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सप्तक की संस्थापक और सितारवादक मंजू मेहता

About Manju Mehta In Hindi | न्याज़िया बेगम: हमारे लोकप्रिय संगीत समारोहों में से एक नाम है 13 दिवसीय वार्षिक सप्तक महोत्सव का, जिसकी रचयिता विदुषी मंजू नंदन मेहता, सबसे सम्मानित संगीत संरक्षकों में से एक मानी जाती थीं, वो ऐसी सितार वादक थीं जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई खासकर गुजरात में।

पृष्ठ भूमि :-

21 मई 1945 को जयपुर में पैदा हुईं मंजू जी संगीतकारों के घराने से ताल्लुक रखती हैं पिता मनमोहन जी और माता चंद्रकलाव भट्ट दोनों संगीतकार थे और भाई, शशि मोहन भट्ट सितार बजाते और विश्व मोहन भट्ट वीणा , शशि जी ने मंजू जी को बचपन से संगीत सिखाया था जब बड़ी हुईं तो बकायदा पंडित रविशंकर से सितार बजाना सीखा ,जो उनके भाइयों के भी गुरु थे।

अदभुत शैली :-

रागदारी में उनका कोई जवाब नहीं था उनका अपना मुख्तलिफ अंदाज़ रहा जो आलाप के ठहराव से लेकर अतिद्रुत लय तक बड़ी सहजता से राग का विस्तार करते हुए श्रोताओं को बांधे रखता लेकिन उनकी ये यात्रा आसान नहीं रही और ये सफ़र तय करने के बाद जो मकाम उन्होंने हासिल किया वो उनके कठिन परिश्रम और तपस्या का परिणाम था। यूं तो सितार को दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली से बजाया जाता है, लेकिन मंजू मेहता मध्यमा उंगली से बजाती थीं वो इसलिए कि उनकी इस उंगली में कोई गंभीर चोट लगी थी, और वो इससे कुछ नहीं कर पाती थीं जिसकी वजह से उन्हें तर्जनी के सारे काम मध्यमा उंगली से करना पड़ता था।

घर परिवार और संगीत का ताल में :-

एक प्रदर्शन के दौरान, उनकी मुलाकात तबला वादक नंदन मेहता से हुई, जो किशन महाराज के शिष्य और बनारस घराने के प्रतिपादक थे ये मुलाक़ात प्यार में बदल गई और आप दोनों ने शादी कर ली, अपनी संगीत साधना को भी जारी रखा उनकी बड़ी बेटी पूर्वी मेहता सितार की उच्च श्रेणी की कलाकार हैं और उनकी छोटी बेटी हेतल मेहता जोशी को तबला जगत में पहचान मिल। आपको आकाशवाणी पर भी हाई ग्रेड रेटिंग मिली।

पुरस्कार और सम्मान

20 अगस्त 2024 को वो हमें छोड़ कर चली गईं पर पीछे छोड़ हैं संगीत की वृहद पाठशाला जो सप्तक के माध्यम से भी हमारे साथ रहेगी जिसकी आप सह-संस्थापक थीं, आपको केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड और तानसेन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका था।

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