आरएसएस चीफ मोहन भागवत का मणिपुर के बारे में एक वीडियो आजकल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है.वीडियो में वो मणिपुर की ओर ध्यान देने को कह रहे हैं.चर्चा का विषय और भी बहुत कुछ है या यूँ कहें की आजकल राजनीति देश की आबो हवा में घुल कर माहौल को और भी गर्म कर रही है.इसके बारे में भी आरएसएस चीफ ने कहा है और सिर्फ इतना ही नहीं इन्होने अपने एक लम्बे सम्बोधन में ऐसा बहुत कुछ कहा है जिससे इस राजनीतिक माहौल को सरगर्मी देने वाले भाई बंधुओं को इसमें किसी और ही मसले की बू आने लगी है.
आरएसएस और बीजेपी आरएसएस और बीजेपी,इनका गहरा रिश्ता रहा है.27 सितम्बर 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बीजेपी की वैचारिक गुरु मानी जाती है और ये भी माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी को एक उभरते हुए संगठन से राजनीतिक दिग्गज बनाने में आरएसएस का बहुत बड़ा योगदान है.इंडियन एक्सप्रेस के एक आर्टिकल के मुताबिक आरएसएस के केंद्रीय प्रकाशन 'गृह सुरुचि प्रकाशन' ने साल 1997 में आरएसएस के एक प्रमुख नेता सदानंद डी सप्रे की एक किताब 'परम वैभव के पथ पर' प्रकाशित की थी, जिसमें आरएसएस द्वारा अलग अलग कामों के लिए बनाए गए 40 से ज्यादा संगठनों का विवरण दिया गया है। इसमें एक राजनीतिक संगठन के रूप में भाजपा का नाम भी प्रमुखता से शामिल है,किताब में संघ द्वारा बनाए गए प्रमुख संगठनों में बीजेपी तीसरे नंबर पर है. जिसे एबीवीपी, हिंदू जागरण मंच, विश्व हिंदू परिषद, स्वदेशी जागरण मंच और संस्कार भारती के साथ जोड़ा गया है.ऐसे में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के इस सम्बोधन के बाद लोग इसे कई तरह से देख रहे हैं.ये सम्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर में हुए समापन समारोह में दिया गया.और मणिपुर पर ये उद्द्बोधन लम्बे वीडियो का सिर्फ कुछ मिनट का हिस्सा है.अपने पूरे उद्बोधन में मोहन भागवत ने ऐसी बहुत सी बातें कहीं जो कई मायनों में बेहद समन्वयपूर्ण और तार्किक थीं.हाँ,इसे लोग बीजेपी के साथ आये मनमुटाव से जोड़ कर देख रहे हैं.मनमुटाव, जिसकी शुरुआत खुद बीजेपी से हुई. हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस चुनाव में संघ को दरकिनार किया गया, वैसे ही जैसे बहुत सी अन्य चीज़ों को, कुछ समय पहले ही इसी चुनावी सरगर्मी के बीच बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में आरएसएस की जरुरत थी क्योंकि तब पार्टी कम सक्षम और छोटी थी,शुरू में हम अक्षम होंगे तब हमे आरएसएस की जरुरत थी आज हम आगे बढ़ गए हैं,पहले से अधिक सक्षम हैं,बीजेपी अब अपने आप को चलाती है.
सरसंघचालक के उद्द्बोधन में फ़्रांसिसी क्रांति से अम्बेडकर तक का ज़िक्र अपने भाषण में मोहन भागवत ने फ्रांस की क्रांति से लेकर बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर का भी ज़िक्र किया उन्होंने अम्बेडकर को क्वोट करते हुए कहा कि बड़ा परिवर्तन होने से पहले समाज का आध्यात्मिक जागरण होता है.उन्होंने भारत की विविधिता में एकता की बात को सामने रखते हुए कहा कि हम सब विविध हैं ये भ्रम है भीतर से हम सब एक हैं.उन्होंने ये भी कहा कि 'हम ही सही'वाली ये विचारधारा बाहरी है.हमे अपने मत पर दृढ रहना चाहिए और दूसरों के मतों का सम्मान करना चहिये।साथ ही इन्होने पर्यावरण जैसे मुद्दों पर बात करते हुए संविधान,कानून और अनुशासन के पालन की भी बात कही.बातें और भी थी और बढियाँ बातें थी. सुनने योग्य लेकिन हम लौटते हैं चुनाव की ओर. क्योंकि यही रुझान में है और इस बारे में भी सरसंघचालक ने बहुत कुछ कहा है.उन्होंने चुनाव को प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बताया लेकिन ये भी कहा कि इसमें सत्य और मर्यादा को कभी नहीं भूलना चाहिए।उन्होंने कहा कि विपक्ष का होना जरुरी है,उसे एक प्रतिपक्ष के रूप में देखें।
आरएसएस का ध्येय 'राष्ट्रसेवा'हमने संघ के एक कार्यकर्ता से बात की, उन्होंने कहा कि आरएसएस कोई राजनीतिक संगठन नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य है राष्ट्र सेवा।जो भी हिंदुत्व के लिए सच्चे मन से समर्पित है, उसे आरएसएस का सपोर्ट है.वो अपने संघ के दिनों के बारे में पूछे जाने पर बताते हैं कि वहां सबसे ज्यादा किसी बात पर ध्यान दिया जाता है तो वो है कैरक्टर डेवलपमेंट क्योंकि उसके बिना राजनीति कभी हो ही नहीं सकती।बात बेहद सूक्ष्म है पर सच है राजनीती बिना नैतिकता के एकदम खोखली और जड़ है. बात बीजेपी की करें तो कई पोलिटिकल एनालिस्ट का मानना है कि बाकि जरुरी मुद्दों और विषयों को छोड़कर सिर्फ मोदी फैक्टर पर चुनाव लड़ना बीजेपी को भारी पड़ा है.ये भी सच है कि नरेंद्र मोदी ने आजतक एकछत्र राज किया है चाहे को उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल हो या अभी तक का प्रधानमंत्री कार्यकाल लेकिन अब मसला अलग है.अब तालमेल की जरुरत है.असहमितयों को लेकर चलने का समय है.खुद पर उठ रहे सवालों को सुनने और उससे ऑफेंड न होकर समन्वय बैठाने का समय है और बीजेपी भले ही माननीय नड्डा जी के मुताबिक अटल जी के समय में एक छोटी पार्टी थी लेकिन उनमे ये सारी खूबियां भर भर कर थीं.ऐसे में आरएसएस बीजेपी की ये खटास,गठबंधन की सरकार,एक बार फिर धीरे ही सही उभरता विपक्ष और सबसे जरुरी देश की जनता इस प्रजातंत्र को कहाँ लेकर जाती है देखने वाली बात है.