Manmohan Singh ने ठुकरा दिया था जवाहर लाल नेहरू का दिया खास ऑफर, जानें उनसे जुड़ी ये खास बातें

Manmohan Singh rejected Jawaharlal Nehru offer

Manmohan Singh dies: भारत के आर्थिक सुधारों के वास्तुकार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार 26 दिसंबर को दुनिया को अलविदा कह दिया. मनमोहन सिंह पिछले कुछ महीनों से काफी बीमार थे, जिसके चलते उनका इलाज चल रहा था. जानकारी के मुताबिक, मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) की साल 2006 में दूसरी बाईपास सर्जरी हुई थी, जिसके बाद से ही वे बीमार थे. उनके परिवार में पत्नी गुरचरण सिंह और तीन बेटियां हैं.

92 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए मनमोहन सिंह ने कई मायनों में देश को आगे बढ़ाने में अपना फर्ज निभाया था. वे 2004 से 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में दो कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने देश को आर्थिक रूप से आगे बढ़ाया और इससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ी. आइए आज जानते हैं मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के बारे में कुछ खास बातें और यह भी कि जब जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपनी सरकार में पद का ऑफर दिया तो मनमोहन सिंह ने क्यों मना कर दिया.

  • पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) पहले प्रधानमंत्री थे, जो 2004 में अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा प्रधानमंत्री चुने गए. इसके अलावा वो जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी और नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लम्बे समय तक के प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 10 साल तक इस पद को संभाला था.
  • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले पहले सिख और पहले गैर-हिंदू थे.
  • 1991 में मनमोहन सिंह ने भारत को आर्थिक संकट में डूबने से बचाया और आर्थिक उदारीकरण के युग की शुरुआत की.
  • साल 1993 में यूरोमनी और एशियामनी ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री का खिताब दिया था.
  • 1962 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मनमोहन सिंह को अपनी सरकार में पद देने की पेशकश की, हालांकि उस समय मनमोहन सिंह अमृतसर में अपने कॉलेज में पढ़ रहे थे और उन्होंने अपनी पढ़ाई का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.
  • मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार के अनुसार, मनमोहन सिंह हिंदी पढ़ना नहीं जानते थे. उनके भाषण या तो गुरुमुखी या उर्दू में लिखे होते थे.
  • मनमोहन सिंह के शुरू के जीवन की बात करें तो उनका जीवन गाह गांव बीता, फिलहाल अब यह गांव पाकिस्तान में है. उस वक्त इस गाह गांव में बिजली और स्कूलों की कमी हुआ करती थी, इसलिए मनमोहन सिंह मिट्टी के तेल के दीपक की रोशनी में पढ़ने के लिए मीलों पैदल चल के जाया करते थे.

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