डॉ. मोहन यादवमिथक तोड़ने वाले मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में कई पुरानी मान्यताओं और परंपराओं को चुनौती दी और उन्हें तोड़ा। खास तौर पर उज्जैन से जुड़े एक प्रचलित मिथक ने उनकी इस पहचान को मजबूत किया।भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन के बारे में यह मान्यता रही है कि वहां कोई भी शासक, जैसे मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति, रात नहीं गुजार सकता। ऐसा माना जाता था कि अगर कोई शासक वहां रात रुकता है, तो उसकी सत्ता को खतरा हो सकता है। इस मिथक का आधार कुछ ऐतिहासिक घटनाओं से लिया जाता है, जैसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के उदाहरण, जिनके रुकने के बाद उनकी सरकार अस्थिर हुई थीं।
डॉ. मोहन यादव उज्जैन दक्षिण से विधायक हैं और स्वयं उज्जैन के निवासी हैं। उन्होंने 16 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री बनने के बाद इस मिथक को तोड़ा। उन्होंने उज्जैन में अपने परिवार के साथ रात बिताई और इस बारे में बेहद विनम्रतापूर्वक कहा -“उज्जैन क्या, पूरी सृष्टि के राजा तो बाबा महाकाल ही हैं, और वे ही रहेंगे। हम तो उनके बेटे, सेवक और प्रजा हैं।” उनका यह कदम न केवल प्रतीकात्मक था, बल्कि यह संदेश भी देता था कि वे परंपराओं से ऊपर उठकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। वे पुरानी धारणाओं में नहीं जीते। उज्जैन के ज्योतिषाचार्यों और पुजारियों ने भी उनकी बात का समर्थन किया और कहा कि डॉ. मोहन यादवमहाकाल के सेवक और बेटे हैं, इसलिए उन पर यह मिथक लागू नहीं होता।
डॉ. मोहन यादवने अपने कार्यकाल में विकास और प्रशासनिक फैसलों में भी रूढ़िवादी सोच को चुनौती देने की कोशिश की है। उनकी यह छवि उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करती है जो पुराने ढांचों को तोड़कर नए रास्ते बनाता है, जिसके कारण उन्हें ‘मिथक तोड़ने वाला मुख्यमंत्री’ कहा जाता है।
सदियों से उज्जैन को धार्मिक नगरी के रूप में ही मान्यता मिलती रही है। उज्जैन है भी धार्मिक नगरी, लेकिन डॉ. डॉ. मोहन यादवने यह मिथक दुरुस्त किया कि उज्जैन केवल और केवल धार्मिक नगरी ही नहीं है। उज्जैन एक औद्योगिक नगरी भी है। फरवरी 2025 में भोपाल में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (GIS) 2025 को ऐतिहासिक सफलता मिली, जिसमें 30 लाख 77 हजार करोड़ रुपये के निवेश समझौतों (MoU) पर हस्ताक्षर हुए। यह मध्यप्रदेशके इतिहास का सबसे बड़ा निवेश सम्मेलन माना जा रहा है, जिसने राज्य को औद्योगिक और आर्थिक केंद्र के रूप में मजबूत किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसकी प्रशंसा की। इसके अलावा, मध्यप्रदेश ने आर्थिक विकास दर में 11.05% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
”शिप्रा नदी को शुद्ध किया ही नहीं जा सकता”, इस बात को भी डॉ. मोहन यादवने गलत साबित कर दिया है। उज्जैन में सिंहस्थ 27 मार्च से 27 मई 2028 तक आयोजित होगा, एक विशाल धार्मिक आयोजन है। इस महापर्व की तैयारी के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने बड़े पैमाने पर परियोजनाओं की योजना बनाई है, जिनका उद्देश्य न केवल इस आयोजन को भव्य बनाना है, बल्कि उज्जैन को एक आधुनिक और स्थायी धार्मिक नगरी के रूप में विकसित करना भी है। शिप्रा नदी को स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए मध्यप्रदेशसरकार ने एक व्यापक शुद्धिकरण योजना शुरू की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य शिप्रा नदी में मिलने वाले प्रदूषित जल, खासकर खान (कान्ह) नदी के गंदे पानी को रोकना और नदी को 2028 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ के लिए स्वच्छ और अविरल बनाना है। कान्ह क्लोज डक्ट परियोजना शुरू की है, जिसे देश की पहली ऐसी परियोजना माना जा रहा है जिसमें किसी नदी के प्रदूषित पानी को टनल और कट-एंड-कवर तकनीक के माध्यम से डायवर्ट किया जा रहा है। क्षिप्रा नदी पर 29.21 किलोमीटर लंबे घाटों का निर्माण 778.91 करोड़ रुपये की लागत से होगा।
उज्जैन और इंदौर के समेकित विकास की महायोजना पर कार्य जारी है। उज्जैन और इंदौर को जोड़ने वाली सड़कों के लिए 2,312 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी गई है। यह सड़कें तीर्थयात्रियों के लिए मुख्य मार्ग होंगी, जिससे यातायात सुगम होगा और ट्रैफिक जाम से बचा जा सकेगा। कुल मिलाकर, सड़क निर्माण और चौड़ीकरण के लिए 2,300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाएंगे। इंदौर-उज्जैन मेट्रो लाइन का सर्वेक्षण दिल्ली मेट्रो को सौंपा गया है।
उज्जैन का सिंहस्थ 2028, प्रयागराज संपन्न महाकुंभ की तरह व्यवस्थित और उससे भी भव्य होगा। सिंहस्थ 2028 को डिजिटल बनाने के लिए एक ‘ऑल इन वन ऐप’ तैयार किया जा रहा है। इसमें ड्रोन सर्विस, यातायात प्रबंधन, मानव संसाधन और कार्य प्रगति की जानकारी शामिल होगी। एआई का उपयोग करके भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा और सुविधाओं की निगरानी की जाएगी। इसका उद्देश्य आयोजन को सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनाना है। ड्रोन के जरिए मेला क्षेत्र की निगरानी और व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी। इसके अलावा उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना है। इसमें पशुपतिनाथ (मंदसौर), ओंकारेश्वर, भादवा माता, और अन्य स्थानों तक सुगम आवागमन और अधोसंरचना सुधार शामिल है।
डॉ. मोहन यादवने धार्मिक शहरों में पूर्ण शराबबंदी लागू करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया, जिसे व्यापक समर्थन मिला। इस कदम की सराहना पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती जैसे नेताओं ने भी की। यह फैसला राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इसके साथ ही मध्यप्रदेश में बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की गईं। उदाहरण के लिए, राजगढ़ अंचल में 500 करोड़ रुपये की लागत से नए उद्योग स्थापित करने की योजना और 275 किलोमीटर लंबी रामगंज मंडी-भोपाल रेल लाइन परियोजना से मध्यप्रदेशऔर राजस्थान के बीच कनेक्टिविटी बढ़ेगी।
डॉ. मोहन यादवमेहनती, शिक्षित और धार्मिक मूल्यों से जुड़े नेता हैं। उनका मुख्य ध्यान सख्त प्रशासन और विकास पर रहता है। कर्मचारी उन्हें सख्त, विद्यार्थी प्रेरक, सेवानिवृत्त लोग सुलभ, पार्टी के कार्यकर्ता निष्ठावान, मीडियाकर्मी सहयोगी और आलाकमान उन्हें भरोसेमंद मानता है। उनका राजनीतिक करियर एक लंबी और प्रभावशाली यात्रा रही है, जो छात्र राजनीति से शुरू होकर मध्यप्रदेशके मुख्यमंत्री पद तक पहुंची। शुरुआत 1980 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई थी। 1982 में वे उज्जैन के माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के सह-सचिव बने और 1984 में अध्यक्ष चुने गए। इसी दौरान वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नगर मंत्री बने। 1990 के दशक में वे भारतीय जनता पार्टी से जुड़े और संगठन में विभिन्न पदों पर कार्य किया। 2004-2010 तक वे उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे और 2011-2013 में मध्यप्रदेशराज्य पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री दर्जा) रहे।
उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए, डॉ. मोहन यादवने कॉलेजों में रामचरितमानस को वैकल्पिक विषय के रूप में शुरू किया। साथ ही, उन्होंने घोषणा की थी कि छात्रों को डिग्री तभी मिलेगी, जब वे एक पौधा लगाएंगे। यह कदम उनके धार्मिक और पर्यावरणीय सोच को एक साथ जोड़ता है।