Merger Of Sikkim With India In Hindi: सिक्किम के भारत में विलय के 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। सिक्किम का भारत में विलय एक ऐतिहासिक घटना है, जो न केवल कूटनीतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं को स्थिरता देने वाला एक बड़ा कदम भी माना जाता है। इस विलय में वहाँ की जनता की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। जो शुरू से ही भारत के विलय की पक्षधर थी। इसके साथ ही भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी हर हाल में सिक्किम का विलय भारत में चाहती थीं। उन्हीं के प्रयासों से 16 मई 1975 को सिक्किम औपचारिक रूप से भारत का 22वां राज्य बना।
सिक्किम का इतिहास
सिक्किम एक हिमालयी रियासत थी, जिसकी स्थापना 17वीं शताब्दी में हुई थी। यहाँ चोग्याल कहे जाने वाले बौद्ध राजाओं का शासन था। 19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों के गोरखाओं से युद्ध हुए, गोरखाओं ने सिक्किम के भी कई क्षेत्र हड़प रखे थे। अंग्रेज तिब्बत से व्यापार चाहते थे, इसीलिए वह सिक्किम होते हुए तिब्बत तक व्यापार चाहते थे। तब सिक्किम ने नेपाल के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ दिया था। 1816 में हुई सुगौली की संधि के बाद ब्रिटीशर्स को सिक्किम के भी कई क्षेत्र मिल गए। इसके बाद अंग्रेजों और सिक्किम के मध्य तितिलिया की संधि के बाद, सिक्किम को उसके क्षेत्र मिल गए, बदले में उसने अंग्रेजों को तिब्बत के लिए व्यापारिक मार्ग दे दिया। इसके साथ ही तिब्बत ब्रिटिश भारत के अधीन एक संरक्षित रियासत बन गई।
इसी बीच अंग्रेजों की नजर सिक्किम के दार्जिलिंग पर पड़ी, जो अंग्रेजों के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसके साथ ही वह बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन भी था। हालांकि सिक्किम दार्जिलिंग देना नहीं चाहता था, पर मजबूरी वश उसने अंग्रेजों को लीज पर दार्जिलिंग दे दिया।
आजादी के बाद भारत-सिक्किम संबंध
1947 में भारत की आजादी के बाद भी सिक्किम भारत का संरक्षित राज्य बना रहा। क्योंकि वहाँ के शासक भारत मेइन मिलने के इच्छुक नहीं था, जबकि वहाँ की बहुसंख्यक प्रजा भारत के विलय के पक्ष में थी। पं. नेहरू ने भी इसका सम्मान करते हुए इसे एक स्वतंत्र लेकिन भारत-सम्बद्ध रियासत का दर्जा दिया। हालांकि सरदार पटेल की इच्छा इसके भी विलय को लेकर थी।
1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक औपचारिक संधि हुई, जिसमें भारत ने उसकी सुरक्षा, संचार और विदेश नीति की जिम्मेदारी ली, लेकिन आंतरिक प्रशासन चोग्याल के हाथ में ही रहा। हालाँकि, धीरे-धीरे सिक्किम के भीतर लोकतंत्र की माँग बढ़ने लगी। चोग्याल का शासन निरंकुश माना जाता था और आम जनता, विशेष रूप से नेपाली मूल के लोग, लोकतांत्रिक व्यवस्था की माँग करने लगे।
सिक्किम में चोग्याल के विरुद्ध आंदोलन
1973 में सिक्किम में चुनाव हुए, लेकिन व्यापक धांधली के आरोप लगे। इसके विरोध में जनता ने आंदोलन शुरू कर दिया। तीन मुख्य राजनीतिक दलों ने मिलकर ‘जन आंदोलन’ चलाया और चोग्याल के निरंकुश शासन के विरुद्ध मोर्चा खोला।
भारत ने स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए हस्तक्षेप किया। एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ- चोग्याल, भारत सरकार और सिक्किम की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के बीच। इसके अंतर्गत सिक्किम में एक निर्वाचित सरकार की स्थापना की गई और भारत के एक विशेष प्रतिनिधि को वहाँ तैनात किया गया।
भारत में विलय
चोग्याल इस प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं थे और सिक्किम की स्वतंत्र पहचान को बनाए रखने की कोशिश करते रहे। इसके जवाब में सिक्किम की विधानसभा ने अप्रैल 1975 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें भारत में पूर्ण विलय की माँग की गई।
14 अप्रैल 1975 को सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें 97% से अधिक लोगों ने भारत में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया। इसके बाद 26 अप्रैल को भारत की संसद ने 36वाँ संविधान संशोधन पारित कर सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य बना दिया। राष्ट्रपति की दस्तखत के बाद 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना।
चीन का विरोध
सिक्किम के भारत के विलय पर चीन आपत्ति थी, वह खुद कई वर्षों से सिक्किम पर नजर गड़ाए बैठा था। सिक्किम का विलय भारत की चिकन नेक कहे जाने वाले क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक था, जो शेष भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ता था।
चीन की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए भारत की उत्तरी सीमाएँ और अधिक सुरक्षित हुईं। चीन ने वर्षों तक सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से इनकार किया, लेकिन बाद में 2003 में उसने अनौपचारिक रूप से इसे स्वीकार कर लिया।