प्रचार-प्रसार अपेक्षित नहीं हो पाया। जैसे, तमाम ध्वनि विस्तारकों को रात 10 बजे बंद करने का काफी दबाव बनाया जाता है। साथ ही 90 डेसीबल से अधिक तीव्रता का शोर न हो,इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। शुरुआती दौर में काफी डीजे और बैंड वालों पर कार्रवाई भी हुई है और खुले मैदानों में जो शादी-समारोह होते हैं, वहां भी पुलिस पहुंचने लगी है। साथ ही तमाम धार्मिक स्थलों पर लगे विस्तारक यंत्र हटाये गये हैं और जो लगे हैं,उनका ध्वनि स्तर मानक अनुरूप करवा दिया गया है। यह बड़ी राहत है।
तीसरी जो काफी प्रभावी पहल हुई है, जिसके असर भी सामने आने लगे हैं, वह है क्षेत्रीय स्तर पर निवेशक सम्मेलन। पहले इन्वेस्टर्स मीट इंदौर में ही होती थी।डॉ. मोहन यादवसरकार ने इसे संभाग व जिला स्तर तक ले जाने की पहल की। इस पर तेजी से क्रियान्वयन भी प्रारंभ हो चुका है।
मार्च 2024 में उज्जैन से शुरू हुई इस निवेश यात्रा में इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, रीवा, शहडोल, नर्मदापुरम, मुंबई, कोयंबटूर, बेंगलुरु, कोलकाता, पुणे, दिल्ली, यूके, जर्मनी और जापान आदि शामिल हैं। इन विभिन्न सम्मेलनों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रोड-शोज के माध्यम से मध्यप्रदेश ने 4.8 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त किए हैं। इन निवेश प्रस्तावों से लगभग 2 लाख नए रोज़गार के अवसर सृजित होने की आशा है।
24-25 फरवरी 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य आतिथ्य में भोपाल में हुई समिट में ही करीब 30 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिल चुके हैं। खास बात यह है कि इस बार सरकार केवल एमओयू पर केंद्रित न होकर धरातल पर कितने प्रस्ताव आकार लेते हैं,इस पर जोर दे रही है। एक बार प्रस्ताव मिलने पर संबंधित विभाग की ओर से लगातार संपर्क साधकर बात आगे बढ़ाई जा रही है। यह मध्यप्रदेश को औद्योगिक विकास की नई परिभाषा लिखने में सहायक होगा।
मध्यप्रदेश सरकार एक और महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है, जो प्रदेश में विकास को रॉकेट गति प्रदान करने में सहायक होगा। अगस्त 2024 में मुख्यमंत्री ने घोषणा की है, जिसके तहत इंदौर,उज्जैन,देवास,धार और शाहपुर जिले की कुछ हिस्सों को मिलाकर इंदौर मेट्रो सिटी बनाई जाएगी। इससे औद्योगिक, व्यापारिक गतिविधियों को तो नए आयाम मिलेंगे ही, ये जिले भी आबादी के अतिरिक्त दबाव से बच सकेंगे। चूँकि इस क्षेत्र में सब कुछ नए सिरे से तय होगा तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों के अनुरूप संरचना की जाएगी। यह निवेश को आकर्षित करेगी। बेहतर नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता की जाएगी। रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी।देश के मध्य में होने से आवागमन के बेहतर संपर्क भी मौजूद रहेंगे।यह शहरी विकास की नई परिभाषा लिखने में सहायक साबित हो सकता है। 7500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बनने वाले क्षेत्र में 19 निकाय,5 शहर शामिल होंगे और 20 विभाग मिलकर इसे आकार देने की आधारभूत संरचना में जुटेंगे।
डॉ. मोहन यादवको जब मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब ये अनुमान लगाये जा रहे थे कि वे संभवत: थोड़े समय के लिये ही पदासीन रहेंगे, क्योंकि उनके साथ दीर्घ प्रशासनिक अनुभव नहीं जुड़ा था, न ही वे ज्यादा समय विधायक का दायित्व निभा पाये थे। ऐसे में अस्थिरता का अंदेशा स्वाभाविक था, लेकिन उन्होंने अपने संवैधानिक दायित्व पर ही ध्यान केंद्रित किया। जिसके तहत प्रदेश के व्यापक दौरे, जन सामान्य के मसले जानना,व्यावहारिक दिक्कतों का अध्ययन,प्रशासनिक टीम के साथ तालमेल व अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ समन्वय को प्रमुखता दी। उनकी कैबिनेट में अनेक मंत्री उनसे वरिष्ठ होने के नाते कई बार यह लगता है कि व्यक्तित्व का टकराव हो सकता है, लेकिन प्रदेश की राजनीति में अभी तक कोई ऐसी सुगबुगाहट नहीं सुनाई दी, जो किसी नकारात्मकता को प्रधानता दे।