विवाह में जो दो आत्माओं के मिलन का पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन आजकल घट रही घटनाओं को देखते हुए इस पवित्र और सबसे नजदीकी व विश्वसनीय रिश्ता होता है, अब वो ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है जहां संस्कार वाकई एक बंधन बन के रह गया है, न कि प्रेम का प्रतीक रह गया है बल्कि कहना ग़लत नहीं होगा कि अब विवाह शायद असमंजस,अविश्वास और संदेह का रिश्ता बनकर रह गया है। बीते दो महीनों में सामने आईं कई चौंकाने वाली घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि शादी के तुरंत बाद हनीमून पर गए कपल्स के बीच न केवल रिश्तों की कड़वाहट खुलकर सामने आ रही है, बल्कि कई मामलों में इनमें से किसी की हत्या, गायब हो जाना या किसी तीसरे व्यक्ति के साथ भाग जाना जैसी अतिवादी परिणतियां देखने को मिली हैं। यह सिर्फ व्यक्तिगत हादसे नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय रिश्तों को चेतावनी भी हैं। ऐसे में जरूरी है यह समझना कि आखिर वह कौन सी कड़ियां होती हैं जो रिश्तों को इतनी जल्दी तोड़ देती हैं। आखिर क्यों नई शुरुआत करने वाले जोड़े एक-दूसरे के लिए खतरा बन जाते हैं ? और कैसे रोका जाए इस टूटते भरोसे और डगमगाते रिश्ते को के सिलसिलेबार होते हादसों को? इस लेख में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं,इन हादसों को देख रहे युवाओं को समझाइश के उद्देश्य से उकेरा है जो इस प्रकार हैं।
रिश्तों में भरोसे की नींव कमजोर क्यों हो रही है?
नई उम्र, नए सपने और नई जिम्मेदारियां शादी के बाद ये तीनों जीवन में एक साथ आते हैं। लेकिन आज के युवाओं में भावनात्मक स्थिरता की कमी और रिश्तों को समय देने का अभाव उन्हें जल्दबाज़ और सतही बना देता है। सोशल मीडिया, डेटिंग ऐप्स और एक ‘तुरंत समाधान’ वाली मानसिकता के कारण वे रिश्तों में धैर्य की जगह शंका और जल्दबाज़ी को प्राथमिकता देने लगे हैं।
आत्मविश्वास की कमी, निर्णय लेने में असमर्थता
कई मामलों में देखने को मिला है कि युवा अपने जीवनसाथी को लेकर पूरी तरह स्पष्ट नहीं होते। सामाजिक दबाव, पारिवारिक अपेक्षाएं या भावनात्मक मजबूरी में लिए गए फैसले बाद में भारी पड़ते हैं। अपने निर्णयों पर आत्मविश्वास की कमी, और किसी परेशानी को सुलझाने या समय रहते समाधान की बजाय,भाग जाने की प्रवृत्ति, विवाह जैसे रिश्ते को बोझ बना देती है जिसका असर दो जिन्दगियों पर ही नहीं उनके परिजनों और समूचे मानव समाज पर पड़ता है जो ,ये सब देख रहे युवाओं के भावी भविष्य के लिए ठीक नहीं।
धैर्य की कमी और संवादहीनता
हर रिश्ता समय मांगता है, लेकिन नई पीढ़ी के युवा रिश्तों में उतावलेपन से काम लेते हैं। छोटी-छोटी बातों को तूल देना, संवाद के बजाय टकराव को चुनना और आपसी समझ से तालमेल बनाने की बजाय जजमेंट देना, ये सभी आदतें रिश्तों में दरार पैदा करती हैं। ऐसी सोच और हरकतों ने हनीमून जैसे समय को, जो करीब आने का अवसर होना चाहिए, आजकल विवाद और द्वंद्व की शुरुआत बना दिया गया है।
आकर्षण बनाम सच्चा प्रेम
आज के युवा कई बार आकर्षण और सच्चे प्रेम में फर्क नहीं कर पाते। जब यह अंतर शादी के बाद सामने आता है, तब पछतावे, गुस्से और पलायन जैसी भावनाएं रिश्ते को तोड़ने पर मजबूर कर देती हैं। यही कारण है कि किसी से शादी करके कुछ ही दिनों में किसी और के साथ भाग जाने जैसी घटनाएं बढ़ी हैं।
समाधान की ओर – कैसे रोके इन हादसों को ?
शादी से पहले मानसिक और भावनात्मक तैयारी
युवाओं को विवाह से पहले अपने फैसले को लेकर मानसिक रूप से स्पष्ट और परिपक्व होना चाहिए। प्यार, जिम्मेदारी और समझ के बीच संतुलन जरूरी है।
खुले संवाद और रिश्तों को समय देना
आपसी बातचीत और एक-दूसरे की भावनाओं को समझना सबसे बड़ी कुंजी है। संवादहीनता रिश्तों को सबसे ज़्यादा तोड़ती है।
मन में उठने वाले संदेह को समय देकर सुलझाना
शंका और गुस्से में उठाए गए कदम अक्सर स्थायी पछतावे में बदल जाते हैं। किसी भी निर्णय से पहले एक-दूसरे को सुनना और समझना जरूरी है।
मीडिया और फिल्मों की काल्पनिक नहीं वास्तविक जीवन को अपनाएं
फिल्मों और सोशल मीडिया की बनावटी दुनिया से हटकर यथार्थ को स्वीकार करें। शादी कोई परीकथा नहीं, एक जीवनभर की साझेदारी है।
विशेष :- न्यूली मैरिड कपल्स के साथ बढ़ते हादसे समाज के लिए चेतावनी हैं। रिश्तों में आई यह दरार केवल व्यक्तिगत दुख नहीं, सामाजिक व्यवस्था में दरकते मूल्यों की गवाही है। अब समय आ गया है जब विवाह संस्कार को केवल उत्सव नहीं बल्कि एक जिम्मेदार भावनात्मक गठबंधन की तरह समझा जाए। जब प्यार को दिखावे से ज्यादा समझदारी मिले, जब विश्वास को अफवाहों से ज्यादा महत्त्व दिया जाए, तभी ये हादसे रुकेंगे,क्योंकि रिश्ता तब ही चलता है, जब उसमें दो नहीं, एक सोच, एक समझ और एक ही भरोसा हो।