MK Stalin | Dharmendra Pradhan | Three Language Formula | Hindi Controversy | NEP | Modi Government | पिछले दिनों 1 मार्च शनिवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने अपने जन्मदिन के मौके पर एक संकल्प लेते हुए कहा वह जबरन हिंदी थोपने के विरोध करेंगे, उन्होंने कहा ट्राई लैंग्वेज पॉलिसी को बढ़ावा देना केंद्र सरकार का बहुत बड़ा झूठ है, जिसकी आड़ में वह गैर हिंदी राज्यों में जबरन हिंदी थोपना चाहती है पिछले माह 15 फरवरी को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने वाराणसी के एक कार्यक्रम में बोलते हुए तमिलनाडु राज्य सरकार पर राजनैतिक हितों को साधने का आरोप लगाया, 18 फरवरी को डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने एक रैली में धर्मेन्द्र प्रधान पर एक आरोप लगाते हुए कहा-“धर्मेन्द्र प्रधान ने हमे धमकी दी है कि फंड तभी जारी किया जाएगा, जब हम तीन भाषा फार्मूला स्वीकार करेंगे, जो राज्य हिंदी को स्वीकार कर लेते हैं वह अपनी मातृभाषा खो देते हैं, केंद्र लैंग्वेज वार ना शुरू करे। 23 फरवरी को (तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को लिखे गए एक पत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने तमिलनाडु में हो रहे नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के विरोध की तीखी आलोचना की। इसके दो दिन बाद ही 25 फरवरी को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा- केंद्र हम पर हिंदी ना थोपे, अगर जरुरत पड़ी तो हमारा राज्य एक और लैंग्वेज वार के लिए तैयार है।
लेकिन यह स्थित क्यों बनी, आखिर नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) है क्या और तमिलनाडु में इसका विरोध क्यों हो रहा है? आइये जानते हैं, साथ ही हम जानेंगे तमिलनाडु के हिंदी विरोधी आंदोलन और उसके इतिहास के बारे में। तमिलनाडु में हिंदी विरोध 1940 के दशक में ही होने लगा था, जब 1937 में मद्रास प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री सी. राजगोपालचारी की सरकार ने प्रांत में अनिवार्य हिंदी लागू की थी, जिसके बाद पेरियार और जस्टिस पार्टी के नेतृत्व में उग्र प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद 1940 में इस फैसले को रद्द कर दिया गया, यह आंदोलन लगभग दो वर्ष चला और इसके साथ ही तमिलनाडु में हिंदी विरोध का बीजारोपण हो गया।
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1946 से 1950 तक डीके और पेरियार के नेतृत्व में फिर से हिंदी विरोधी आंदोलन हुआ, दरसल देश की आज़ादी के बाद ही केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों द्वारा हिंदी पढ़ाने का आग्रह किया, जिसके बाद ओ. पी. आर. रेड्डियार के नेतृत्व वाली मद्रास प्रांत की सरकार ने हिंदी को अनिवार्य कर दिया, इसके बाद भी उग्र आंदोलन हुआ, तत्कालीन गवर्नर जनरल ऑफ़ इंडिया सी. राजगोपालचारी के मद्रास आगमन पर उन्हें काले झंडे भी दिखाए गए, जिसके बाद अन्नादुरई समेत कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया, इस आंदोलन को देखते हुए राज्य सरकार ने हिंदी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया। लेकिन डीएमके का हिंदी विरोध जारी ही रहा, वर्ष 1967 के विधानसभा चुनावों में इसी आंदोलन के बूते उसकी सरकार बनी, इसके साथ ही तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी विरोध एक उपकरण बन गया। तमिलनाडु ही एकमात्र राज्य रहा, जिसने कभी भी त्रिभाषा फार्मूले को नहीं अपनाया।